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आम चुनाव की खास कहानियांः देश की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार और मोरार जी देसाई के प्रधानमंत्री बनने की कहानी

By आदित्य द्विवेदी | Updated: May 16, 2019 11:54 IST

1977 के लोकसभा चुनाव देश में परिवर्तन का चुनाव था। लोगों में इमरजेंसी को लेकर कांग्रेस पार्टी के प्रति गुस्सा था। गैर-कांग्रेसी पार्टियों ने इस गुस्से को पढ़ लिया। 23 जनवरी 1977 को जनता पार्टी का गठन हुआ।

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ठळक मुद्देभारत के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री की रेस में मोरार जी देसाई के अलावा चौधरी चरण सिंह और बाबू जगजीवन राम भी शामिल थे।इमरजेंसी से तंग लोगों ने जनता पार्टी को अभूतपूर्व समर्थन दिया।

1971 के लोकसभा चुनाव की बात है। रायबरेली सीट पर इंदिरा गांधी ने सोशलिस्ट पार्टी के राजनारायण को 1 लाख से ज्यादा वोटों से हरा दिया। राजनारायण को अपनी जीत का पूरा भरोसा था। उन्होंने सरकार पर धांधली का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा गांधी को कुछ राहत तो मिली लेकिन विपक्ष के हमले तेज हो गए। इसके बाद 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी।

यह आपातकाल कांग्रेस सरकार की चूलें हिला देने वाला फैसला साबित हुआ। देश में 21 महीने के आपातकाल के बाद 23 मार्च 1977 को आपातकाल खत्म करने की घोषणा हुई। उससे पहले 18 जनवरी को इंदिरा सरकार ने लोकसभा चुनाव की घोषणा कर दी।

1977 के लोकसभा चुनाव देश में परिवर्तन का चुनाव था। लोगों में इमरजेंसी को लेकर कांग्रेस पार्टी के प्रति गुस्सा था। गैर-कांग्रेसी पार्टियों ने इस गुस्से को पढ़ लिया। 23 जनवरी 1977 को जनता पार्टी का गठन में हुआ। इसमें जनता मोर्चा, भारतीय लोकदल, सोशलिस्ट पार्टी और जनसंघ ने मिलकर चुनाव लड़ा। इस चुनाव में इंदिरा गांधी और संजय गांधी भी चुनाव हार गए। गठबंधन को देशभर में 345 सीटों पर जीत हासिल हुई। कांग्रेस महज 189 सीटों पर सिमट गई।

गैर-कांग्रेसी गठबंधन चुनाव तो जीत गया लेकिन अब सवाल खड़ा हुआ, कौन बनेगा प्रधानमंत्री?

इस रेस में तीन नाम आगे थे- मोरारजी देसाई, बाबू जगजीवन राम और चौधरी चरण सिंह।

इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब India After Gandhi में लिखा है, ''चरण सिंह के समर्थक सोचते थे कि उत्तर भारत में पार्टी की भारी विजय में उनके नेता अहम योगदान है, इसलिए प्रधानमंत्री पद के वे स्वाभाविक दावेदार हैं। जगजीवन राम के लोग ये सोचते थे कि चूंकि उनके कांग्रेस छोड़कर आने से ही जनता पार्टी की इतनी बड़ी जीत हासिल हुई है, इसलिए उनके नाम पर विचार होना चाहिए। सबसे बड़े दावेदार मोरारजी देसाई थे जो 1964 और 1967 में करीब-करीब प्रधानमंत्री बन ही गए थे। इस हिसाब से उनका दावा सबसे मजबूत था।''

प्रधानमंत्री पद के लिए गठबंधन में विभाजन देखते हुए जय प्रकाश नारायण और आचार्य कृपलानी ने मोर्चा संभाला। उन्होंने विचार मंथन के बाद मोरारजी देसाई के नाम पर मुहर लगाई। इसी के साथ दो बार प्रधानमंत्री बनने की कगार पर पहुंचे 81 वर्षीय मोरारजी देसाई का सपना आखिरकार पूरा हुआ। चौधरी चरण सिंह और बाबू जगजीवन राम को उप-प्रधानमंत्री बनाया गया।

देश की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार के पहले प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और दो साल बाद ही अपना पद छोड़ना पड़ा।

इसके बाद चरण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्र शेखर, पीवी नरसिम्हा राव, अटल बिहारी वाजपेयी, एचडी देवगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल भी देश के गैर-कांग्रेसी गठबंधन के प्रधानमंत्री रह चुके हैं।

टॅग्स :लोकसभा चुनावइंदिरा गाँधीराजनीतिक किस्से
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