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'असम में अब 40% मुस्लिम आबादी, खड़ा हुआ जीवन और मृत्य का सवाल', CM हिमन्त बिश्व शर्मा बोले

By आकाश चौरसिया | Updated: July 17, 2024 15:46 IST

साल 1951 में सिर्फ 12 फीसद तक मुस्लिम आबादी असम में थी, जो अब 40 फीसद तक जा पहुंची। इस बात को राज्य के सीएम हिमन्त बिश्व शर्मा बताते हुए काफी चिंतित मुद्रा में दिखे। ये कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है बल्कि यह मुद्दा मृत्यु और जीवन का मेरे लिए है।

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नई दिल्ली: असम के मुख्यमंत्री हिमन्त बिश्व शर्मा ने बुधवार को कहा कि बदलता जनसंख्या का परिदृश्य बड़ा मुद्दा है, उन्होंने आगे बताया कि असम में मुस्लिम आबादी अब 40 फीसदी पर जा पहुंची है। वो आगे कहते हैं कि यह कोई राजनीतिक नहीं बल्कि उनके लिए जीवन और मृत्यु का सवाल है, जिसे लेकर वो काफी चिंतित दिखे।

साल 1951 में सिर्फ 12 फीसद तक ही थे। हमने कई जिलों को खो दिया। ये कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है। यह मुद्दा मरने और जीना का मेरे लिए है। भाजपा नेता ने मीडिया से बात करते हुए इसका जिक्र किया। 

राज्य के मुखिया ने बीती 1 जुलाई को किसी भी समुदाय का उल्लेख किए बिना कहा था कि एक 'विशेष धर्म' के लोगों के एक वर्ग द्वारा आपराधिक गतिविधियां चिंता का विषय थीं। सीएम शर्मा आगे कहते हैं कि वो ये नहीं कह रहे हैं कि किसी विशेष समुदाय के लोगों के द्वारा क्राइम के मामलों में बढ़ोतरी हुई, लेकिन हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनाव के बाद से हुई घटनाएं चिंता का विषय हैं।

23 जून को शर्मा ने दावा किया था कि बांग्लादेश अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों ने कांग्रेस को लोकसभा चुनावों में वोट किया, जबकि उन्होंने इस चुनाव में ये नहीं देखा कि भाजपा नीत सरकार ने विकास का कितना काम किया। उन्होंने यह भी कहा कि असम में बांग्लादेशी मूल का अल्पसंख्यक समुदाय ही एकमात्र ऐसा समुदाय है, जो सांप्रदायिकता में लिप्त है।

लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा-एजीपी-यूपीपीएल गठबंधन ने असम की 14 लोकसभा सीटों में से 11 पर जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस को शेष तीन सीटें मिलीं। हाल ही में संपन्न आम चुनावों में भाजपा और उसके सहयोगियों ने पूर्वोत्तर राज्यों में ने काफी कुछ खो दिया और इस बार 24 सीटों में से 15 सीटें जीतने में सफल रहे। विपक्षी कांग्रेस ने सात सीटें जीतीं, जो पहले से मौजूद चार सीटों से अधिक है।

हिमन्त बिश्व शर्मा ने आगे कहा, “एक विशेष धर्म उन राज्यों में खुले तौर पर हमारी सरकार के खिलाफ चला गया और उन राज्यों में उस धर्म के जबरदस्त अनुयायी हैं। तो इससे फर्क पड़ा है। यह कोई राजनीतिक हार नहीं है, क्योंकि कोई भी किसी धर्म से नहीं लड़ सकता''।

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