कौन कितनी देर तक और कितना सोता?, महिला या पुरुष, शोध क्या कहता है?, जानें आप नींद को कैसे मापते हैं

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: July 18, 2025 15:05 IST2025-07-18T15:04:27+5:302025-07-18T15:05:22+5:30

जीव विज्ञान, मनोविज्ञान और सामाजिक कारकों का एक जटिल मिश्रण है।

Who sleeps how long and how much Women or men what does research say Know how you measure sleep | कौन कितनी देर तक और कितना सोता?, महिला या पुरुष, शोध क्या कहता है?, जानें आप नींद को कैसे मापते हैं

file photo

Highlightsइस बात पर भी निर्भर करता है कि आप नींद को कैसे मापते हैं।सोते समय मस्तिष्क तरंगों, श्वांस और गति को रिकॉर्ड करता है।पुरुषों और महिलाओं के बीच एक छोटा सा अंतर पाया गया।

सिडनीः अगर आप टिकटॉक या इंस्टाग्राम के वेलनेस पेज पर जाएं तो आपको ऐसे दावे मिलेंगे कि महिलाओं को पुरुषों की तुलना में एक से दो घंटे अधिक नींद की आवश्यकता होती है। लेकिन शोध क्या कहता है? और इसका उससे क्या संबंध है कि आपके वास्तविक जीवन में क्या चल रहा है ? कौन कितनी देर तक और कितना सोता है, यह जीव विज्ञान, मनोविज्ञान और सामाजिक कारकों का एक जटिल मिश्रण है। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि आप नींद को कैसे मापते हैं।

*** साक्ष्य क्या कहते हैं? शोधकर्ता आमतौर पर नींद को दो तरीकों से मापते हैं: -लोगों से पूछकर कि वे कितना सोते हैं (जिसे स्व-रिपोर्टिंग कहा जाता है)। लेकिन लोग आश्चर्यजनक रूप से यह अनुमान लगाने में गलत होते हैं कि उन्हें कितनी नींद आती है - वस्तुनिष्ठ उपकरणों का उपयोग करते हुए, जैसे कि शोध-स्तरीय, पहनने योग्य स्लीप ट्रैकर या पॉलीसोम्नोग्राफी जो किसी प्रयोगशाला या क्लीनिक में नींद के अध्ययन के दौरान आपके सोते समय मस्तिष्क तरंगों, श्वांस और गति को रिकॉर्ड करता है।

वस्तुनिष्ठ आंकड़ों को देखें तो, अच्छी तरह से किए गए अध्ययन आमतौर पर दिखाते हैं कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में लगभग 20 मिनट अधिक सोती हैं। स्लीप ट्रैकर पहनने वाले लगभग 70,000 लोगों पर किए गए एक वैश्विक अध्ययन में विभिन्न आयु समूहों के पुरुषों और महिलाओं के बीच एक छोटा सा अंतर पाया गया।

उदाहरण के लिए, 40-44 आयु वर्ग के पुरुषों और महिलाओं के बीच नींद का अंतर लगभग 23-29 मिनट था। पॉलीसोम्नोग्राफी का उपयोग करते हुए एक अन्य बड़े अध्ययन में पाया गया कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में लगभग 19 मिनट अधिक सोती हैं। महिलाएं औसतन थोड़ी ज़्यादा गहरी नींद सोती हैं।

अध्ययन में यह भी पाया गया कि उम्र के साथ केवल पुरुषों की नींद की गुणवत्ता में गिरावट आई। यह कहना कि हर महिला को 20 अतिरिक्त मिनट चाहिए (दो घंटे तो दूर की बात है), असल बात को नज़रअंदाज़ करना है। यह वैसा ही है जैसे यह कहना कि सभी महिलाओं की लंबाई सभी पुरुषों से कम होनी चाहिए।

हालाँकि महिलाएं थोड़ी ज़्यादा और गहरी नींद सोती हैं, फिर भी वे लगातार कमज़ोर नींद की शिकायत करती हैं। उनमें अनिद्रा की संभावना भी लगभग 40 प्रतिशत ज़्यादा होती है। प्रयोगशाला के निष्कर्षों और वास्तविक दुनिया के बीच यह बेमेल नींद अनुसंधान में एक जानी-मानी पहेली है, और इसके कई कारण हैं।

उदाहरण के लिए, कई शोध अध्ययन मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं, दवाओं, शराब के सेवन और हार्मोनल उतार-चढ़ाव पर विचार नहीं करते। इससे वे कारक ही बाहर हो जाते हैं जो वास्तविक दुनिया में नींद को प्रभावित करते हैं। प्रयोगशाला और शयनकक्ष के बीच यह बेमेल हमें यह भी याद दिलाता है कि नींद शून्य में नहीं होती। महिलाओं की नींद जैविक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारकों के एक जटिल मिश्रण से प्रभावित होती है, और इस जटिलता को व्यक्तिगत अध्ययनों में पकड़ पाना मुश्किल है।

*** चलिए, शरीर विज्ञान से शुरुआत करते हैं यौवन के आसपास दोनों पुरुषों और महिलाओं में नींद की समस्याएँ अलग-अलग होने लगती हैं। गर्भावस्था के दौरान, जन्म के बाद और रजोनिवृत्ति के दौरान ये समस्याएँ फिर से बढ़ जाती हैं। डिम्बग्रंथि हार्मोन, विशेष रूप से एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन के स्तर में उतार-चढ़ाव, नींद में इन लिंग-भेदों में से कुछ की व्याख्या करते प्रतीत होते हैं।

उदाहरण के लिए, कई लड़कियाँ और महिलाएँ मासिक धर्म से ठीक पहले, मासिक धर्म से पहले के चरण के दौरान, जब एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन का स्तर कम होने लगता है, नींद कम आने की शिकायत करती हैं। शायद हमारी नींद पर सबसे ज़्यादा प्रमाणित हार्मोनल प्रभाव रजोनिवृत्ति के दौरान एस्ट्रोजन के स्तर में कमी है। यह नींद में गड़बड़ी बढ़ने से जुड़ा है। कुछ स्वास्थ्य स्थितियाँ भी महिलाओं की नींद में भूमिका निभाती हैं। उदाहरण के लिए, थायरॉइड विकार और आयरन की कमी महिलाओं में ज़्यादा आम हैं और थकान और नींद में खलल से गहराई से जुड़ी हैं।

*** मनोविज्ञान के बारे में क्या ख्याल है? महिलाओं में अवसाद, चिंता और आघात संबंधी विकारों का जोखिम कहीं ज़्यादा होता है। ये अक्सर नींद की समस्याओं और थकान के साथ होते हैं। चिंता और चिंतन जैसे संज्ञानात्मक पैटर्न भी महिलाओं में ज़्यादा आम हैं और नींद को प्रभावित करने के लिए जाने जाते हैं। महिलाओं को पुरुषों की तुलना में अवसादरोधी दवाएँ भी अक्सर ज़्यादा दी जाती हैं, और ये दवाएँ नींद को प्रभावित करती हैं।

*** समाज भी इसमें भूमिका निभाता है। देखभाल और भावनात्मक श्रम अभी भी महिलाओं पर असमान रूप से ज्यादा पड़ता है। इस साल जारी सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि ऑस्ट्रेलियाई महिलाएं पुरुषों की तुलना में हर हफ्ते औसतन नौ घंटे ज़्यादा अवैतनिक देखभाल और काम करती हैं।

हालांकि कई महिलाएं सोने के लिए पर्याप्त समय निकाल लेती हैं, लेकिन दिन में आराम के उनके अवसर अक्सर कम होते हैं। इससे महिलाओं को ज़रूरी ऊर्जा प्रदान करने के लिए नींद पर बहुत दबाव पड़ता है। मरीजों के साथ अपने काम में, हम अक्सर उनके थकान के अनुभव की गुत्थी को सुलझाते हैं।

हालाँकि खराब नींद स्पष्ट रूप से इसका कारण है, थकान किसी गहरी बात का संकेत भी दे सकती है, जैसे अंतर्निहित स्वास्थ्य समस्याएँ, भावनात्मक तनाव, या खुद से बहुत ज़्यादा उम्मीदें। नींद निश्चित रूप से तस्वीर का एक हिस्सा है, लेकिन यह शायद ही पूरी कहानी होती है।

उदाहरण के लिए, आयरन की कमी (जो हम जानते हैं कि महिलाओं में ज़्यादा आम है और नींद की समस्याओं से जुड़ी है) की दर भी प्रजनन काल में ज़्यादा होती है। यह ठीक उसी समय होता है जब कई महिलाएं बच्चों की परवरिश और एक साथ कई जिम्मेदारियों को उठाते हुए ‘मानसिक बोझ’ से जूझ रही होती हैं।

तो क्या महिलाओं को पुरुषों से ज़्यादा नींद की ज़रूरत होती है? औसतन इसका जवाब हाँ है। थोड़ी सी ज्यादा नींद उन्हें चाहिए होती है। लेकिन इससे भी ज़्यादा ज़रूरी बात यह है कि महिलाओं को दिन भर और रात में खुद को तरोताज़ा रखने और आराम करने के लिए ज़्यादा सहारे और मौक़े की ज़रूरत होती है। 

Web Title: Who sleeps how long and how much Women or men what does research say Know how you measure sleep

स्वास्थ्य से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे