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डेटिंग ऐप के जाल में फंस रहे नाबालिग बच्चे, यौन उत्पीड़न से लेकर जानलेवा अपराध में बन रहे शिकार, केरल पुलिस ने D-DAD पहल से बचाई दर्जनों जान

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: October 5, 2025 12:32 IST

Dating APPS: पुलिस के लिए इस तरह की घटनाएं कोई नयी बात नहीं हैं। पुलिस का कहना है कि ऐसे अपराध तेजी से आम होते जा रहे हैं।

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Dating APPS: केरल में एक ऑनलाइन ऐप का इस्तेमाल करने वाले 16 वर्षीय लड़के के यौन उत्पीड़न का शिकार होने का मामला ‘डेटिंग ऐप’ के खतरों को उजागर करता है। पुलिस ने सरकारी कर्मचारियों समेत 14 लोगों पर किशोर का यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाया है।

इन आरोपियों ने ऐप के जरिए लड़के से कथित तौर पर दोस्ती की थी और बाद में उसका उत्पीड़न किया। पिछले महीने जब जांच शुरू हुई तो पता चला कि किशोर लगभग दो साल से ऑनलाइन मंच पर सक्रिय था और इसके लिए फर्जी प्रोफाइल का उपयोग कर रहा था।

पुलिस के लिए इस तरह की घटनाएं कोई नयी बात नहीं हैं। पुलिस का कहना है कि ऐसे अपराध तेजी से आम होते जा रहे हैं। पुलिस ने कहा कि इस प्रकार के मामले ‘डिजिटल डि-एडिक्शन’ (सोशल मीडिया के इस्तेमाल की लत छुड़ाने के कार्यक्रम यानी डी-डीएडी) कार्यक्रम के दौरान नियमित रूप से उसके सामने आते हैं। डी-डीएडी एक ऐसी पहल है जिसका उद्देश्य ऑनलाइन गेम, सोशल मीडिया और पोर्नोग्राफी के आदी बच्चों की पहचान करना और उन्हें इस लत से बचाना है। यह परियोजना 2023 में शुरू की गई थी और यह देश में अपनी तरह की पहली ऐसी परियोजना है।

वर्तमान में, इसके अंतर्गत छह केंद्र संचालित हैं-तिरुवनंतपुरम, कोल्लम, कोच्चि, त्रिशूर, कोझिकोड और कन्नूर। अभिभावकों, विद्यालयों और बाल अधिकार कार्यकर्ताओं से उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिलने के बाद पुलिस अब वित्त वर्ष 2025-26 की समाप्ति से पहले इस पहल का विस्तार पथनमथिट्टा, अलप्पुझा, कोट्टायम, पलक्कड़, मलप्पुरम, वायनाड, इडुक्की और कासरगोड तक करने की योजना बना रही है।

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, मार्च 2023 और जुलाई 2025 के बीच डी-डीएडी केंद्रों ने डिजिटल लत के 1,992 मामलों का निपटारा किया। इनमें से 571 मामले ऐसे बच्चों के थे जो विशेष रूप से ऑनलाइन गेम के आदी थे। एर्नाकुलम में ‘स्टूडेंट पुलिस कैडेट’ (एसपीसी) परियोजना के नोडल अधिकारी और जिले के डी-डीएडी केंद्र के समन्वयक सोराज कुमार एम बी ने कहा कि इस पहल से सैकड़ों बच्चों को समय पर सहायता मिली है।

उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, "हम देख रहे हैं कि लड़के ज्यादातर ऑनलाइन गेम के आदी हैं जबकि लड़कियां सोशल मीडिया मंचों की ओर ज्यादा आकर्षित होती हैं। हमारे परामर्शदाता (काउंसलर) इन आदतों से छुटकारा पाने के व्यावहारिक तरीके सुझाते हैं और इस प्रक्रिया में माता-पिता को भी शामिल करते हैं।" सूरज के अनुसार, इस परियोजना की एक बड़ी सफलता अभिभावकों के नजरिए में बदलाव लाना रही है।

उन्होंने कहा, ‘‘पहले कई परिवार मोबाइल फोन के इस्तेमाल को शराब या नशीले पदार्थों की तरह लत मानने से इनकार करते थे लेकिन अब अभिभावकों को एहसास हो रहा है कि डिजिटल लत एक वास्तविक लत है और वे चाहते हैं कि उनके बच्चों को इससे छुटकारा मिले।’’

राज्य सरकार ने हाल में इन केंद्रों पर ‘काउंसलर’ के लिए अनुबंधों का नवीनीकरण किया है तथा बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अतिरिक्त कर्मचारियों की नियुक्ति प्रक्रिया में है। बच्चों द्वारा मोबाइल और इंटरनेट के अत्यधिक उपयोग पर हाल में राज्य विधानसभा सत्र में भी चिंता व्यक्त की गई थी। विधायक के जे मैक्सी के एक प्रश्न के उत्तर में मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने बताया था कि जनवरी 2021 से नौ सितंबर, 2025 के बीच मोबाइल फोन और इंटरनेट के दुरुपयोग के कारण 41 बच्चों ने आत्महत्या की।

उन्होंने यह भी बताया था कि इसी अवधि में डिजिटल मंचों के दुरुपयोग से जुड़े यौन या मादक पदार्थों से संबंधित अपराधों में शामिल 30 बच्चों की पहचान की गई और उन्हें कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ा। साइबर कानून विशेषज्ञ और साइबर सुरक्षा फाउंडेशन के संस्थापक अधिवक्ता जियास जमाल ने डी-डीएडी कार्यक्रम को एक ऐसी आदर्श पहल बताया जिसका अन्य राज्यों को भी अनुसरण करना चाहिए।

उन्होंने चेतावनी दी कि नाबालिगों द्वारा डेटिंग ऐप का बढ़ता दुरुपयोग एक गंभीर चुनौती है। पुलिस के अलावा महिला एवं बाल विकास (डब्ल्यूसीडी) विभाग और शिक्षा विभाग भी डिजिटल लत से छुटकारा दिलाने में बच्चों एवं अभिभावकों की मदद के लिए कई कार्यक्रम चला रहे हैं। 

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