इडुक्कीः केरल की एक सत्र अदालत ने पोते का बार-बार यौन उत्पीड़न करने के दोषी 64 वर्षीय दादा को 73 साल कारावास की सजा सुनायी है। यौन उत्पीड़न की यह घटना 2019 की है, जब पीड़ित बालक महज सात साल का था।
पॉक्सो अदालत के विशेष न्यायाधीश टी. जी. वर्गीस ने कहा कि दोषी को विभिन्न धाराओं में सुनाई गई सजा साथ-साथ चलेंगी, इसलिए उसे 20 साल तक जेल में बंद रहना होगा। इडुक्की जिले की विशेष त्वरित अदालत ने सात साल के बच्चे का लंबे समय तक यौन उत्पीड़न करने से जुड़ी विभिन्न धाराओं में दोषी को सजा सुनायी और उस पर 1.6 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया।
इडुक्की जिले में फास्ट-ट्रैक स्पेशल कोर्ट ने पॉक्सो एक्ट के तहत एक बच्चे के बार-बार यौन उत्पीड़न, 12 साल से कम उम्र की नाबालिग के यौन उत्पीड़न और एक रिश्तेदार द्वारा नाबालिग के यौन उत्पीड़न के लिए दोषी को 20-20 साल की सजा सुनाई है।
अधिनियम के तहत प्रत्येक अपराध में न्यूनतम 20 वर्ष कारावास की सजा होती है और अधिकतम मृत्यु है। इसके अलावा, दादा को आईपीसी की धारा 377 के तहत अप्राकृतिक यौन संबंध के अपराध के लिए 10 साल की जेल और किशोर न्याय अधिनियम के तहत एक बच्चे के प्रति क्रूरता के लिए तीन साल के कारावास की सजा सुनाई गई थी। दोषी पर ₹1.6 लाख का जुर्माना भी लगाया गया।
गैर इरादतन हत्या के मामले में सजा काट रहे 90 वर्षीय व्यक्ति को न्यायालय ने दी जमानत
उच्चतम न्यायालय ने उम्र के कारण स्वास्थ्य की स्थिति को देखते हुए गैर इरादतन हत्या के मामले में जेल की सजा काट रहे 90 वर्षीय व्यक्ति को जमानत दे दी। न्यायालय ने इस बात पर भी गौर किया कि व्यक्ति पहले ही तीन साल की सजा काट चुका है।
न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति ए एस ओका की पीठ ने कहा, “जहां तक आवेदक-अपीलकर्ता संख्या एक (अच्छे लाल) का संबंध है, यह देखा गया है कि वह 90 वर्ष से अधिक का है और पहले से ही तीन वर्ष की सजा अवधि काट चुका है।”
पीठ ने कहा, “उम्र के कारण उनकी स्वास्थ्य स्थिति और इस तथ्य के मद्देनजर की उच्च न्यायालय के समक्ष वाद लंबित होने के दौरान वह जमानत पर था और उसके खिलाफ कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं दर्ज की गई है तथा जेल में भी उसका आचरण संतोषजनक था, ऐसे में न्याय के हित में यह आदेश दिया जाता है कि अपील के विचाराधीन रहने के दौरान, आवेदक-अपीलकर्ता संख्या एक को निचली अदालत की संतुष्टि के अनुसार जमानत पर रिहा किया जाए...।”
शीर्ष अदालत इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अप्रैल 2020 के फैसले के खिलाफ उस व्यक्ति द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही है, जिसने लाल सहित दो आरोपियों की सजा को भारतीय दंड संहिता के तहत हत्या के कथित अपराध से गैर इरादतन हत्या में बदल दिया था। उच्च न्यायालय ने उनकी सजा को उम्र कैद से घटाकर 12 वर्ष कर दिया था।