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मध्य प्रदेश: फर्जी एसडीएम नीलम पराशर देती थी नटवर लाल को मात, जारी करती थी गवर्नर के नाम की चिट्ठी, जानिए उसका पूरा कच्चा-चिट्ठा

By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: September 12, 2022 19:03 IST

इंदौर में जब फर्जी एसडीएम नीलम पराशर हूटर बजाती और नीली बत्ती गाड़ी में बैठकर डीएम दफ्तर में दाखिल होती तो हर तरफ सन्नाटा छा जाता था। बेहद शातिराना तरीके से ठगी को अंजाम देने वाली नीलम पराशर को जब मध्य प्रदेश पुलिस ने गिरफ्तार किया तो उसके भी होश उड़ गये।

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ठळक मुद्देइंदौर में पकड़ी गई फर्जी एसडीएम नीलम पराशर जालसाजी में महाठग नटवर लाल को भी मात देती थीलोगों को ठगने के लिए नीलम ने 200 रुपये की दिहाड़ी पर फर्जी पुलिस वालों को पीएसओ बनाया थानीलम पराशर ने सिविल सेवा की तैयारी थी, एग्जाम भी दिया था, लेकिन एसडीएम नहीं बन सकी थी

इंदौर: मध्य प्रदेश पुलिस की गिरफ्त में आने वाली फर्जी एसडीएम महाठग नटवर लाल को भी मात देती थी। वो रौब तो ऐसे गांठती थी कि खाकी वाले भी उसे दूर से सलाम ठोंक देते थे। नीलम पराशर बड़े ही नायाब तरीके से लोगों को झासा दिया करती थी। अपने कारनामे को अंजाम देने के लिए उसने 200 की दिहाड़ी पर फर्जी पुलिस वालों को अपना पीएसओ बनाया था।

जब वो हूटर बजाती और नीली बत्ती गाड़ी में बैठकर डीएम दफ्तर में दाखिल होती तो हर तरफ सन्नाटा छा जाता था। जी हां, बेहद शातिराना तरीके से ठगी को अंजाम देने वाली नीलम पराशर को जब मध्य प्रदेश पुलिस ने गिरफ्तार किया तो पूछताछ के बाद उसके भी होश उड़ गये।

 

सिविल सेवा की तैयारी करने के बाद जब नीलम सचमुच में एसडीएम नहीं बन पाई तो उसके खुराफाती दिमाग ने ऐसी चाल चली, जिसके झांसे में आकर अब तक लगभग 200 से अधिक लोगों को करोड़ों का चूना लग चुका है। फर्जी एसडीएम नीलम पराशर ने ठगी के नायाब तरीके से लाखों-करोड़ों तो कमाये ही साथ में मध्य प्रदेश शासन पर गंभीर सवालिया निशान भी खड़ा कर दिया।

आखिर कैसे कोई राज्यपाल के नाम की चिट्ठी जारी कर सकता है, आखिर कैसे कोई नौकरी दिलाने के नाम पर सरकारी महकमों की ओर से आदेश निकाल सकता है। आखिर कैसे कोई सरकारी विभाग में ट्रांसफर-पोस्टिंग के नाम पर लाखों रुपये वसूल सकता है।

इंदौर पुलिस की गिरफ्त में आने वाली इस फर्जी एसडीएम की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। पुलिस पूछताछ में उसने जो अब तक कबूला है, उसकी माने तो सिविल सर्विस क्रेक न कर पाने वाली बेरोजगार नीलम जब भी किसी एसडीएम की गाड़ी देखती तो वह गुस्से में भर जाती।

बेरोजगारी के आलम में नीलम के शातिर दिमाग में एक आइडिया कौंधा। उसने सोचा कि एसडीएम का एग्जाम नहीं पास किया, फर्जी तरीके से ही सही लेकिन वो एसडीएम बनकर रहेगी। उसके बाद नीलम ने साजिश को अंजाम देने के लिए फर्जी तरीके से एसडीएम से जुड़े हुए दस्तावेज बनवाये।

इतना ही नहीं खुद की सुरक्षा में 200 रुपये रोजाना पर नकली पुलिस वालों को तैयार किया। इस तरह से नीलम ने अपने गुनाहों को अंजाम देने के लिए दो और बेरोजगारों को ठगी का भागिदार बना दिया। 

नीलम ने उनके लिए बाकायदा पुलिस की वर्दी सिलवाई, उनका फर्जी आईकार्ड भी बनवाया, यहां तक की उन्हें नकली खिलौने वाली पिस्टल भी दिलवाई ताकि वो असली पुलिस वाले जैसे दिखाई दें। उसके बाद वो फर्जी पीएसओ के साथ नीली बत्ती वाली एसडीएम की नेमप्लेट लगी गाड़ी में बैठकर इंदौर में ठगने के लिए बेरोजगारों की तलाश करती।

एसडीएम की ठसक वाले अंदाज में ठग मैडम नीलम पराशर मासूम बेरोजगारों को नौकरी दिलवाने भरोसा देती और उन्हें मिलने के लिए कैलेक्ट्रेट में बुलातीं। वो अपने शिकार को डीएम दफ्तर के बाहर खड़ा करती और खुद अंदर जाती। 2 मिनट से 5 मिनट के भीतर तफरी मारती और वापस आती और उन्हें नौकरी देने का झांसा देते हुए पैसों के बन्दोबस्त के लिए कहती।

नीलम की बात से खुश बेरोजगार और उसके परिजन लाखों का इंतजाम करने में जुट जाते थे। वो या तो किसी से कर्ज लेते, अपना खेत गिरवी रखते, उधार मांगते कुछ भी करते लेकिन तय समय पर नोटों की थैली लेकर नीलम पराशर के पास पहुंच जाते। 

पैसे लेने के बाद नीलम उन्हें नौकरी का नियुक्ति पत्र देने के लिए कुछ दिन बाद बुलाती और फिर फर्जी लेटर थमा देती। ऐसा लगता कि वो लेटर बाकायदा महकमे की ओर से जारी किया गया है। लेकिन जब बेरोजगार उस लेटर को लेकर विभाग में पहुंचता तब उसे पता लगता कि एसडीएम साहिबा ने तो ठग लिया।

नीलम पाराशर के इन खुलासों से आम आदमी क्या मध्य प्रदेस पुलिस भी हैरान है। वह ठगी में कुछ इस तरह से एक्सपर्ट थी कि खुद गवर्नर मंगूभाई छगनभाई पटेल के फर्जी लेटरहेड से चिट्ठी बनाकर सरकारी महकमों में भेजती। अब जरा सोचिए कि जिसे भी राज्यपाल के नाम की चिट्ठी मिलती होगी, उसकी भला क्या हालत होती होगी। पुलिस अधिकारियों की मानें तो नीलम पराशर की बॉडी लैंग्वेज इतनी सधी हुई और तेजतर्रार होती थी कि कई बार असली अफसर भी गच्चा खा जाते थे। चाल-ढ़ाल, बातचीत और रौब-गालिब ऐसा कि कई बार असली अफसरों ने भी उसकी बातों में आकर आदेश जारी कर दिया।

मध्य प्रदेश के सागर की रहने वाली नीलम पराशर खुद को एसडीएम देपालपुर बताती थी। लेकिन ठगी का कारोबार वो इंदौर के तेजाजी नगर से चलाती थी। जहां उसने एक आलीशान बंगला किराये पर ले रखा था। नीलम के घर के पास रहने वाले लोगों की मानें तो रोजाना सुबह के 9.30 से 10 के बीच में नीलम दो फर्जी पीएसओ और ड्राइवर के साथ अपने घर से दफ्तर के लिए निकलती थी, उसी एसडीएम की नीली बत्ती और हूटर वाली गाड़ी से। जलवा तो ऐसा था कि पड़ोसी भी नीलम को एसडीएम समझकर हाथ जोड़ते थे।

ऐसा नहीं है कि नीलम कोई पहली बार पुलिस के चंगुल में फंसी है। पुलिस के मुताबिक ऐसे ही मामलों में भोपाल और सागर, जहां की वो रहने वाली है। पुलिस की रडार पर आ चुकी थी। पकड़े जाने के खौफ से नीलम ने अपना ठिकाना इंदौर बना लिया था। लेकिन कहते हैं न कि किस्मत हर समय साथ नहीं देती। इंदौर में उसकी ठगी का घड़ा भरता जा रहा था। इंदौर पुलिस की रडार पर पहली बार वो तब आई, जब वो शहर के एक चर्चित साड़ी की दुकान पर एसडीएम देपालपुर बनकर पहुंची।

दुकान से उसने हजार-दो हजार की नहीं बल्कि 75 हजार रुपए की साड़ियां पसंद की। चूंकि वो एसडीएम देपालपुर बनकर पहुंती थी तो महिला दुकानदार भी उसकी आव-भगत में लगी हुई थी। नीलम पाराशर ने साड़ियां के बदले दुकानदार को चेक थमाते हुए कहा वो कैश में कोई सामान नहीं खरीदती। रौब एसडीएम का, दुकानदार भला कैसे मना कर पातीं। नीलम दुकान से साड़ियों को लेकर फुर्र हो गई, बाद में पता चला कि 75 हजार रुपये का चेक नीलम की तरह फर्जी था।

इसी तरह नीलम ने एक बेरोजगार को डीएम मनीष सिंह के नाम से लेटर जारी कर दिया, जिसमें लिखा था कि उसे एडीएम अजय देव शर्मा के यहां बतौर सुरक्षा गार्ड नियुक्त किया गया है। इस लेटर के बदले नीलम ने उस बेरोजगार से दो लाख रुपए झटक लिए। लेटर लेकर जब बेरोजगार शख्श एडीएम अजयदेव शर्मा के दफ्तर में हाजिर हुआ तो पता चला की नीलम मैडम ने तो उसे दो लाख का चूना लगा दिया है।

पुलिस की चंगुल में वो तब फंसी और सलाखों के पीछे पहुंची, जब वो इंदौर के एक शादी समारोह में एसडीएम की ठाठ लिये शामिल हुई। उस विवाह समारोह में खुद गवर्नर मंगूभाई छगनभाई पटेल भी शामिल हुए थे। लिहाजा सुरक्षा भी टाइट थी लेकिन नीलम पराशर तो एसडीएम का चोला ओढ़े हुई थी तो भला उससे कौन चेक करता लेकिन वो अपने पीएसओ के कारण पुलिस के सामने मात खा गई।

जी हां, असली पुलिस वालों के सामने नकली की अकड़ कैसे चलेगी। पुलिस अधिकारियों को नीलम पर तो नहीं लेकिन उसके पीएसओ पर शुबहा हो गया। असली पुलिस वाले नकली पुलिस वालों को कोने में ले गये। कोने में असली पुलिस वालों का असली रूप देखते ही नकली पुलिस वालों ने कान पकड़ लिये और बताया कि वो तो 200 रुपये की दिहाड़ी पर हैं। पुलिस उसी समय नीलम पराशर को गिरफ्तार करने जा रही थी लेकिन चूंकि कार्यक्रम में गवर्नर भी थे। इसलिए पुलिस ने नीलम को उस समय गिरफ्तार नहीं किया लेकिन वो पुलिस की ट्रैकिंग में आ गई।

नीलम पराशर पर पुलिस ने थोड़ सा होमवर्क किया और सारा कच्चा-चिट्ठा सामने आ गया। कहा जाता है कि वो बड़े-बड़े वीवीआईपी कार्यक्रमों में फर्जी तरीके से बिना बुलावे पहुंच जाती है। वहां जाकर वो वीआईपी लोगों से बात करती, फोटो खिंचवाती और उसके जरिये लोगों पर इंप्रेस करती। आज की तारीख में वही नीलम पराशर सलाखों के पीछे है। जी हां फर्जी एसडीएम की हूटर और बत्ती वाली गाड़ी में इंदौर की तफरी करने वाली नीलम पराशर बतौर अपराधी क्राइम ब्रांच के शिकंजे में है। 

इस समय इंदौर पुलिस उसके अपराध की कुंडली खंगाल रही है। उसके साथ उसका पति और वारदात में शामिल अन्य लोग भी पुलिस के शिकंजे में हैं और पुलिस इस बार नीलम को लंबे समय के लिए जेल भेजने की तैयारी में है।

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