Delhi Marriage Rape Punishment: दिल्ली की एक अदालत ने वर्ष 2017 में नाबालिग से जबरन शादी और दुष्कर्म करने के मामले में 49-वर्षीय एक व्यक्ति को 10 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने कहा कि सजा सुनाते समय इस तरह की घटनाओं की रोकथाम और सुधार दोनों उद्देश्यों के बीच संतुलन कायम करने की जरूरत है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अंकित मेहता इस वर्ष अप्रैल में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के दुष्कर्म के प्रावधानों, यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की धारा छह (गंभीर यौन उत्पीड़न) और बाल विवाह निषेध अधिनियम की धारा नौ (बच्ची से विवाह करने वाले वयस्क पुरुष के लिए दंड) के तहत दोषी ठहराया गये आरोपी के मामले की सुनवाई कर रहे थे। अभियोजन पक्ष के अनुसार, दोषी ने 13-वर्षीय नाबालिग से विवाह किया।
उससे जबरन शारीरिक संबंध बनाए। अदालत ने कहा, ''इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि दोषी द्वारा जबरन विवाह और दुष्कर्म के कारण पीड़िता को मानसिक आघात पहुंचा, लेकिन अदालत ने यह भी पाया कि दोषी की दो नाबालिग बेटियां भी हैं, जो अब 13 और 17 साल की हैं।'' दोषी की बेटियां पहली शादी से हुई थीं।
अदालत ने कहा कि नाबालिग बेटियों का अपने पिता के साथ रहना भी जरूरी है, भले ही तुरंत ऐसा न हो, लेकिन शायद कुछ समय बाद यह जरूरी होगा। अदालत ने यह भी कहा कि छह साल से अधिक समय से जेल में बंद दोषी का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और जेल में उसका आचरण भी संतोषजनक है।
अदालत ने दोषी को आईपीसी की धारा 376 (दो) (आई) और 376 (दो) (एन) के तहत पीड़िता के साथ बार-बार दुष्कर्म करने के अपराध में 10 साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई। साथ ही बाल विवाह निषेध अधिनियम के प्रावधान के तहत उसे दो साल के साधारण कारावास की सजा भी सुनाई गयी। अदालत ने कहा कि दोनों सजाएं साथ-साथ चलेंगी। साथ ही पीड़िता को 10.5 लाख रुपये का मुआवजा भी देने का आदेश दिया गया।