दिल्ली उच्च न्यायालयः 15,000 रुपये की रिश्वत, 1984 में भ्रष्टाचार केस, 40 साल अदालती कार्यवाही, 90 वर्षीय सुरेंद्र कुमार को कोर्ट से राहत, जानें कहानी

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: July 10, 2025 19:24 IST2025-07-10T19:23:58+5:302025-07-10T19:24:45+5:30

Delhi High Court: न्यायाधीश ने आठ जुलाई को कहा, ‘‘सजा पर विचार करते समय, इसे घटाने का एक महत्वपूर्ण कारक अपीलकर्ता की उम्र है।

Delhi High Court Bribe Rs 15000 corruption case in 1984, 40 years court proceedings 90-year-old Surendra Kumar gets relief know story | दिल्ली उच्च न्यायालयः 15,000 रुपये की रिश्वत, 1984 में भ्रष्टाचार केस, 40 साल अदालती कार्यवाही, 90 वर्षीय सुरेंद्र कुमार को कोर्ट से राहत, जानें कहानी

सांकेतिक फोटो

Highlightsकारावास के शारीरिक और मनोवैज्ञानिक प्रभावों को नहीं झेल सकता। सजा को कम करने का मूल उद्देश्य ही विफल हो जाएगा।अदालत ने कहा कि यह घटना जनवरी 1984 में हुई थी

नई दिल्लीः दिल्ली उच्च न्यायालय ने 1984 के भ्रष्टाचार के एक मामले में 90 वर्षीय एक व्यक्ति को राहत देते हुए उसकी सजा को घटाकर एक दिन कर दिया और कहा कि यह देरी शीघ्र सुनवाई के संवैधानिक प्रावधान के ठीक उलट है। न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने कहा कि लगभग 40 वर्षों तक उस व्यक्ति के भाग्य को लेकर बनी अनिश्चितता ही सजा की अवधि घटाने वाला खुद में एक कारक है। न्यायाधीश ने आठ जुलाई को कहा, ‘‘सजा पर विचार करते समय, इसे घटाने का एक महत्वपूर्ण कारक अपीलकर्ता की उम्र है।

 

 

90 वर्ष की आयु में, गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित होने के कारण, वह कारावास के शारीरिक और मनोवैज्ञानिक प्रभावों को नहीं झेल सकता। इस तरह के किसी भी कारावास से अपरिवर्तनीय क्षति का खतरा होगा और सजा को कम करने का मूल उद्देश्य ही विफल हो जाएगा।’’

न्यायाधीश ने कहा, ‘‘यह परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अपीलकर्ता की सजा की अवधि कम करने के लिए एक उपयुक्त मामला है। इसलिए, अपीलकर्ता द्वारा काटी गई सजा की अवधि घटाई जाती है। अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है।’’ अदालत ने कहा कि यह घटना जनवरी 1984 में हुई थी और इसकी कार्यवाही चार दशकों तक जारी रही।

मुकदमा पूरा होने में लगभग 19 वर्ष लगे तथा अपील 22 वर्षों से अधिक समय तक लंबित रही। अदालत ने कहा, ‘‘इस तरह की अत्यधिक देरी स्पष्ट रूप से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत त्वरित सुनवाई के संवैधानिक प्रावधान के विपरीत है।’’ दोषी व्यक्ति भारतीय राज्य व्यापार निगम (एसटीसी) का एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी है।

अदालत ने कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत अपराधों में दोषी पाए जाने के बाद व्यक्ति ने अपनी दोषसिद्धि को चुनौती नहीं दी थी। मुख्य विपणन प्रबंधक सुरेंद्र कुमार को 1984 में एक फर्म के साझेदार से 15,000 रुपये की रिश्वत मांगने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।

कुमार को गिरफ्तारी के तुरंत बाद जमानत पर रिहा कर दिया गया था, लेकिन 2002 में उसे इस मामले में दोषी करार दिया गया। वर्ष 2002 में, उसने अधीनस्थ अदालत के उस आदेश के खिलाफ अपील दायर की, जिसमें तीन साल की कैद और 15,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई थी। उच्च न्यायालय ने पाया कि दोषी ने 2002 में अदालत द्वारा लगाया गया 15,000 रुपये जुर्माना जमा कर दिया था।

Web Title: Delhi High Court Bribe Rs 15000 corruption case in 1984, 40 years court proceedings 90-year-old Surendra Kumar gets relief know story

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