अतीक अहमद, इलाहाबाद में तांगा हांकने वाले का बेटा कैसे बना कुख्यात बाहुबली, जानिए अतीक के अपराध की पूरी कुंडली

By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: March 27, 2023 13:59 IST2023-03-27T13:56:06+5:302023-03-27T13:59:51+5:30

बाहुबली अतीक अहमद की अपराधिक कुंडली को खंगालें तो पता चलता है कि वो किशोर अवस्था से ही अपराधी मानसिकता का है। उसके जुर्म की फेहरिश्त यूपी पुलिस तब से दर्ज कर रही है, जब प्रयागराज को इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था।

Complete history of Atiq Ahmed's crime, how son of a tonga driver became infamous Bahubali in Allahabad | अतीक अहमद, इलाहाबाद में तांगा हांकने वाले का बेटा कैसे बना कुख्यात बाहुबली, जानिए अतीक के अपराध की पूरी कुंडली

फाइल फोटो

Highlightsअतीक अहमद पर हत्या का पहला केस उस वक्त दर्ज हुआ था, जब उसकी मूंछ भी नहीं आयी थी70 के दशक में अतीक के पिता फिरोज अहमद इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर तांगा हांकते थेअतीक के खिलाफ लगभग 83 से अधिक मुकदमे हैं, जिनमें हत्या और बमबाजी के कई केस हैं

प्रयागराज: अतीक अहमद उत्तर प्रदेश के प्रयागराज का वह शातिर अपराधी है, जिसने अपराध की दुनिया से होते हुए सियासत की दुनिया में कदम रखा और आज की तारीख में यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार उसे गुजरात के साबरमती जेल से निकालकर प्रयागराज ला रही है। आज हम उसी अतीक अहमद के काले किस्सों को बयां कर रहे हैं, जिसकी स्याह परछाई से प्रयागराज में अब भी कत्ल-ओ-गारत का खेल चल रहा है।  

अतीक अहमद के पिता तांगा हांकते थे 

अतीक अहमद की अपराधिक कुंडली को खंगालें तो पता चलता है कि वो किशोर अवस्था से ही अपराधी मानसिकता का है। उसके जुर्म की फेहरिश्त यूपी पुलिस तब से दर्ज कर रही है, जब प्रयागराज को इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था। अतीक का जन्म उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती में 10 अगस्त 1962 को हुआ था। पिता फिरोज अहमद इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर तांगा हांकते थे। बेहद गरीब परिवार से आने वाले अतीक अहमद का हाथ जब पहली बार इंसानी खून से रंगे तो वह महज 17 साल का था। जी हां, अतीक अहमद का नाम पहली बार पुलिस डायरी में उस वक्त दर्ज हुआ था, जब उसकी मूंछ भी नहीं आयी थी।

70 के दशक में जब अतीक अपने अपराधिक अतीत को लिये 5 फीट 6 इंच का जवान हुआ तो वो इलाहाबाद की गलियों का कुख्यात बमबाज बन चुका था। कहते हैं कि इलाहाबाद में बमबाजी का सिललिसा अतीक ने ही शुरू किया। इलाहाबाद के चकिया मोहल्ले में अतीक के परिवार का ठिकाना हुआ करता था। दिन भर तांगा हांकने के बाद पिता फिरोज किसी तरह से दो जून की रोटी का इंतजाम करते थे।

हाईस्कूल में फेल होने के बाद बमबाज बना अतीक

बचपन की गरीबी अतीक को बुरी तरह से सालती थी, रही-सही कसर साल 1979 में उस समय पूरी हो गई, जब अतीक हाई स्कूल में फेल हो गया। पिता को इलाहाबाद स्टेशन पर तांगा हांकते देख दसवीं फेल अतीक ने तय किया अमीर बनना है। जरायम का पेशा अतीक को ज्यादा मुफीद लगा और अमीर बनने की चाहत में पहले वो हत्यारा बना और उसके बाद रंगदारी, बमबाजी करते हुए चकिया समेत पूरे इलाहाबाद में फिरोज तांगेवाला वाला अतीक के तौर पर कुख्यात हो गया।

70-80 के दरम्यानी दशक में इलाहाबाद में चांद बाबा नाम के अपराधी का खौफ हुआ करता था। पुलिस भी चांद बाबा के चौक, मीरगंज और रानीमंडी की तरफ जाने से खौफ खाती थी। इसी चांद बाबा के रसूख को कम करने के लिए सफेदपोश नेता और पुलिस ने बदमाशी की दुनिया में नये-नये कदम रखे अतीक का सहारा लिया लेकिन वो भूल गये कि अपराधी तो अपराधी ही होता है। जिस चांद बाबा को खत्म करने के लिए उसे बरक्स अतीक को खड़ा करने की कवायद की गई। आगे चलकर वही अतीक पुलिस के लिए चांद बाबा से भी भारी सिर दर्द साबित हुआ और आज तक परेशानी का सबब बना हुआ है।

साल 1986 में यूपी में वीर बहादुर सिंह की सरकार थी और केंद्र की सत्ता में राजीव गांधी थे। इलाहाबाद के चकिया में अपना खासा दबदबा बना चुका आतीक पर पुलिस ने उस समय सख्ती की लेकिन राजनीतिक दबाव में पुलिस पीछे हट गई। साल 1988 में हत्या के एक केस में अतीक पुलिस के निशाने पर था लेकिन उसकी भनक अतीक को लग गई और वो भेष बदलकर इलाहाबाद की कोर्ट में पहुंचा और सरेंडर करके जेल चला गया।

पहली बार  1989 में निर्दलीय विधायक बना अतीक

पुलिस ने अतीक के जेल जाते ही सख्ती तेज कर दी और उसके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत संगीन धाराएं लगा दी। जेल के बाहर इलाहाबाद के लोगों में चर्चा होने लगी कि पुलिस की सख्ती से अतीक जेल में पड़े-पड़े बर्बाद हो जाएगा। लेकिन एक साल बाद वो जेल से बाहर निकला और 1989 में यूपी विधानसभा में इलाहाबाद पश्चिमी से निर्दलीय पर्चा भरा और विधायक बन बैठा।

अतीक अहमद के विधायक बनने के कुछ ही महीनों के बाद दिनदहाड़े चौक पर चांद बाबा की हत्या हो गई। धीरे-धीरे करके चांद बाबा का गैंग खत्म हो गया। कहते हैं कि चांद बाबा की हत्या का खौफ पूरे इलाहाबाद में इस कदर फैला कि किसी भी सियासी दल के नेता अतीक के खिलाफ इलाहाबाद पश्चिमी की सीट से टिकट लेने से कतराने लगे।

यही कारण था कि साल 1991 और 1993 में अतीक इलाहाबाद पश्चिम सीट से निर्दलीय चुनाव जीता। इस बीच अतीक की नजदीकी दिवंगत सपा प्रमुख और यूपी के मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव से बढ़ी। नतीजा यह हुआ कि समाजवादी पार्टी ने 1996 के विधानसभा चुनाव में अतीक को टिकट दे दिया और वो लगातार चौथी बार विधायक बन गया। लेकिन साल 1999 आते-आते अतीक की कुछ अंधरूनी खटपट सपा से हो गई तो उसे दिवंगत सोनेलाल पटेल ने अपना दल से टिकट दे दिया। अतीक ने प्रतापगढ़ से किस्मत आजमाई लेकिन चुनावी बिसात में उसके हाथ हार लगी।

उस हार से सबक लेते हुए अतीक 2002 के चुनाव में अपनी पुरानी सीट इलाहाबाद शहर पश्चिमी से अपना दल के टिकट पर चुनाव लड़ा और 5वीं बार विधायक बना। लेकिन अतीक अहमद केवल चकिया या इलाहाबाद तक ही बंधकर नहीं रहना चाहता था। साल 2003 में यूपी में मुलायम सिंह यादव की सरकार बनी। अतीक दोबारा सपा में आ गया। साल 2004 के लोकसभा चुनाव में सपा ने उसे फूलपुर से टिकट दिया और इस तरह से अतीक पहली बाद संसद में एंट्री लेता है।

अतीक के भाई अशरफ को साथ रहने वाले राजू पाल ने दे दी मात

चूंकि अतीक जब 2004 में सांसद बना तो उसे इलाहाबाद पश्चिमी की सीट छोड़नी पड़ी। सपा सांसद अतीक अहमद ने खाली की हुई सीट पर अपने भाई खालिद अजीम ऊर्फ अशरफ को सपा के टिकट पर चुनावी मैदान में उतारा लेकिन अशरफ को बसपा प्रत्याशी राजू पाल ने 4 हजार वोटों से हरा दिया। राजू पाल विधायक बनने से पहले कभी अतीक अहमद का बेहद खास आदमी माना जाता है।

अतीक की शागिर्दी में राजू पाल पर हत्या समेत 25 अलग-अलग मामलों में केस दर्ज थे। अतीक को बर्दाश्त न हुआ कि राजू पाल ने उसके भाई अशरफ को हरा दिया। अतीक के कथित इशारे पर 25 जनवरी, 2005 को राजू पाल पर कातिलाना हमला किया गया, जिसमें राजू पाल को 19 गोलियां लगीं और मौके पर ही राजू पाल की मौत हो गई।

राजू पाल की पत्नी पूजा पाल ने सपा सांसद अतीक अहमद, उसके भाई और राजू पाल से चुनाव हारने वाले अशरफ, फरहान और आबिद समेत दर्जनों आरोपियों के खिलाफ एफआईआर करवाया। आरोपियों में एक फरहान के पिता अनीस पहलवान की हत्या का आरोप राजू पाल पर था। हत्या के 9 दिन पहले ही राजू की शादी पूजा पाल से हुई थी। राजू पाल की हत्या में नामजद होने के बावजूद सपा ने अतीक पर कोई कार्रवाई नहीं की।

साल 2005 में राजू पाल की हत्या के कारण खाली हुई इलाहाबाद पश्चिम की सीट पर उपचुनाव हुआ और बसपा ने पूजा पाल को उतारा जबकि सपा ने राजू पाल से हारने वाले और उसकी हत्या में आरोपी अशरफ को दोबारा टिकट दिया। कहते हैं कि अतीक अहमद के खौफ से इलाहाबाद पश्चिम की सीट पर एक तरफा वोट पड़े और राजू पाल की विधवा पूजा पाल को अशरफ ने चुनाव हरा दिया। लेकिन साल 2007 के विधानसभा चुनाव में पूजा पाल ने इलाहाबाद पश्चिमी सीट पर अशरफ को हराकर पति राजू पाल की हत्या का सियासी हिसाब-किताब पूरा कर लिया।

मायावती ने अतीक के दशकों पुराने अपराधिक किले को किया ध्वस्त

साल 2007 में बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी और मायावती के शासनकाल में अतीक के बुरे दिन शुरू हो गये। मायावती ने पुलिस को सख्त एक्शन का आदेश दिया और पुलिस ने देखते ही देखते अतीक के अपराध का दशकों पुराना किला पलक झपकते ध्वस्त कर दिया। सपा प्रमख मुलायम सिंह ने भी मौके की नजाकत भांपते हुए अतीक को नमस्ते कह दिया।

उसके बाद मायावती सरकार ने शुरू किया ऑपरेशन अतीक। पुलिस ने अतीक को मोस्ट वांटेड घोषित करते हुए उसकी पक्की कुंडली तैयार की। पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज उस वक्त अतीक के गैंग में 120 से ज्यादा गुर्गे थे। पुलिस ने 1986 से 2007 तक अतीक पर एक दर्जन से ज्यादा मामले केवल गैंगस्टर एक्ट के तहत दर्ज किए गए। जिनमें अतीक के खिलाफ 83 से अधिक मुकदमे थे। अशरफ और अतीक पर मिलाकर 150 से अधिक मुकदमे थे।

बसपा सरकार ने अतीक पर 20 हजार का इनाम घोषित किया। उसकी करोड़ों की संपत्ति सीज कर दी गईं। इलाहाबाद में उसकी कई बिल्डिंगें गिरा दी गईं। अतीक एक सांसद होने के बावजूद फरार था। उसके खिलाफ पूरे देश में अलर्ट जारी कर दिया गया। उसी दौरान एक दिन दिल्ली पुलिस ने ऐलान किया कि उसने अतीक अहमद को पीतमपुरा के एक अपार्टमेंट से गिरफ्तार कर लिया है।

हाईकोर्ट के 10 जजों ने अतीक की बेल याचिका से खुद को अलग कर लिया

यूपी पुलिस ट्रांजिट वारंट लेकर दिल्ली गई और अतीक को दिल्ली से लाकर यूपी की जेल में डाल दिया। साल 2012 में अतीक ने जेल से विधानसभा चुनाव का पर्चा अपना दल के टिकट से भरा। चुनाव प्रचार के लिए उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट में बेल के लिए अप्लाई किया लेकिन हाईकोर्ट के 10 जजों ने अतीक की बेल पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया।

किसी तरह 11वें जज सुनवाई के लिए राजी हुए और उन्होंने अतीक को बेल दे दी। साल 2012 के चुनाव में अतीक खुद पूजा पाल के सामने इलाहाबाद पश्चिम सीट पर उतरा लेकिन पूजा पाल ने अतीक को हरा दिया। यूपी में सपा की सरकार बनी लेकिन मुख्यमंत्री बने अखिलेश यादव। अखिलेश यादव अतीक को पसंद नहीं करते थे लेकिन सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के कहने पर अतीक को सुलतानपुर से टिकट दे दिया।

सुल्तानपुर में जिला सपा के कार्यकर्ताओं ने अतीत का विरोध किया। जिसके कारण अखिलेश यादव ने अतीक का टिकट तो बरकरार रखा लेकिन सीट बदल दी। अतीक को श्रावस्ती से टिकट दे दिया गया। लेकिन अतीक को वहां पर हार का सामना करना पड़ा। उसके बाद अखिलेश से अतीक के रिश्ते खराब हो गए।

सपा की कमान संभालते ही अखिलेश ने अतीक को बाहर किया

साल 2016 में यादव परिवार की आपसी खींचतान में अखिलेश यादव ने पूरी तरह से पार्टी पर अधिकार हासिल कर लिया और बतौर सपा प्रमुख साफ कर दिया कि पार्टी में अतीक के लिए कोई जगह नहीं है। इस तरह अतीक के बेल, जेल के खेल का अंत हुआ और फरवरी 2017 हाईकोर्ट ने अतीक के खिलाफ सारे मामलों में मिली जमानत रद कर दी और उसके बाद से अतीक जेल में ही है।

साल 2017 में अखिलेश सरकार की विदाई हो गई और यूपी के नये मुख्यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ और प्रदेश भाजपा प्रमुख केशव प्रसाद मौर्य, जो कि फूलपुर से सांसद थे। उनके डिप्टी सीएम बनने के कारण फूलपुर लोकसभा के लिए उपचुनाव हुए। जेल में बैठे अतीक ने भी निर्दलीय पर्चा भला लेकिन उसकी हार हुई।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अतीक को यूपी के बाहर भेजो

अतीक दिसंबर 2018 में देवरिया की जेल में कैद था। उस पर लखनऊ के एक बिजनेसमैन को किडनैप करने और जेल में पीटने का आरोप लगा।  उसके बाद अतीक को बरेली जेल भेजने का फैसला हुआ। बरेली जेल प्रशासन ने अतीक का नाम सुनते ही हाथ खड़े कर दिये। तब तक 2019 के लोकसभा चुनाव आ चुके थे।

अतीक को बरेली न ले जाकर इलाहाबाद के नैनी जेल शिफ्ट कर दिया गया। अतीक द्वारा जेल में गुंडई किये जाने का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और सुप्रीम कोर्ट ने अतीक अहमद को बेहद कुख्यात और शातिर अपराधी मानते हुए उत्तर प्रदेश से बाहर किसी दूसरे राज्य की जेल में भेजने को कहा। जिसके बाद अतीक को अहमदाबाद की साबरमती जेल भेज दिया गया और जून 2019 से अतीक वहीं कैद था। अभी ताजा मामले में अतीक राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल और दो सरकारी गनर की हत्या मामले में बुरी तरह फंस गया है।

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