बिहार में हर दिन 953 अपराध, 8 हत्या, 33 अपहरण, महिलाओं के खिलाफ 55 अपराध और दो से अधिक बलात्कार, देखिए आंकड़े
By एस पी सिन्हा | Updated: July 22, 2025 15:40 IST2025-07-22T15:39:40+5:302025-07-22T15:40:45+5:30
14 करोड़ बिहारवासी इस अचेत हाथों में सुरक्षित नहीं हैं, इसलिए बिहार इन दिनों नाजुक दौर से गुजर रहा है।

सांकेतिक फोटो
पटनाः बिहार में विधानसभा चुनाव नज़दीक आते ही अपराध की घटनाएं बढ़ने लगी हैं। ऐसे में राज्य में कानून-व्यवस्था को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। बता दें कि 2005 में कुल अपराध 1,07,664 प्रति वर्ष था, जो 2024 में बढ़कर 3,47,835 हो गया। बिहार में हर दिन 953 अपराध हो रहे हैं, जिसमें आठ हत्याएं, 33 अपहरण, 136 जघन्य अपराध, महिलाओं के खिलाफ 55 अपराध, महिलाओं का 28 अपहरण, दो से अधिक बलात्कार, 17 बच्चों का अपहरण शामिल हैं। इससे पहले, राजद ने एनसीआरबी के आंकड़ों का हवाला देते हुए राज्य सरकार पर हमला किया था। तेजस्वी यादव ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अचेत स्थिति में हैं, उनकी स्थिति शासन चलाने लायक नहीं है, अब उनसे संभल नहीं रहा है। उन्होंने कहा कि बिहार में अपराधियों के तांडव से लोग सहमे हुए हैं। पुलिस के लोग पीटे जा रहे हैं।
बिहार में कोई कानून का राज नहीं है। यहां अपराधी राज चल रहा है। 14 करोड़ बिहारवासी इस अचेत हाथों में सुरक्षित नहीं हैं, इसलिए बिहार इन दिनों नाजुक दौर से गुजर रहा है। अपराधियों के तांडव से सहमा दिखता है। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार के 20 वर्ष के शासनकाल में 60,000 हत्याएं हुई हैं। अगर मासिक औसत निकालेंगे तो 250 से अधिक प्रतिमाह बिहार के अंदर हत्याएं हो रही हैं।
25,000 रेप और गैंगरेप की घटनाएं हुई हैं। औसतन हर माह लगभग 150 रेप और गैंगरेप की घटनाएं हो रही हैं। कहां है कानून का राज। पूरी तरह से सिस्टम ने अपराधियों के सामने घुटने टेक दिया है। नीतीश कुमार, भाजपा के चरणों में झुक गए हैं। उल्लेखनीय है कि बिहार के राज्य अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एससीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक, 2015 से 2024 तक बिहार में कुल अपराधों की संख्या में 80.2 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। वहीं, राष्ट्रीय स्तर के आंकड़ों के अनुसार, 2015 से 2022 तक भारत में कुल अपराधों में 23.7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
एक रिपोर्ट के अनुसार अगर 2016, 2020 (कोविडकाल) और 2024 के साल को छोड़ दें, तो बिहार में अपराधों की संख्या 2015 से हर साल बढ़ी है। सबसे ज़्यादा बढ़ोतरी 2017 में दर्ज की गई थी, जब अपराध 24.4 फीसदी बढ़े थे। वहीं, 2023 में बिहार में कुल करीब 3.53 लाख अपराध हुए, जो बीते दस सालों में सबसे ज्यादा थे।
जून 2025 तक बिहार में 1.91 लाख अपराध हुए हैं। बता दें कि अभी साल 2025 का आधा समय ही बीता है। 2015 से बिहार कुल अपराध दर के मामले में 10 सबसे खराब राज्यों में से एक रहा है। हालांकि, जनसंख्या के हिसाब से बिहार में प्रति लाख लोगों पर अपराध दर राष्ट्रीय औसत से काफी कम रही है। 2022 में बिहार में प्रति लाख जनसंख्या पर 277 अपराध के मामले दर्ज किए गए थे।
बिहार 2022 में देश में अपराध की दर के मामले में सातवें स्थान पर रहा। तब भारत में प्रति लाख जनसंख्या पर कुल अपराध दर 422 दर्ज की गई थी। एनसीआरबी के आंकड़ों की मानें तो बिहार में डकैती और जबरन वसूली के मामलों में काफी कमी आई है। फिर भी बिहार राज्यों में क्रमशः तीसरे और सातवें स्थान पर है।
अगर हत्या की घटनाओं की बात करें तो 2001 में 3619, 2005 में 3423 और 2020 में 3149 हत्या के मामले दर्ज हुए। 2001 से 2020 तक हत्याओं में लगभग 12.9 फीसदी की गिरावट आई। हालांकि, 2025 के जनवरी महीने में 156 हत्याएं दर्ज की गईं, जिसका मासिक औसत (156) 2020 के मासिक औसत (लगभग 262) से काफी कम है।
बिहार में डकैती की घटनाएं 2001 में 1293 और 2005 में 1191 थीं। लेकिन 2020 में यह संख्या घटकर केवल 222 रह गई। साल 2005 से 2020 तक डकैती की घटनाओं में 81.4 फीसदी की भारी कमी आई। यह नीतीश सरकार के शुरुआती कार्यकाल की बड़ी उपलब्धि थी। आंकड़ों के अनुसार, बिहार में जून 2025 तक 1,379 हत्याएं दर्ज की गईं।
जबकि 2024 में कुल 2,786 और 2023 में 2,863 हत्याएं दर्ज की गईं। आंकड़ों की मानें तो दुष्कर्म के मामले 2001 में 746 से बढ़कर 2005 में 973 और 2020 में 1438 हो गए। 2005 से 2020 तक दुष्कर्म में लगभग 47.8 फीसद की महत्वपूर्ण वृद्धि दर्ज की गई। यह एक गंभीर चिंता का विषय है और महिला सुरक्षा पर सवाल खड़े करता है।
अकेले जनवरी 2025 में 121 मामले दर्ज हुए। बिहार पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक 2025 (जून तक) में हत्याओं का मुख्य कारण व्यक्तिगत बदला था। इस साल ऐसे 513 मामले दर्ज किए गए। जो कुल हत्याओं का 37.8 फीसदी था। वहीं, साल 2025 में संपत्ति विवाद के कारण 139 मामले दर्ज किए गए। जो कुल हत्याओं का 10.2 फीसदी था।
इस संबंध में पूछे जाने पर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डा अजय आलोक ने कहा कि लालू राज में फिरौती के लिए अपहरण 'जंगलराज' का पर्याय बन गया था। 2001 में 385 और 2005 में 251 मामले थे, लेकिन 2020 में यह संख्या घटकर केवल 42 रह गई। 2005 से 2020 तक फिरौती के लिए अपहरण में करीब 83.2 फीसद की भारी कमी आई, जो 'सुशासन' के सबसे बड़े संकेतकों में से एक था।
उन्होंने कहा कि लालू-राबडी के शासनकाल में कानून-व्यवस्था की स्थिति इतनी खराब थी कि बड़े अधिकारी भी अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंतित रहते थे। क्योंकि उस समय अपहरण एक उद्योग का रूप ले चुका था। इन विषम परिस्थितियों में नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री का कांटों भरा ताज संभाला।
2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश कुमार का पहला लक्ष्य कानून-व्यवस्था में सुधार करना था। उन्होंने 'बिहार में अपराध को नियंत्रित नहीं किया जा सकता' इस मिथक को तोड़ते हुए शस्त्र अधिनियम के तहत लंबित मामलों के त्वरित निपटारे पर जोर दिया। सरकार ने अपराध पर 'जीरो टॉलरेंस' नीति अपनाई और जिलाधिकारियों व पुलिस अधीक्षकों को कानून-व्यवस्था के लिए सीधे जिम्मेदार ठहराया।
डा आलोक ने बताया कि जनवरी 2006 से दिसंबर 2014 के बीच 80,000 से अधिक अपराधियों को सजा सुनाई गई। इनमें 200 से अधिक अपराधियों को फांसी की सजा, 1,522 को आजीवन कारावास और लगभग 4,000 अपराधियों को 10 साल से अधिक की सजा हुई।