Anant Singh: अनंत सिंह का आपराधिक इतिहास, 9 साल की उम्र में संन्यासी जीवन के लिए घर त्यागने वाला कैसे बना बाहुबली?
By एस पी सिन्हा | Updated: November 2, 2025 20:47 IST2025-11-02T18:13:25+5:302025-11-02T20:47:20+5:30
अनंत सिंह का जीवन उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। एक समय ऐसा था जब उनका मन दुनियादारी से हटकर पूजा-पाठ में लगता था, लेकिन एक घटना ने उन्हें वैराग्य से हिंसा के रास्ते पर ला खड़ा किया।

Anant Singh: अनंत सिंह का आपराधिक इतिहास, 9 साल की उम्र में संन्यासी जीवन के लिए घर त्यागने वाला कैसे बना बाहुबली?
पटना: दुलारचंद यादव मर्डर केस में बाहुबली अनंत सिंह को अदालत ने 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। जदयू उम्मीदवार अनंत सिंह को रविवार को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच पटना सिविल कोर्ट स्थित एमपी-एमएलए कोर्ट में पेश किया गया। पेशी को देखते हुए कोर्ट परिसर में पुलिस बल की अतिरिक्त तैनाती की गई थी। काफी संख्या में समर्थकों के जुटने की संभावना को देखते हुए सुरक्षा व्यवस्था और मजबूत की गई थी। पटना पुलिस ने अनंत सिंह को रिमांड पर लेने के लिए अर्जी दाखिल की थी। हालांकि कोर्ट में सुनवाई के बाद 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया। बाहुबली का सियासत के साथ लंबा चौड़ा खूनी इतिहास रहा है।
सियासत के साथ-साथ आपराधिक पैठ
अस्सी के दशक में गांव के ही मुन्नी लाल सिंह से इनकी खूनी अदावत छिड़ गयी। इस अदावत में अनंत सिंह के बड़े भाई विरंची सिंह की मुन्नी लाल सिंह ने हत्या कर दी। इसके पूर्व अनंत सिंह ने भी मुन्नी लाल सिंह के कई स्वजनों को मौत के घाट उतार दिया था। मुन्नी-अनंत के बीच कई वर्षों तक खूनी अदावत बाढ़ की धरती को खून से सींचती रही। बेगूसराय के पास मुन्नी लाल सिंह की हत्या के बाद अनंत सिंह कुनबे का खौफ बाढ़ में इस कदर छा गया कि खिलाफ में जिसने भी आवाज निकाली, उसकी जुबान हमेशा के लिये खामोश कर दी गयी।
महेश सिंह की बम मारकर हत्या
अस्सी के ही दशक में अनंत सिंह की अदावत मोकामा के महेश सिंह के साथ ठन गई। उस समय तक अनंत सिंह की आपराधिक सत्ता की गूंज पूरे बिहार तक पसर गई। आरोप है कि अनंत सिंह ने महेश सिंह को रास्ते से हटाने के लिये मोकामा के रंगरुट नरेश सिंह से हाथ मिला लिया और नगर के जेपी चौक पर 1985 में महेश सिंह की बम मारकर हत्या कर दी गई। 1985 में ही दिलीप सिंह ने मोकामा से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विधानसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन कांग्रेस के श्याम सुंदर सिंह धीरज के हाथों मात खा गये।
जातीय संघर्ष
इस जंग में पराजय के बाद दोनों भाइयों का आतंक बढ़ता ही गया। इस दौर में बाढ़ के राजपूत लड़ाकों से इनकी खूनी जंग छिड़ गई। ऐसा आरोप है कि अनंत सिंह ने इस दौर में दर्जनों राजपूत युवकों की हत्या कर अपना वर्चस्व बना लिया। 1990 के चुनाव में दिलीप सिंह ने जनता दल के टिकट पर सियासी सफर का आगाज किया। 1995 के चुनाव में बाढ़ विधानसभा क्षेत्र से अनंत सिंह के भाई सच्चिदानंद सिंह उर्फ फाजो सिंह ने अपनी किस्मत तो आजमाई, लेकिन अपने ही वंश के विवेका पहलवान की चुनावी मौजूदगी में इनकी हार हो गई।
अनंत सिंह के आतंक से विरोधियों ने छोड़ा गांव
इस चुनाव में विजय कृष्ण की जीत हुई। फाजो सिंह की पराजय का ठीकरा अनंत सिंह ने विवेका पहलवान पर फोड़ दिया। परिणाम स्वरुप विवेका पहलवान को लदमा गांव छोड़ना पड़ा। विवेका पहलवान ने गांव तो छोड़ दिया, लेकिन अनंत सिंह से इनकी भीषण खूनी जंग छिड़ गई। इस जंग में अनंत सिंह के कई शूटर और रिश्तेदारों की मौत हुई। बाद के दिनों में अनंत सिंह ने राजपूत समाज के दर्जनों लोगों को क्रूरता पूर्वक हत्या की। अनंत सिंह के आतंक से हत्या की कई वारदातों की प्राथमिकी तक दर्ज नहीं हुई। ऐसा भी आरोप है कि खुद अपने ही गांव लदमा में भी अनंत सिंह ने कई लोगों की हत्या की।
बच्चू सिंह को घर से खींच कर गोलियों से भूनने का आरोप
आरोप है कि 2000 के चुनाव में अपने भाई दिलीप सिंह को जिताने के लिए सूरजभान समर्थक भाववाचक निवासी बच्चू सिंह को घर से खींच कर गोलियों से भून दिया और क्रूरता की सारी सीमा लांघते हुए सिर भी काट लिया। 2014 में बाढ़ में यादव समाज के पुटुस यादव को एक अन्य युवक के साथ बेरहमी से हत्या हुई। इस घटना में अनंत सिंह की गिरफ्तारी भी हुई। अनंत सिंह का दो दशक का जितना लंबा सियासी सफर रहा है, उससे कहीं लंबा आपराधिक इतिहास भी है। अपने बेखौफ अंदाज के लिए इनकी प्रसिद्धि है।
अनंत सिंह पर 7 हत्याओं , 11 हत्या के प्रयास और अपहरण सहित 38 आपराधिक मामले
अनंत कुमार सिंह , जिन्हें छोटे सरकार के नाम से भी जाना जाता है, के चुनावी हलफनामे के अनुसार, उन पर 7 हत्याओं , 11 हत्या के प्रयास और अपहरण के 4 मामलों सहित 38 आपराधिक आरोप हैं। उनकी उम्र 64 साल हो चुकी है, चाहने वाले अब उन्हें 'दादा' के नाम से भी पुकारते हैं। वैसे अनंत सिंह की छवि बाहुबली की है, और मोकामा समेत बिहार की जनता की इसकी गवाह है।
9 वर्ष की उम्र में छोड़ दिया था घरवार
अनंत सिंह का जीवन उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। एक समय ऐसा था जब उनका मन दुनियादारी से हटकर पूजा-पाठ में लगता था, लेकिन एक घटना ने उन्हें वैराग्य से हिंसा के रास्ते पर ला खड़ा किया। 5 जनवरी, 1967 को पटना जिले के बाढ़ कस्बे के पास नदवां गांव में जन्मे अनंत सिंह चार भाइयों में सबसे छोटे थे। उनका मन बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई में नहीं लगता था, इसलिए चौथी कक्षा के बाद उन्होंने स्कूल छोड़ दिया।
उनका झुकाव धर्म और आध्यात्मिकता की ओर था, जिसके चलते मात्र 9 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ दिया। रिपोर्टों के अनुसार, वह हरिद्वार चले गए और साधुओं के बीच रहकर उनकी सेवा और पूजा-पाठ में लीन रहने लगे। लेकिन वैराग्य का यह मोह जल्द ही भंग हो गया।
इस घटना से निराश होकर छोड़ा संन्यासी जीवन
एक दिन साधुओं के बीच हुए हिंसक झगड़े को देखकर अनंत दंग रह गए। उन्हें लगा कि जहां वैराग्य है, वहां भी हिंसा और कलह है। इस घटना से निराश होकर उन्होंने संन्यासी जीवन त्याग दिया और वापस अपने गांव लौट आए। गांव लौटने के कुछ समय बाद ही एक ऐसी घटना घटी, जिसने अनंत सिंह के जीवन की दिशा पूरी तरह बदल दी। एक दोपहर जब वह खाना खा रहे थे, तभी उन्हें पता चला कि उनके बड़े भाई बिराची सिंह को गांव के चौक पर ही गोली मारकर हत्या कर दी गई है।
बड़े जमींदारों में गिना जाता था परिवार
अनंत सिंह का परिवार उस समय इलाके के बड़े जमींदारों में गिना जाता था। उस दौर में बिहार में माओवादी संगठनों का ज़मींदारों से संघर्ष चरम पर था। पूछताछ करने पर पता चला कि माओवादी संगठन के सरगना ने ही बिराची सिंह की हत्या की है। अनंत आग-बबूला हो गए और उन्होंने भाई के हत्यारे से बदला लेने की ठान ली। हालांकि परिवार ने अनंत को पुलिस पर भरोसा रखने को कहा, लेकिन महीनों बीत जाने के बाद भी जब पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की, तो अनंत ने ‘खुद इंसाफ’ करने का फैसला कर लिया।
भाई के हत्यारे को ठिकाने का आरोप
उनपर ये भी आरो है कि कि एक मुखबिर से सूचना मिलते ही अनंत सिंह अपने भाई के हत्यारे को ठिकाने लगाने के लिए तुरंत निकल पड़े। उनके साथी ने हथियार न होने और नदी पार करना मुश्किल होने की बात कही, लेकिन बदले की धुन सवार अनंत ने गंगा नदी में छलांग लगा दी। घंटों तैरने के बाद वह नदी पार कर जंगल में पहुंचे, जहां उनका सामना हत्यारे से हुआ। उनके पास कोई हथियार नहीं था, इसलिए उन्होंने पत्थर उठाया।
उन्होंने पत्थर से हमला कर हत्यारे को पहले बेहोश किया और फिर एक बड़े पत्थर से उसका सिर कुचल डाला। खून से सने हाथों के साथ नदी पार कर अनंत सिंह वापस अपने गांव नदवां लौटे। भाई की हत्या का यह प्रतिशोध ही वह पहला कदम था, जिसने एक वैरागी बालक को बाहुबल की दुनिया में धकेल दिया।
काफिले में चलती हैं 30 से ज्यादा गाड़ियां
इस बार चुनाव प्रचार के दौरान अनंत सिंह 2.70 करोड़ रुपये से अधिक की टोयटा लैंड क्रूजर कार में नजर आए थे। अक्सर चुनाव प्रचार के दौरान उनके काफिले में 30 से ज्यादा गाड़ियां होती हैं। महंगी कार ही नहीं, अनंत सिंह घोड़ा-हाथी तक पालते हैं और उसकी सवारी भी करते हैं। संपत्ति में भी अनंत सिंह 'बाहुबली' हैं, जिसका प्रमाण उनका चुनावी घोषणा-पत्र ही है। उनके परिवार के पास कुल चल-अचल संपत्ति करीब 100 करोड़ रुपये की है।
अनंत सिंह करोड़ों के हैं मालिक
अनंत सिंह करोड़ों के मालिक हैं। उनके पास चल संपत्ति करीब 26.66 करोड़ रुपये की और अचल संपत्ति 11.22 करोड़ रुपये की है। हालांकि, उनसे अधिक धनवान उनकी पत्नी नीलम देवी हैं। उनके पास चल संपत्ति 13.07 करोड़ और अचल संपत्ति 49.65 करोड़ रुपये की है। दोनों पति-पत्नी को मिलाकर कुल चल-अचल संपत्ति करीब 100 करोड़ रुपये की है। हालांकि अनंत कुमार सिंह पर 27.49 करोड़ रुपये और उनकी पत्नी पर 23.51 करोड़ रुपये का लोन है।
संपत्ति में सोना-चांदी है भरपूर
महंगी कारों के अलावा अनंत सिंह के पास भरपूर सोना-चांदी भी है। दोनों पति-पत्नी गहने के शौकीन हैं। अनंत सिंह के पास 150 ग्राम सोने के गहने हैं, जिसकी कीमत करीब 15 लाख रुपये है। वहीं उनकी पत्नी के पास 701 ग्राम सोने के जेवरात हैं, जिसकी कीमत 62 लाख रुपये से अधिक है, पत्नी नीलम देवी के पास 6.3 किलो चांदी भी है, जिसकी अनुमानित कीमत 9.45 लाख रुपये है। इस तरह से दोनों पति-पत्नी के पास करीब 91 लाख रुपये के जेवरात हैं।
शेयर बाजार में करीब 10 करोड़ रुपये का निवेश
अनंत सिंह शेयर बाजार में पैसे लगाते हैं। उनका कुल निवेश करीब 10 करोड़ रुपये का है। जबकि पत्नी ने नाम 21 लाख रुपये का निवेश है। अनंत का निवेश बॉन्ड, शेयर बाजार और कई कंपनियों में हिस्सेदारी हैं। अनंत सिंह को घोड़े पालने का खूब शौक रहा है। इसके अलावा, उनके पास गाय-भैंस भी बड़ी संख्या में रहे हैं। अनंत सिंह ने अपने पास हलफनामे में गाय, भैंस और हाथी होने की बात कही है। जिसकी कीमत करीब 1.90 लाख रुपये आंकी गई है।
करोड़ों की लग्जरी कारें
अनंत सिंह के पास तीन लग्जरी एसयूवी वाहन हैं, जिनकी कीमत 3.23 करोड़ रुपये है। वहीं उनकी पत्नी के पास तीन कारें हैं, जिनकी कीमत 77.62 लाख रुपये बताई गई है। बता दें कि इससे पहले 2020 के विधानसभा चुनाव में अनंत सिंह की पत्नी ने राजद के टिकट पर मोकामा सीट जीती थीं। लेकिन बाद में राज्य की एनडीए सरकार का समर्थन करने लगी थीं। वहीं अनंत सिंह 1990 से मोकामा सीट से 5 बार विधायक रह चुके हैं। उनके परिवार ने इस सीट पर लगभग तीन दशक से अपना दबदबा बनाए रखा है।