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क्या होता है FPO और IPO, शेयर बाजार में कंपनियां क्यों लाती हैं इन्हें

By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: February 2, 2023 22:27 IST

कोई भी कंपनी कारोबार की शुरूआत अपनी पूंजी का निवेश करती है लेकिन चूंकि कंपनी के उत्पाद या सेवाएं बहुत बड़े उपभोक्ता वर्ग को टार्गेट करके बनाई जाती हैं। इस कारण कंपनी अपनी पूंजी के अलावा शेयर बाजार के IPO और FPO के जरिये भी पूंजी इकट्ठा करती है।

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ठळक मुद्देकोई भी कंपनी IPO के जरिये ही शेयर बाजार के लिस्टिंग में शामिल होती हैFPO वही कंपनी जारी करती है, जो पहले से शेयर बाजार में लिस्ट होकंपनी FPO से इकट्ठा की गई पूंजी कारोबार के कैश फ्लो के लिए करती है

दिल्ली: FPO यानी फॉलोऑन पब्लिक ऑफर की चर्चा इन दिनों तेजी से हो रही है। अडानी समूह और अमेरिकी रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग के बीच मचे घमासान के दौरान अडानी इंटरप्राइजेज ने शेयर बाजार में 27 जनवरी को 20,000 करोड़ रुपए का FPO शेयर बाजार में उतारा था। अडानी समूह ने 1 फरवरी को पूरी तरह से सब्सक्राइब हो चुके FPO को बाजार बंद होने के बाद रात में वापस लेने और निवेशकों के लगाये पैसों को वापस करने का ऐलान किया।

आखिरकार क्या होता है FPO यानी फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर और यह IPO यानी इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग से कितना अलग होता है? कंपनियां FPO या IPO क्यों लाती लाती हैं। यहां हम बेहद सरल भाषा में FPO और IPO की इसी गुत्थी को समझने की कोशिश करेंगे। FPO और IPO के फंडामेंलट कॉसेप्ट को समझने से पहले हमें इस बात को समझना होगा कि कोई भी कंपनी किसी भी कारोबार को शुरू करने के लिए अपनी पूंजी का निवेश करती है लेकिन चूंकि कंपनी के उत्पाद या सेवाएं बहुत बड़े उपभोक्ता वर्ग को टार्गेट करके बनाई जाती हैं और उस उत्पाद या सेवाओं के लिए कंपनी की पूंजी काफी नहीं होती।

इस कारण कंपनी पूंजी जुटाने के लिए पब्लिक डोमेन में जाती है। पूंजी जुटाने के इसी तरीके को FPO और IPO के नाम से जाना जाता है। इसमें एक बात और समझ लीजिए कि IPO या FPO वही कंपनियां ला सकती हैं, जो शेयर बाजार में लिस्टेड होती हैं।

क्या है IPO

कोई भी कंपनी जब पहली बार पूंजी पैदा करने के लिए शेयर बाजार में उतरती है तो उसे IPO यानी इनिशियल पब्लिक ऑफर के जरिये आना होता है। IPO के जरिये ही कंपनी शेयर बाजार के लिस्टिंग में शामिल होती है। जिसके बाद कंपनी को सार्वजनिक रूप से कारोबार करने वाली कंपनी का दर्जा हासिल हो जाता है और उसके बाद निवेशक कंपनी के शेयर के खरीद और बेच सकते हैं।

IPO के जरिये किसी भी कंपनी की विश्वसनीयता की परख होती है और ओपन मार्केट के जरिये कंपनी पूंजी इकट्ठा करती है। कोई भी कंपनी तभी IPO जारी करती हैं, जब उसे ज्यादा मात्रा में पूंजी की जरूरत होती है। IPO में शेयरों की बिकवाली के लिए कीमतें पहले से तय होती हैं, जिसे प्राइस बैंड कहते हैं और इसे लीड बैंकर्स तय करते हैं। IPO में निवेश अपेक्षाकृत जोखिम भरा होता है लेकिन साथ ही निवेशक द्वारा IPO खरीदने पर उन्हें जोखिम के लिए पर्याप्त मुआवजा भी दिया जाता है।

कंपनियां IPO के जरिये पूंजी हासिल करने के बाद उसे कंपनी के कार्यों में लगाती है और जैसे-जैसे कंपनी का कार्य तेजी पकड़ता है तो उसके विस्तार के आवश्यक पूंजी जुटाने के लिए कंपनी बाजार में FPO यानी फोलो ऑन पब्लिक ऑफर जारी करती है। इस बात को याद रखें कि कोई भी कंपनी पब्लिक डोमेन से कैपिटल पैदा करने के लिए पहले IPO लाएगी और उसके बाद ही वो FPO ला सकती है।

क्या है FPO

FPO यानी फोलो ऑन पब्लिक ऑफर वही कंपनी जारी करती है, जो पहले से शेयर बाजार में लिस्ट हो। IPO से पूंजी इकट्ठा करने के बाद कंपनी और ज्यादा पूंजी के लिए बाजार में जाती है और निवेशकों के लिए नया शेयर ऑफर करती है। FPO बाजार में पहले से मौजूद कंपनी से स्टॉक्स से अलग होते हैं।

कंपनी FPO के जरिये नया शेयर कैपिटेल रेज करती है, ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि कंपनी FPO से इकट्ठा की गई पूंजी से अपना बैंक लोन चुकाती है या फिर नए शेयरों से मिले कैपिटल का इस्तेमाल वह कैश फ्लो की जरूरतों को पूरा करने या फिर कारोबार बढ़ाने के लिए करती है। FPO के माध्यम से कंपनी अतिरिक्त शेयर्स को बाजार में लाती है।

FPO जारी करते समय कंपनी शेयरों का प्राइस बैंड बाजार में मौजूद शेयरों की कीमत से कम रखती है। कंपनी बाजार में FPO उतारते समय पहले से मौजूद शेयरों की संख्या का भी ध्यान रखती है और उसके हिसाब से ही FPO उतारती है। आमतौर पर कंपनी मौजूदा मार्केट प्राइस से कम कीमत पर इसे ऑफर करती हैं।

FPO को IPO की तुलना में अपेक्षाकृत कम जोखिम भरा माना जाता है क्योंकि निवेशकों को पहले से कंपनी के बारे में, उसके साख के बारे में जानकारी उपलब्ध रहती है।

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