मौजूदा सुस्ती के लिए राजन, पटेल के प्रयासों को जिम्मेदार ठहराना ‘ दु:खद’‘ : आचार्य

By भाषा | Updated: November 10, 2020 22:36 IST2020-11-10T22:36:40+5:302020-11-10T22:36:40+5:30

To blame the efforts of Rajan, Patel for the current sluggishness "sad": Acharya | मौजूदा सुस्ती के लिए राजन, पटेल के प्रयासों को जिम्मेदार ठहराना ‘ दु:खद’‘ : आचार्य

मौजूदा सुस्ती के लिए राजन, पटेल के प्रयासों को जिम्मेदार ठहराना ‘ दु:खद’‘ : आचार्य

मुंबई, 10 नवंबर भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने कहा है कि मौजूदा सुस्ती के लिए पूर्व गवर्नरों उर्जित पटेल और रघुराम राजन की बैंकों के अवरुद्ध कर्जों की सफाई करने की कवायद को जिम्मेदार ठहराना ‘दु:खदायी’ है।

आचार्य ने मंगलवार को कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक भारी डूबे कर्ज में फंसे थे। पिछले एक दशक में इसमें 100 अरब डॉलर का करदाताओं का पैसा अटका था, लेकिन इसके कोई नतीजे नहीं मिल रहे थे। ‘सब चलता है’ के रवैये की वजह से कोई इसकी परवाह नहीं कर रहा था।

आचार्य ने कहा, ‘‘अब भी यह चिंता जताई जाती है कि डॉ. राजन और डॉ. पटेल ने जो किया वह गलती थी, भारत इसके लिए तैयार नहीं था। यह वास्तव में मुझे परेशान करता है।’’ आचार्य ने अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले न्यूयॉर्क में पढ़ाने के लिए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।

उन्होंने कहा, ‘‘यह सोचना कि केंद्रीय बैंक का बैंकों के लेखा जोखा को साफ-सुथरा बनाने का प्रयास और संस्थागत तरीके से नियमनों की गुणवत्ता को उठाने का प्रयास गलती है, मेरी नजर में यह दु:खदायी है।

आचार्य ने पत्रकार तमल बंदोपाध्याय की पुस्तक ‘पेडिमोनियम: द ग्रेट इंडियन बैंकिंग ट्रेजडी’ के वर्चुअल तरीके से विमोचन के मौके पर यह बात कही।

आचार्य ने राजन के नेतृत्व में काम किया था। उसी समय बैंकों के बही-खातों को साफ-सुथरा करने के प्रयास शुरू हुए थे। राजन के कार्यकाल में रिजर्व बैंक ने संपत्ति की गुणवत्ता की समीक्षा शुरू की थी, जिससे बही-खातों में छिपे दबाव का पता लगाया जा सके। इससे बड़ी संख्या में डूबी संपत्तियों का पता चला, जिसके लिए ऊंचे प्रावधान की वजह से बैंकों का मुनाफा नीचे आया। आचार्य ने कहा कि आज कुछ विश्लेषक राजन और पटेल के कार्यकाल में रिजर्व बैंक के प्रयासों को मौजूदा सुस्ती के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं जब कुछ विश्लेषकों को मौजूदा सुस्ती के लिए इन गवर्नरों को जिम्मेदार ठहराते देखता हूं, तो मुझे दुख होता है। मुझे इस बात का दुख होता है कि भारत में कुछ लोगों द्वारा किए गए अच्छे कार्यों को पहचाना क्यों नहीं जाता है।’’

आचार्य ने कहा, ‘‘भारत में बैंक अपने बही-खातों की गुणवत्ता के लिए बहुत इच्छुक नहीं रहते। कोई कर्जदार इकाई दबाव में हैइसकी पहचान में ही चार बरस लग जाते हैं।

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