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कुंभलगढ़ फेस्टिवल 2024: राजस्थान की आत्मा से जुड़ने का उत्सव 

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: December 1, 2024 21:15 IST

दलीप सिंह राठौड़ के अनुसार कुंभलगढ़ फेस्टिवल राजस्थान के मेले और त्योहारों की परंपराओं को जीवंत रखने का प्रतीक है। ऐसे आयोजन न केवल पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।

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ठळक मुद्देहमारी संस्कृति और विरासत को भी नई पहचान देते हैं।सांस्कृतिक परंपराओं के संरक्षण का भी महत्वपूर्ण माध्यम है।

 जयपुरः राजस्थान ऐतिहासिक कुंभलगढ़ किले में  तीन दिवसीय कुंभलगढ़ फेस्टिवल का आगाज हुआ । इस फेस्टिवल ने  राजस्थान की समृद्ध कला, संस्कृति और और विरासत को अनोखे अंदाज में जीवंत कर दिया। पर्यटन विभाग और राजसमंद जिला प्रशासन द्वारा आयोजित यह उत्सव देश-विदेश के पर्यटकों में खासा लोकप्रिय है। पर्यटन विभाग के उपनिदेशक दलीप सिंह राठौड़ के अनुसार कुंभलगढ़ फेस्टिवल राजस्थान के मेले और त्योहारों की परंपराओं को जीवंत रखने का प्रतीक है। ऐसे आयोजन न केवल पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।

बल्कि हमारी संस्कृति और विरासत को भी नई पहचान देते हैं। उन्होंने बताया कि कुंभलगढ़ फेस्टिवल न केवल राजस्थान की सांस्कृतिक विविधता का उत्सव है, बल्कि यह पर्यटकों को राजस्थानी कला, संगीत और परंपराओं की अमिट यादें  देता है। इस तरह के आयोजन भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं के संरक्षण का भी महत्वपूर्ण माध्यम है।

पहले दिन का नजाराः 

उदयपुर पर्यटन विभाग की उपनिदेशक शिखा सक्सेना के अनुसार फेस्टिवल के पहले दिन 1 दिसंबर को सुबह शोभायात्रा के साथ इस आयोजन की शानदार शुरुआत हुई। हल्दीपोल से कुंभलगढ़ किले तक निकाली गई इस शोभायात्रा में पारंपरिक वेशभूषा में सजे कलाकार, ऊंट और घोड़ों के साथ निकले, जो दर्शकों के आकर्षण का केंद्र रहे।

लाखेला तालाब के पास सजी फूड कोर्ट और किले के प्रांगण में आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं ने दिन को खास बना दिया। किले के यज्ञ वेदी चौक  में सुबह 11 बजे से सांस्कृतिक प्रस्तुतियों की शुरुआत हुई। लोक कलाकारों की द्वारा प्रस्तुत  कच्ची घोड़ी, कालबेलिया नृत्य और घूमर के प्रदर्शन ने पर्यटकों का दिल जीत लिया।

मंगणियार गायकों की लोक धुनों ने वातावरण को संगीतमय कर दिया। जबकि पगड़ी बांधने और रंगोली प्रतियोगिता में स्थानीय और विदेशी सैलानियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। शाम होते ही कुंभलगढ़ किले का प्रांगण रोशनी और रंगों से जगमग हो उठा। रत्ना दत्ता और उनके ग्रुप ने कथक, ओडिसी और भरतनाट्यम के फ्यूज़न से समां बांध दिया।

आगामी दिनों में होने वाले कार्यक्रमः 

2 दिसंबर: कार्यक्रम सुबह 11 बजे यज्ञ वेदी चौक में शुरू होंगे।

सांस्कृतिक प्रस्तुतियांः घूमर, भवई और कालबेलिया नृत्य।  ढोलक और सारंगी की मधुर धुनों के साथ राजस्थानी गायक अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे।  कैलाश चंद्र मोथिया और उनके ग्रुप द्वारा वायलिन वादन व  इंडियन आइडल फेम गायक सवाई भाट द्वारा सूफी गायन।

3 दिसंबर: उत्सव का समापनः

फेस्टिवल के अंतिम दिन भी शानदार प्रस्तुतियां होंगी। रंगोली प्रतियोगिता और मेहंदी कला व  बरखा जोशी और ग्रुप द्वारा कथक और लोक संगीत का संगम साथ ही  मोहित गंगानी और ग्रुप  की तबला प्रस्तुति   देसी- विदेशी पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षणः   -  घूमर, कालबेलिया, और कच्ची घोड़ी नृत्य।-  पारंपरिक राजस्थानी संगीत।   -  शिल्प प्रदर्शनी: राजस्थानी आभूषण, वस्त्र और हस्तशिल्प  -  प्रतियोगिताएं: पगड़ी बांधना, रंगोली, मेहंदी कला  -  रात के शो:  लाइट एण्ड साउण्ड शो।

टॅग्स :राजस्थान पर्यटनजयपुर
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