आर्थिक समीक्षा में राजकोषीय स्थिति की मजबूती पर जोर, 2019-20 में सात प्रतिशत रहेगी आर्थिक वृद्धि
By भाषा | Published: July 5, 2019 05:59 AM2019-07-05T05:59:26+5:302019-07-05T05:59:26+5:30
संसद में बृहस्पतिवार को पेश 2018-19 की आर्थिक समीक्षा में राजकोषीय स्थिति की मजबूती पर जोर देते हुये निवेश और मांग के साथ साथ श्रम जैसे क्षेत्रों में सुधारों को तेजी से आगे बढ़ाने पर जोर दिया गया है। समीक्षा के मुताबिक चालू वित्त वर्ष के दौरान आर्थिक हालात कुछ बेहतर होंगे और आर्थिक वृद्धि दर सात प्रतिशत तक पहुंच जाने की उम्मीद है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार के दूसरे कार्यकाल की यह पहली आर्थिक समीक्षा है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आर्थिक समीक्षा को संसद में पेश किया। इसमें कहा गया है कि देश को अगले पांच साल के दौरान 5,000 अरब डालर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिये निरंतर आठ प्रतिशत की उच्च आर्थिक वृद्धि के साथ आगे बढ़ना होगा।
समीक्षा में उम्मीद जताई गई है कि निवेश में गिरावट का दौर खत्म हो गया लगता है। उपभोक्ता मांग और बैंकों के कर्ज कारोबार में वृद्धि के संकेत मिलने लगे हैं। आर्थिक समीक्षा को सरकार की आर्थिक नीतियों का आईना माना जाता है। इसमें आगाह किया गया है कि आर्थिक वृद्धि की गति धीमी पड़ने से कर संग्रह पर असर पड़ रहा है और ऐसे में कृषि क्षेत्र में बढ़ता खर्च सरकार के लिये राजकोषीय मोर्चे पर समस्या खड़ी कर सकता है। इसमें कर अनुपालन बेहतर करने और बेहतर कर संस्कृति विकसित करने के लिये अधिक कर देने वालों को सम्मानित करने का सुझाव दिया गया है।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2018- 19 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वास्तविक वृद्धि दर पांच साल के निम्न स्तर 6.8 प्रतिशत पर पहुंच गई। इससे पिछले वर्ष 2017- 18 में यह 7.2 प्रतिशत थी। वित्त वर्ष की चौथी तिमाही की यदि बात की जाये तो जीडीपी वृद्धि 5.8 प्रतिशत रही जो कि चीन की इस अवधि के दौरान हासिल 6.4 प्रतिशत वृद्धि से नीचे रही है। हालांकि, समीक्षा में उम्मीद जताई गई है कि 2019- 20 में यह सुधरकर सात प्रतिशत पर पहुंच जाने की उम्मीद है।
समीक्षा में कहा गया है कि 2024- 25 तक 5,000 अरब डालर की अर्थव्यवस्था बनने के लिये आने वाले सालों में लगातार आठ प्रतिशत की सालाना आर्थिक वृद्धि के साथ आगे बढ़ना होगा। वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमणियम द्वारा तैयार आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि विशेषतौर पर निजी क्षेत्र में निवेश बढ़ाकर ही तीव्र आर्थिक वृद्धि के रास्ते पर आगे बढ़ा जा सकता है। निजी निवेश से ही मांग, क्षमता निर्माण, श्रम उत्पादकता बढ़ती है।
उन्होंने राजकोषीय घाटे को नियंत्रित दायरे में रखने पर जोर दिया है। पिछले वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा 3.4 प्रतिशत पर रहने का संशोधित अनुमान लगाया गया है। आर्थिक समीक्षा में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को उनके दायरे से बाहर निकालने वाली नीतियों पर जोर दिया गया है। इसमें कहा गया है कि एमएसएमई क्षेत्र को आगे बढ़ने के अवसर मिलने चाहिये ताकि इनमें रोजगार और उत्पादकता बढ़ सके। समीक्षा में कहा गया है कि एमएसएमई क्षेत्र में इकाइयों के बौना बने रहने के बजाय बड़ी कंपनी बनने की क्षमता रखने वाली नई/युवा कंपनियों को बढ़ावा देने के लिये नीतियों को नई दिशा दी जानी चाहिये।
देश की युवा आबादी के बाद समीक्षा में अब बुजुर्गों की बढ़ती संख्या पर गौर किया गया है। इसमें कहा गया है कि सरकार को बुजुर्गों की बढ़ती आबादी के लिये अभी से तैयारियों शुरू कर देनी चाहिये। उनके लिये स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश बढ़ाना होगा और साथ ही सेवानिवृति आयु को भी चरणबद्ध तरीके से बढ़ाने की जरूरत हे। उद्योग जगत ने कहा है कि यदि उचित समय पर सही नीतियां अपनाई जातीं हैं तो आठ प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि दर हासिल की जा सकती हैं।
उद्योग संगठनों ने सात प्रतिशत की दर को व्यवहारिक बताया लेकिन कहा कि इसके साथ सतर्कता का भाव भी जुड़ा हुआ है। पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि देश पहले के नीतिगत अनिश्चितता के दौर से निश्चितता की ओर बढ़ रहा है। यही वजह है कि आर्थिक वृद्धि का ग्राफ ऊंचा जा रहा है। शेयर बाजार में आज कमोबेश मिला जुला रुख रहा।
बंबई शेयर बाजार का सूचकांक शुरुआती तेजी के बाद कारोबार की समाप्ति पर 68.81 अंक की हल्की वृद्धि के साथ 39,908.06 पर बंद हुआ। एनएसई में भी 30 अंक वृद्धि दर्ज की गई। समीक्षा में कहा गया है कि समावेशी आर्थिक वृद्धि हासिल करने के रास्ते में वेतन और मजदूरी की असमानता बड़ी रुकावट है। समीक्षा में इसके लिये कानूनी सुधारों, नीतियों में निरंतरता, सक्षम श्रम बाजारों और प्रौद्योगिकी के बेहतर इस्तेमाल पर जोर दिया गया है।
समीक्षा में कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष के दौरान कच्चे तेल के दाम में गिरावट बनी रहेगी। इससे खपत बढ़ने की उम्मीद है। हालांकि, इसके साथ ही सावधान भी किया गया है कि खपत में कमी का जोखिम भी बना हुआ है। ग्रामीण क्षेत्र में मांग कितनी बढ़ेगी यह कृषि क्षेत्र में हालात बेहतर होने और कृषि उपज की मूल्य स्थिति से तय होगा।
मानसून की स्थिति पर भी काफी कुछ निर्भर होगा। कुछ क्षेत्रों में सामान्य से कम वर्षा होने का अनुमान लगाया गया है। इसका फसल उत्पादन पर असर पड़ सकता है। पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा कि लगता है कि सरकार अर्थव्यवस्था को लेकर निराश है क्योंकि इसमें क्षेत्रवार वृद्धि के अनुमान नहीं दिये गये हैं।
उन्होंने कहा कि आर्थिक समीक्षा में धीमी वृद्धि, राजस्व में कमी, राजकोषीय लक्ष्यों से समझौता किये बिना संसाधन तलाशने, तेल मूल्यों का चालू खाते के घाटे पर प्रभाव और 15वें वित्त आयोग की केन्द्र सरकार के वित्त पर सिफारिशों पर चिंता जाहिर की गई है। चिदंबरम ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि इनमें से कोई भी उत्साहवर्धक अथवा सकारात्मक स्थिति में नही है।’’