मुंबई, चार जून भारतीय रिजर्व बैंक ने शुक्रवार को चालू वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान खुदरा मुद्रास्फीति की दर 5.1 प्रतिशत पर रहने का अनुमान लगाया। केंद्रीय बैंक का मानना है मानसून की प्रगति तथा सरकार की ओर से आपूर्ति बनाये रखने के लिये प्रभावी हस्तक्षेप के चलते मुद्रास्फीति को इस स्तर पर रखने में मदद मिलेगी।
यह आंकड़ा मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के मुद्रास्फीति को चार प्रतिशत (दो प्रतिशत ऊपर या नीचे) के दायरे में बनाये रखने के लक्ष्य के अनुरूप है।
हालांकि, इसके साथ ही केंद्रीय बैंक ने सतर्क करते हुए कहा कि वैश्विक स्तर पर जिेंसों के ऊंचे दाम की वजह से मुद्रास्फीति के ऊपर की ओर जाने का जोखिम है।
चालू वित्त वर्ष की दूसरी द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा पेश करते हुए रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकान्त दास ने शुक्रवार को मुख्य नीतिगत दर ‘रेपो रेट’ को चार प्रतिशत पर कायम रखने की घोषणा की।
मौद्रिक समीक्षा में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर यदि गहराती है और इसकी वजह से देशभर में गतिविधियों पर अंकुश लगते हैं तो मुद्रास्फीति के ऊपर की ओर जाने का जोखिम है।
गवर्नर ने कहा कि अभी तक जो उपाय किए गए हैं और साथ ही महंगाई के ऊपर की ओर जाने के जोखिमों पर विचार के बाद चालू वित्त वर्ष में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति 5.1 प्रतिशत पर रहने का अनुमान है।
वित्त वर्ष की पहली तिमाही में मुद्रास्फीति 5.2 प्रतिशत, दूसरी में 5.4 प्रतिशत, तीसरी में 4.7 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 5.3 प्रतिशत रहने का अनुमान है।
गवर्नर ने कहा कि ऐसे परिदृश्य में खाद्य वस्तुओं की कीमतों को आपूर्ति पक्ष की दिक्कतों से बचाने की जरूरत है। इसके लिए लगातार निगरानी और तैयारियों की जरूरत होगी। केंद्र के साथ राज्यों को इस बारे में समयबद्ध उपाय करने होंगे।
अप्रैल माह में खुदरा मुद्रास्फीति की दर 4.3 प्रतिशत रही है। केंद्रीय बैंक ने कहा कि सामान्य दक्षिण-पश्चिम मानसून के साथ संतोषजनक बफर स्टॉक से अनाज कीमतों को काबू में रखने में मदद मिलेगी। हालांकि, इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दाम बढ़ने तथा व्यापक रूप से जिसों के दाम बढ़ने और लॉजिस्टिक्स की लागत में बढ़ोतरी से चिंता की स्थिति बन सकती है।
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