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‘न्यायालय में दलील: आरटीआई लागू करने के 2015 के फैसले में बैंकों को नहीं सुना गया’

By भाषा | Updated: July 19, 2021 21:52 IST

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नयी दिल्ली, 19 जुलाई केंद्र और बैंकों ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि 2015 में आये फैसले से जुड़े मामले में वित्तीय संस्थान न तो पक्ष थे और न ही उनके विचारों को सुना गया। इस फैसले में न्यायालय ने व्यवस्था दी थी कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को सूचना के अधिकार कानून के तहत गोपनीय सालाना रिपोर्ट और चूककर्ताओं की सूची के बारे में जानकारी उपलब्ध करानी होगी।

केंद्र, भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई), पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी), केनरा बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (यूबीआई) और एचडीएफसी बैंक लिमिटेड ने जयंतीलाल एन मिस्त्री मामले में 2015 के न्यायालय के रिजर्व बैंक को सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत आवेदकों को महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने के निर्देश से जुड़े फैसले के विरोध में शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है।

न्यायाधीश एस अब्दुल नजीर और न्यायाधीश कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि वह बैंकों और केंद्र की याचिकाओं पर 22 जुलाई को सुनवाई करेगी। पीठ यह निर्णय करेगी कि मामले को वह सुनवाई करेगी या फिर न्यायाधीश एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली अन्य पीठ को सुनवाई करनी चाहिए।

न्यायमूर्ति नजीर ने कहा कि निष्पक्ष रूप से मामला न्यायमूर्ति राव की अध्यक्षता वाली पीठ के पास जाना चाहिए।

एसबीआई की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें कोई समस्या नहीं है कि कौन सी पीठ मामले की सुनवाई करती है, लेकिन मामले को तीन न्यायाधीशों की पीठ को सुनवाई करनी चाहिए। क्योंकि आरटीआई के तहत गोपनीय सूचना सार्वजनिक नहीं करने का जो सांविधिक प्रतिबंध लगाया गया है, उस पर निर्णय में विचार नहीं किया गया।

न्यायालय ने उक्त टिप्पणी इस साल 28 अप्रैल को न्यायाधीश राव और न्यायाधीश विनीत सरन की पीठ के निर्णय को ध्यान में रखते हुए की। पीठ ने कुछ बैंकों की अपील पर सुनवाई करते हुए 2015 के फैसले को खारिज करने से इनका कर दिया था। पीठ ने कहा था कि कानून और शीर्ष अदालत के नियमों के अनुसार फैसले को रद्द करने के आग्रह वाली वाली याचिकाएं विचार योग्य नहीं है।

हालांकि न्यायालय ने उस समय साफ किया था कि वह फैसले में सुधार को लेकर बैंकों की दलीलों पर गौर नहीं कर रहा। ‘‘इन आवेदनों के खारिज होने का मतलब यह नहीं है कि वे (बैंक) कानून के तहत उपलब्ध अन्य विकल्प को नहीं अपना सकते।’’

एचडीएफसी बैंक की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा, ‘‘बैंक उस मामले में कोई पक्ष नहीं थे, जिसमें यह फैसला आया।’’ उन्होंने कहा कि आखिर निजी क्षेत्र के बैंक से कैसे बैंक से जुड़ी गोपनीय और ग्राहकों से संबद्ध जानकारी किसी चौथे पक्ष को देने को कहा जा सकता है।

रोहतगी के अनुसार आरबीआई ने उस समय कहा था कि उस पर बैंकों के हितों के निवर्हन की जिम्मेदारी है और बैंकों के साथ उसका संबंध विश्वास पर आश्रित है। इसीलिए वह आरटीआई के तहत बैंकों की सूचना नहीं दे सकता। बैंकों के लिये और भी आधार मौजूद हैं और उस पर गौर नहीं किया जा सका क्योंकि वे उस समय मामले में कोई पक्ष नहीं थे।

उन्होंने आरटीआई कानून के प्रावधान का जिक्र किया जिसमें गोपनीय सूचना को देने पर पाबंदी है। उन्होंने नौ न्यायाधीशों की पीठ के निजता पर निर्णय का भी उल्लेख किया था।

हालांकि आरटीआई कार्यकर्ता की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने इस दलील का विरोध किया। उन्होंने कहा कि भारतीय बैंक संघ (आईबीए) और आईसीआईसीआई बैंक मामले में पक्ष थे और सभी बैंक आईबीए के सदस्य हैं।

इससे पहले, सालिसिटर जनरल ने कहा कि मामले को तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुनवाई की जरूरत है और पूरे मुद्दे पर समग्र न्यायिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है क्योंकि बैंक 2015 के फैसले से जुड़े मामले में पक्ष नहीं थे।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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