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रंगमंच कलाकार इब्राहिम अल्काजी का निधन, थिएटर को शिखर तक पहुंचाने का है श्रेय

By अमित कुमार | Updated: August 4, 2020 18:19 IST

भारतीय रंगमंच इब्राहिम अल्काजी के लिए सबकुछ था। उन्होंने अपना सारा जीवन इस काम में समर्पित कर दिया था।

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ठळक मुद्देमंगलवार को दिल्ली के एक अस्पताल में इब्राहिम अल्काजी का निधन हो गया। अल्काजी के साथ एनएसडी को लंदन की रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामैटिक आर्ट्स (आरएडीए) में हासिल कला, थिएटर और साहित्य और नाटक के हुनरों के जबरदस्त ज्ञान का फायदा मिला।

भारतीय रंगमंच को एक नया मुकाम देने वाले इब्राहिम अल्काजी अब हमारे बीच नहीं रहे। मंगलवार को दिल्ली के एक अस्पताल में उनका निधन हो गया। इब्राहिम अल्काजी के बेटे ने उनकी मौत की जानकारी दी। इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए उन्होंने बताया कि भारत में रंगमंच की क्रांति का श्रेय इब्राहिम अल्काजी को जाता है। दिल्ली के एस्कॉर्ट हॉस्पिटल में ल्काज़ी को दिल का दौरा पड़ा। अल्काजी देश के कई बड़े कलाकारों के गुरू रहे हैं।

1940 और 1950 के दशक में मुंबई से अल्काजी ने दिल्ली का रुख किया। दिल्ली में उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एमएसडी) में अपना योगदान दिया। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, 37 की उम्र में अल्काजी दिल्ली आए और यहां नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा के 15 साल तक डायरेक्टर रहे। अल्काजी ने गिरीश कर्नाड के ‘तुगलक’, धर्मवीर भारती के ‘अंधायुग’ जैसे लोकप्रिय नाटकों का निर्माण किया। उन्होंने कलाकारों की कई पीढ़ियों को अभिनय की बारीकियां सिखाई। इन कलाकारों में नसीरुद्दीन शाह और ओम पुरी भी शामिल हैं। 

एनएसडी को मिला अल्काजी के ज्ञान का जबरदस्त फायदा 

अल्काजी के साथ एनएसडी को लंदन की रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामैटिक आर्ट्स (आरएडीए) में हासिल कला, थिएटर और साहित्य और नाटक के हुनरों के जबरदस्त ज्ञान का फायदा मिला। अपने कार्यकाल के दौरान इब्राहिम अल्काजी ने इस दौरान न केवल शास्त्रीय संस्कृत नाटक, पारंपरिक कलाएं, भारतीय भाषाओं में समकालीन भारतीय रंगमंच को बढ़ावा दिया बल्कि पश्चिमी नाटकों का भी यहां मंचन करवाया जिससे यहां के लोग और नवोदित कलाकर उनसे परिचित हो सकें।

अरबी परिवार में हुआ था अल्काजी का जन्म

अल्काजी ने एक अरबी परिवार में जन्म लिया था। वह एक ऐसे मां-बाप के संतान थे जिसके घर में सिर्फ़ अरबी ही बोलने का नियम था। लेकिन अल्काजी की मां उर्दू, हिंदी, मराठी, गुजराती, पिता अरबी और टूटी फूटी हिंदुस्तानी जानते थे। 1947 में जब देश का बंटवारा हुआ तो अल्काज़ी के परिवार के कुछ लोग पाकिस्तान जाकर रहने लगे। लेकिन अल्काजी ने भारत में ही रहने का फैसला किया।

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