100 Years of Satyajit Ray: पूरे विश्व में बजता था सत्यजीत रे की फिल्मों का डंका, आज भी सम्मान से लिया जाता है उनका नाम

By अरविंद कुमार | Updated: May 2, 2021 14:03 IST2021-05-02T14:02:19+5:302021-05-02T14:03:26+5:30

आज यानी 2 मई को सत्यजीत रे की 100वीं जन्म शताब्दी है

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सत्यजीत रे (फाइल फोटो)

Highlightsआज यानी 2 मई को सत्यजीत रे की 100वीं जन्म शताब्दी हैउनकी स्मृति में दादा साहब फाल्के पुरस्कार की तरह एक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार शुरू किया जाएगादुनिया के 10 शीर्ष फिल्मकारों में से एक थे सत्यजीत

भारतीय सिनेमा को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने वाले महान फिल्मकार सत्यजीत रे अगर आज जीवित होते तो 100 साल के होते लेकिन यह दुर्भाग्य है कि सत्यजीत रे की जन्मशती ऐसे समय में मनाई जा रही है जब पूरा विश्व कोरोना की चपेट में है और भारत दूसरी लहर से जूझ रहा है। 

भारत सरकार ने सत्यजीत रे की जन्मशती मनाने के लिए परसों कुछ कार्यक्रमों की घोषणा की है और यह फैसला किया है कि उनकी स्मृति में दादा साहब फाल्के पुरस्कार की तरह एक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार शुरू किया जाएगा जिसकी राशि दस लाख होगी होगी और यह पुरस्कार गोवा में होने वाले अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में दिया जाएगा।

इसके अलावा सत्यजीत राय फिल्म इंस्टिट्यूट में उनकी एक आदम कद प्रतिमा भी लगाई जाएगी। इसके साथ साथ उनकी तमाम फिल्मों को डिजिटल  भी किया जाएगा और मुंबई में राष्ट्रीय फिल्म संग्रहालय में एक प्रदर्शनी लगाई जाएगी तथा ओटीटी प्लेटफार्म पर उनकी फिल्में दिखाई जायेंगे तथा ऑनलाइन और ऑफ लाइन कार्यक्रम होंगे।
 
सरकार ने जन्मशती समारोह के कार्यक्रमों के क्रियान्वन के लिए एक समिति भी गठित की है लेकिन बेहतर यह होता कि सरकार सत्यजीत राय की जन्मशती मनाने के लिए एक राष्ट्रीय स्तर की समिति गठित करती जिसमें देश के जाने माने फिल्मकार लेखक बुद्धिजीवी पत्रकार और सिनेमा विशेषज्ञ शामिल होते ओर उनके सुझाओं को लागू किया जाता।

तब राय को बेहतर ढंग से याद करने का उपक्रम होता। फिर भी सरकार ने जितना किया है उसका स्वागत किया जाना चाहिए। यह अलग बात है कि को रोना काल में राय के प्रशंसक उनको डिजिटल माध्यम से ही अधिक याद कर पाएंगे क्योंकि फिलहाल तो ऑफलाइन कार्यक्रमों की संभावना कम नजर आती है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जब हम किसी महापुरुष की जन्मशती मनाते हैं तो सरकार का भी मकसद होता है कि देश की नई पीढ़ी खासकर स्कूली बच्चे  उस महापुरुष के बारे में अधिक जान सके और उनसे संदेश तथा  प्रेरणा ले सके । उनके मूल्यों और आदर्शों को आत्मसात कर सकें।

जाहिर है सत्यजीत राय की जन्मशती मनाते समय भी इन्हीं उद्देश्यों को ध्यान में रखा जाना चाहिए था हालांकि सरकार ने जितने कार्यक्रमों की घोषणा की है उनमें कुछ उद्देश्यों को प्राप्त करने की एक कोशिश दिखाई देती है लेकिन सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि सत्यजीत राय की फिल्मों को आज की नई पीढ़ी अपने स्कूल कालेज में कैसे देखें और उससे क्या सीखें। 

इसके बारे में सरकार को कुछ विशेष ध्यान देना चाहिए था। केवल फिल्म समारोह में या कुछ स्थानों पर सत्यजीत राय  की फिल्मों के पुनरावलोकन से यह बात नहीं बनेगी। 

सत्यजीत राय ने 1947 में ही फिल्म सोसायटी की स्थापना की थी। वे इस बात को अच्छी तरह समझते थे। अगर देश के सभी शहरों और विश्वविद्यालय में एक फिल्म सोसाइटी की स्थापना हो तो समाज में अच्छी फिल्मों की  समझ विकसित हो सकती है।

इसी उद्देश्य के तहत राय ने फिल्म सोसायटी की स्थापना की थी। सत्यजीत राय एक महत्वपूर्ण  चित्रकार और लेखक भी थे और उन्होंने बच्चों के लिए काफी कुछ लिखा भी था। वे रेखांकन कार भी तथा डिजाइनर थे कैलोग्राफी भी करते थे ।

अगर स्कूलों और कॉलेजों में सत्यजीत राय के इस पक्ष से बच्चों को परिचित  करने के लिए कार्यशाला या संगोष्ठी आयोजित हो तो बच्चों को उनसे प्रेरणा मिलेगी। सत्यजीत राय का जीवन खुद दूसरों के लिए प्रेरणा है। तीन साल की उम्र में उनके सर से पिता का साया उठ गया। 

बाल सत्यजीत राय ने जीवन में संघर्ष कर अपने जीवन में एक मुकाम हासिल की जिस पर दुनिया को गर्व है। अगर स्कूलों में सत्यजीत राय की किताबो और उन पर लिखी गई किताबों की प्रदर्शनी लगाई जाए तब स्कूली बच्चों में उनके बारे में एक दिलचस्पी पैदा होगी। 

सत्यजीत राय भारत के गौरव पुरुष भले ही हों लेकिन उनका डंका विश्व में अधिक बजता रहा है। उन्हें दुनिया के 10 शीर्ष फिल्मकारों में भी चुना गया है। अफसोस की बात है कि अपने देश में उन्हें जितना मान सम्मान होना चाहिए, था वह नहीं हुआ। 

आप सबको मालूम है कि जब रॉय को  दुनिया के तमाम बड़े पुरस्कार  मिले और फ्रांस के राष्टपति 1987 में कोलकाता आकार राय को आप देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया तब जाकर देशवासियों को अहसास हुआ कि इतना बड़ा कलाकार उनके देश में है। उसके 5  साल बाद जाकर सरकार की नींद टूटी और उनके निधन के कुछ माह पूर्व उन्हें  भारत रत्न से नवाजा गया।

इससे पता चलता है किस रॉय अपने ही देश में उपेक्षित रहे लेकिन सबसे बड़ी बात है कि उनकी  फिल्मों को किस तरह नई पीढ़ी में लोकप्रिय बनाया जाए। अपने देश में बॉलीवुड फिल्मों की जो धूम मची रहती है उसके बरक्स रॉय की फिल्मों को समाज में पहुंचाना एक कठिन कार्य है। रॉय ने  36 फिल्मे बनाई जिनमे  दो फिल्मों प्रेमचंद की कहानी पर बनाई। शेष  सभी फिल्में उन्होंने बांग्ला में बनाई। 

यह संभव है कि हिंदी पट्टी में फिल्म की भाषा के कारण   लोगों की  समस्या उसे समझने  हो और वे बंगला की फिल्मों को न देख पाए, लेकिन उनकी फिल्मों को हिंदी में डब कर देश के कोने कोने में दिखाए जा सकता है। यह भी सच है कि  बॉलीवुड की व्यवसायिक फिल्मों ने हमारे दर्शकों की अभिरुचियों को भ्रष्ट  
 किया है और यही कारण है कि वह सत्यजीत राय  की फिल्म का आनंद उठा नही पाया। 

दरअसल हमारे यहां सिनेमा  को केवल मनोरंजन  की दृष्टि से देखा जाता है और व्यवसायिक सिनेमा की सफलता इस बात में होती है कि उसमें फिल्मी लटके झटके गाने डांस आ दी शामिल हो लेकिन रॉय  का मकसद पैसा कमाना नहीं था और न ही उन्हें सस्ती लोकप्रियता हासिल करनी थी। 

उन्होंने फिल्मे बनाते समय कोई समझौता नहीं किया  और बाजार को ध्यान में रखा ही नहीं। वे अपनी शर्त पर फिल्मे बनाते रहे।शायद यह भी कारण है कि  भारतीय समाज में उनकी फिल्मों को वह लोकप्रियता नही मिली  जिस तरह मुंबईया फिल्मों को  मिली।वी शांताराम  गुरुदत्त और विमल  रॉय ने एक बीच का रास्ता निकाला था जिसमें फिल्म मैं थोड़ा बहुत मनोरंजन और संदेश भी होता था। 

वह  शुद्ध रूप से व्यवसायिक फिल्में नहीं थी और नहीं विशुद्ध रूप से कलात्मक फिल्में थी  लेकिन वे गंभीर फिल्मे थी क्योंकि हमने यह भी देखा है कि जब कला फिल्मों का आंदोलन शुरू हुआ तो बहुत जल्दी ही वह आंदोलन ठंडा पड़ गया और उससे सफलता नहीं मिली। 

सत्यजीत राय की जन्मशती मनाने के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि भारतीय दर्शकों की कलात्मक अभिरुचियों  को कैसे विकसित किया जाए ।कैसे उन्हें एक अच्छी और बुरी फिल्म के बीच फर्क करने की एक दृष्टि पैदा हो। कैसे  हम एक ऐसा दर्शक वर्ग पैदा  कर सके जो बुरी फिल्मों की जगह अच्छी फिल्म देखे। 

कैसे देश में एक ऐसा माहौल बने जिसमें कलात्मक फिल्मों को तरजीह दी जाए और उसका भी एक बाजार विकसित हो यह अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य है  सत्यजीत राय  की जन्मशती मनाने और उन्हें याद करने का सबसे बढ़िया प्रयास यही होगा और यही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी। 

लोग जाने कि आखिर किन कारणों से वे फेलिनी गोदार ट्रूफो  तारकोवासकी बर्गमेन कुरोसोवा की तरह दुनिया के टॉप फिल्म निर्देशक थे जिन्होंने भारतीय सिनेमा को एक नई भाषा दी एक पहचान दी और एक नया मुहावरा दिया जिस पर दुनिया के दिग्गज फिल्म समीक्षक फिदा हुए।

Web Title: 100 Years of Satyajit Ray: Satyajit Ray 100th Birth Anniversary, facts about Satyajit Ray in Hindi

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