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वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः बलूचों की बगावत और दक्षिण एशिया

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: November 15, 2021 13:02 IST

क्या भारत में ऐसा कुछ करने की हिम्मत किसी में है? क्या किसी ने भारत की हार पर खुशी मनाई है? नहीं, सिर्फ पाकिस्तान को बधाई दी है।

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टी-20 विश्व कप क्रिकेट खेल में पहले भारत हारा और फिर पाकिस्तान भी हार गया। भारतपाकिस्तान से हारा था और पाकिस्तान ऑस्ट्रेलिया से हार गया। अब देखिए कि दोनों देशों ने अपनी-अपनी हार को कैसे लिया? भारत हारा तो हमारे कुछ मुसलमान जवानों को इसलिए गिरफ्तार करने की आवाजें उठने लगीं कि उन्होंने पाकिस्तानी टीम को बधाई दे दी थी जबकि ऐसी बधाई तो हारी हुई टीम के भारतीय कप्तान ने पाकिस्तानी टीम के कप्तान को भी दी थी। लेकिन आप उन बलूचों को भी देखिए कि जो पाकिस्तान के ही नागरिक हैं लेकिन पाकिस्तान की हार पर जश्न मना रहे हैं, जुलूस निकाल रहे हैं, प्रदर्शन कर रहे हैं और ऑस्ट्रेलिया को बधाइयां भेज रहे हैं।

क्या भारत में ऐसा कुछ करने की हिम्मत किसी में है? क्या किसी ने भारत की हार पर खुशी मनाई है? नहीं, सिर्फ पाकिस्तान को बधाई दी है। वह भी किसी इक्का-दुक्का नौजवान ने! आखिर भारत और पाकिस्तान में यह फर्क क्यों है? वास्तव में जो दुर्दशा बलूचों की पाकिस्तान में है, उसके मुकाबले भारत के मुसलमान कहीं बेहतर हालत में हैं। यों तो हर देश में अल्पसंख्यकों को कुछ न कुछ असंतोष रहता ही है लेकिन पाकिस्तान के बलूच, पठान और सिंधी लोगों को आप थोड़ा-सा भी कुरेदें तो पाएंगे कि जिन्ना का दो राष्ट्रों का सिद्धांत अभी तक परवान नहीं चढ़ सका है। मजहब के नाम पर पाकिस्तान बन तो गया लेकिन मजहब उस देश को एक राष्ट्र का रूप नहीं दे पाया।

1971 में बांग्लादेश बन गया और आज भी पाकिस्तान के पंजाबियों से बलूच, पठान और सिंधी एक नहीं हो पाए हैं। हालांकि आजकल सिंध और पख्तूनिस्तान की आजादी की मांग दबी-दबी हो गई है लेकिन बलूचों ने बगावत का झंडा गाड़ रखा है। वे पाकिस्तान की सभी सरकारों और फौज की नाक में दम किए रहते हैं। बलूचिस्तान में पाकिस्तान की लगभग आधी जमीन है लेकिन आबादी सिर्फ 3 प्रतिशत है। बलूचिस्तान की खदानों और बंदरगाहों का सामरिक महत्व बहुत ज्यादा है। वहां चीन की दखलंदाजी भी बढ़ती जा रही है। यदि बलूचिस्तान टूटेगा तो पाकिस्तान के दूसरे प्रांत भी बगावत कर उठेंगे। यदि पाकिस्तान के टुकड़े होंगे तो यह दक्षिण के लिए ठीक नहीं होगा। इस समय सबसे जरूरी यह है कि दक्षिण एशिया के सभी अलगाववादी आंदोलन शांत हों और सारा दक्षिण एशिया एक बड़े और सहनशील परिवार की तरह एक होकर रहे।

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