डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिकी राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ रहे थे तब यह माना जा रहा था कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन उन्हें अमेरिका के तख्तो-ताज पर देखना चाहते हैं. जब ट्रम्प जीत गए तब ये आरोप भी लगे कि ट्रम्प की जीत में रूस की खुफिया एजेंसियों की भी भूमिका थी. मुझे नहीं मालूम कि इसमें कितनी सच्चाई है, क्योंकि कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि सोवियत संघ को खंड-खंड करने में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की भूमिका थी. कही-सुनी बातों के प्रमाण नहीं मिलते. लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में चर्चा बड़ी गर्म है कि यूक्रेन मामले में क्या पुतिन के जाल में उलझ गए हैं ट्रम्प?
आप याद कीजिए जब ट्रम्प कह रहे थे कि चुनाव जीतते ही सप्ताह भर के भीतर वे यूक्रेन युद्ध समाप्त करवा देंगे! याद कीजिए जब व्हाइट हाउस में बातचीत के दौरान ट्रम्प ने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को जलील किया था. यहां तक कह दिया था कि हमारी मदद के बगैर रूस के सामने यूक्रेन कुछ घंटे भी नहीं टिक सकता.
ट्रम्प चाहते थे कि यूक्रेन जो इलाका हार चुका है, उसे भूल जाए और उस इलाके से अमेरिका रेयर मिनरल्स निकाले. ट्रम्प ने रूस को साझेदारी का भी लॉलीपॉप दिया था. उन्हें भरोसा था कि जेलेंस्की के सामने कोई रास्ता नहीं है, इसलिए वे मान ही जाएंगे! जेलेंस्की को मजबूर किया गया और एक समय ऐसा लगा कि शायद रूस मान भी जाए!
लेकिन पुतिन की तो योजना ही कुछ और थी. वे तो दुनिया को अपना रुतबा दिखाना चाहते थे. 15 अगस्त को अलास्का में ट्रम्प और पुतिन के बीच मुलाकात हुई लेकिन वहां भी पुतिन का पलड़ा ही भारी रहा. अमेरिकी इस बात से परेशान थे कि उनके सैनिक झुक कर पुतिन के लिए रेड कार्पेट क्यों बिछा रहे हैं? दोनों मिले तो गर्मजोशी से थे लेकिन बड़े ठंडेपन के साथ विदा हुए.
पत्रकारों के पांच सवालों के उत्तर देना तय था लेकिन वह भी नहीं हुआ. यहां तक कि साथ में डिनर भी नहीं किया. ट्रम्प को भरोसा था कि वे समझौते का जो मसौदा लेकर पहुंचे हैं, उस पर पुतिन हस्ताक्षर कर देंगे और नोबल पुरस्कार के लिए ट्रम्प का दावा पुख्ता हो जाएगा. मगर पुतिन बड़े खिलाड़ी हैं! ट्रम्प बड़े बिजनेसमैन हैं, खुद को बड़ा राजनेता भी मानते हैं लेकिन पुतिन खुफिया तंत्र की उपज हैं.
उनसे बेहतर व्यूह रचना कौन कर सकता है? अलास्का की बैठक के बाद मैंने पुतिन की उस बड़ी योजना के बारे में लिखा था जिसे रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने टी शर्ट के माध्यम से प्रदर्शित किया था. सर्गेई की टी शर्ट पर सोवियत संघ (यूएसएसआर) का रूसी संक्षिप्त नाम सीसीसीपी लिखा था. ट्रम्प को पुतिन का संदेश स्पष्ट था कि हम तो उन सभी देशों पर कब्जा चाहते हैं जो सोवियत संघ से उपजे हैं.
इसीलिए पुतिन किसी समझौते के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं. और खासकर ऐसे किसी समझौते के लिए तो शायद वे कभी भी तैयार नहीं होंगे जिसमें ट्रम्प की कोई भूमिका हो. ट्रम्प को लगता था कि पुतिन उनके दोस्त हैं लेकिन ट्रम्प भूल गए कि राजनीति में न कोई दोस्त होता है और न ही दुश्मन! ट्रम्प खुद को भी तो नरेंद्र मोदी का दोस्त बताते रहे हैं, फिर दुश्मनों जैसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं?
भारत को डेड इकोनॉमी कहते हुए उनकी जुबान भी नहीं लड़खड़ाई. ट्रम्प की जब रूस के साथ दाल नहीं गली तो उन्होंने रूस को कागजी शेर कह दिया! पूरी दुनिया जानती है कि रूस किसी भी स्थिति में कागजी शेर तो नहीं है! यदि वह कागजी शेर होता तो नाटो की ओर से यूक्रेन को मिलने वाली तमाम सहायता के बीच यूक्रेन के एक चौथाई हिस्से पर कैसे कब्जा कर लेता?
और याद कीजिए कि इसी साल 12 फरवरी को ब्रसेल्स में आयोजित डिफेंस समिट में अमेरिकी रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ ने क्या कहा था. उन्होंने कहा था, ‘हम सभी संप्रभु और संपन्न यूक्रेन चाहते हैं. लेकिन 2014 के पहले यूक्रेन की जो सीमा थी, उसे वापस हासिल करना वास्तविकता से बहुत दूर है. यदि इस लक्ष्य के पीछे भागे तो युद्ध लंबा खिंचेगा ही, बहुत ज्यादा नुकसान भी होगा.’
क्या ट्रम्प ने अपने रक्षा मंत्री का भाषण नहीं सुना? सुना होगा लेकिन ट्रम्प को पलटी मारने में कितनी देर लगती है? ट्र्म्प ने रूस को कागजी शेर कहा तो स्वाभाविक रूप से रूसी राष्ट्रपति ने तत्काल गंभीर प्रतिक्रिया दी. उन्होंने डोनाल्ड ट्रम्प से सवाल पूछ लिया है कि रूस कागजी शेर है तो फिर नाटो यानी नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन क्या है?
उनके कहने का आशय स्पष्ट है कि नाटो और उसके माध्यम से अमेरिका तो यूक्रेन की खूब मदद कर रहा है, फिर यूक्रेन जीत क्यों नहीं रहा है? पुतिन ने बड़ा सख्त संदेश दिया है कि यदि यूरोप ने मामले को ज्यादा भड़काया तो रूस कड़े फैसले लेने में जरा सी भी कमजोरी नहीं दिखाएगा. पुतिन ने तो अब अपने मुंह से यह सच्चाई उजागर कर दी है कि अमेरिका संवर्धित यूरेनियम रूस से खरीदता है.
उन्होंने तंज कसा कि भारत और दूसरे देशों को अमेरिका कहता है कि रूसी ऊर्जा उत्पाद खरीदना बंद करो! स्वाभाविक सी बात है कि ट्रम्प और पुतिन के बीच मतभेद और गहरे होने वाले हैं क्योंकि पुतिन ने अपने कब्जे वाली यूक्रेनी जमीन से रेयर मिनरल निकाल कर धन की बारिश का ट्रम्प का सपना तोड़ दिया है.
और उससे बड़ी बात यह कि नोबल पुरस्कार वाले उनके सपने पर कुठाराघात कर दिया है. ट्रम्प सबकुछ बर्दाश्त कर सकते हैं लेकिन नोबल पुरस्कार वाले सपने में उनकी जान बसती है. मैं तो कहता हूं...दिल मचल रहा है तो नोबल नाम की कोई एक ट्रॉफी दे ही दो इन्हें! दुनिया में कुछ शांति तो आएगी!