राज कुमार सिंह का ब्लॉग: बांग्लादेश में अंतरिम सरकार की वास्तविक चुनौतियां

By राजकुमार सिंह | Updated: August 20, 2024 07:33 IST2024-08-20T07:30:24+5:302024-08-20T07:33:07+5:30

84 साल के यूनुस राजनेता नहीं, माइक्रो फाइनेंस की सोच के साथ ग्रामीण बैंक स्थापित कर करोड़ों गरीबों का जीवन स्तर सुधारने के लिए नोबल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री हैं.

Real challenges of interim government in Bangladesh | राज कुमार सिंह का ब्लॉग: बांग्लादेश में अंतरिम सरकार की वास्तविक चुनौतियां

राज कुमार सिंह का ब्लॉग: बांग्लादेश में अंतरिम सरकार की वास्तविक चुनौतियां

Highlightsमोहम्मद यूनुस की अगुवाई में अंतरिम सरकार ने हिंसाग्रस्त बांग्लादेश की सत्ता संभाल ली है.देश के संकटकाल में उन पर विश्वास के लिए शायद यही उनकी सबसे बड़ी योग्यता बन गई. हसीना सरकार ने जिन यूनुस को जनता का दुश्मन कहा था, उन्हें लोग गरीबों का बैंकर कहते हैं.

मोहम्मद यूनुस की अगुवाई में अंतरिम सरकार ने हिंसाग्रस्त बांग्लादेश की सत्ता संभाल ली है. 84 साल के यूनुस राजनेता नहीं, माइक्रो फाइनेंस की सोच के साथ ग्रामीण बैंक स्थापित कर करोड़ों गरीबों का जीवन स्तर सुधारने के लिए नोबल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री हैं. देश के संकटकाल में उन पर विश्वास के लिए शायद यही उनकी सबसे बड़ी योग्यता बन गई. 

हसीना सरकार ने जिन यूनुस को जनता का दुश्मन कहा था, उन्हें लोग गरीबों का बैंकर कहते हैं. लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में भी सत्ता और जनता की सोच-समझ में यह अंतर चिंतन का विषय होना चाहिए, लेकिन यूनुस की असली परीक्षा अब होगी. 

हसीना के शासनकाल में दर्ज एक मामले में जमानत पर चल रहे और अंतरिम सरकार की बागडोर संभालने के लिए ही फ्रांस से बांग्लादेश लौटे यूनुस ने हालिया आंदोलन और तख्तापलट को देश की ‘दूसरी आजादी’ करार दिया है. 

पाकिस्तान के दमनचक्र से मुक्ति दिलवा कर पूर्वी पाकिस्तान को पृथक देश बनवाने वाले बंग-बंधु शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी शेख हसीना का तख्ता पलट कर उनकी पार्टी अवामी लीग तथा मुक्ति संग्राम में कंधे-से-कंधा मिला कर लड़े अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हिंसाग्रस्त बांग्लादेश को यह दूसरी आजादी आखिर किससे मिली है? 

अगर यह आंदोलन सिर्फ आरक्षण और शेख हसीना सरकार की गलत नीतियों के विरुद्ध था तो फिर तख्ता पलट के बाद शेख मुजीब की प्रतिमाओं सहित अवामी लीग के नेताओं तथा अल्पसंख्यकों, खासकर हिंदुओं और उनके धर्मस्थलों को निशाना क्यों बनाया जा रहा है? 

जाहिर है, धार्मिक कट्टरता के जरिये बांग्लादेश को पुन: उसी अंधेरी सुरंग में धकेलने की साजिश की जा रही है, जिससे वह लंबे संघर्ष के बाद 1971 में भारत की मदद से निकल पाया था. पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी तथा कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी की पाकिस्तानपरस्ती जगजाहिर है. पाकिस्तान और चीन का भारत विरोधी गठजोड़ भी किसी से छिपा नहीं है. 

इसलिए यह समझना मुश्किल नहीं होना चाहिए कि छात्र आंदोलन को सत्ता विरोधी आंदोलन में बदलने में परदे के पीछे किसकी भूमिका रही. तख्ता पलट के बाद बांग्लादेश में अल्पसंख्यक खासकर हिंदू विरोधी हिंसा में भी उन्हीं ताकतों की भूमिका न मानने का कोई ठोस कारण नहीं है. यह अच्छी बात है कि आंदोलनकारी छात्र नेताओं ने ऐसी हिंसा से बचने की अपील की है. 

यूनुस भी इसे गलत मानते हैं, लेकिन सिर्फ इतने भर से काम नहीं चलेगा. शाब्दिक उपदेशों से आगे बढ़ कर ऐसी हिंसा पर सख्ती से अंकुश लगाना पड़ेगा. मोहम्मद यूनुस की आर्थिक समझ पर संदेह का सवाल ही नहीं, पर राजनीति, खासकर सत्ता-राजनीति के षड्यंत्रकारी चरित्र को समझना सज्जनों के लिए अक्सर मुश्किल होता है.

Web Title: Real challenges of interim government in Bangladesh

विश्व से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे