तुर्की का मुक्कमल इलाज है पीएम मोदी के पास

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: May 29, 2025 21:09 IST2025-05-29T21:04:42+5:302025-05-29T21:09:33+5:30

तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन भी मुस्लिम ब्रदरहुड के नाम पर इस्लामिक दुनिया के नए खलीफा बनने का सपना देख रहे है और जानबूझ कर पाकिस्तान के साथ इस नए खेल में शामिल हो रहे हैं।

PM narendra Modi has the perfect solution for Türkiye Turkish President Recep Tayyip Erdogan | तुर्की का मुक्कमल इलाज है पीएम मोदी के पास

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Highlightsतुर्की को आगे कर खुद इसका लाभ लेने की सोच रख रहा है।अरब के वर्चस्व को चुनौती देने का इरादा रखता है।

विक्रम उपाध्याय 

भारत के साथ कश्मीर विवाद की आड़ में आतंकवाद का व्यापार कर रहा पाकिस्तान  इस समय एक नया अलायंस बनाने में जुटा हुआ है। प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ और नए फील्ड मार्शल बने आसिम मुनीर पूरे लावलश्कर के साथ तुर्की, ईरान और अजरबैजान की यात्रा कर के लौट रहे हैं। कहने को भारत के साथ हुए सीमित संघर्ष में समर्थन के लिए शुक्रिया अदा करने गए थे, लेकिन जिस तरह के बयान वहाँ से आए हैं, उससे साफ संदेश मिलता है, कि पाकिस्तान इस अवसर को इस्लामिक देशों के नेतृत्व में एक नया किरदार खड़ा करने में भुनाना चाहता है और तुर्की को आगे कर खुद इसका लाभ लेने की सोच रख रहा है।

पाकिस्तान, बंदूक तुर्की के कंधे पर रख कर चलाना चाहता है और अरब के वर्चस्व को चुनौती देने का इरादा रखता है। तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन भी मुस्लिम ब्रदरहुड के नाम पर इस्लामिक दुनिया के नए खलीफा बनने का सपना देख रहे है और जानबूझ कर पाकिस्तान के साथ इस नए खेल में शामिल हो रहे हैं।

वह भारत के कश्मीर पर पाकिस्तान के नजरिए का समर्थन करते हैं और पाकिस्तान को हथियार मुहैया कराते हैं। पर शायद एर्दोगन यह भूल रहे हैं पाकिस्तान को उनका यह समर्थन, उन्हें ही भारी पड़ सकता है और उनके खिलाफ पहले से सक्रिय एक अलायंस भारत के सहयोग से उनके लिए बड़ी चुनौती खड़ा कर सकता है।

प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी कूटनीति के जरिए तुर्की के चारों ओर एक ऐसा जाल बुन रखा है कि उनसे निपटने में ही एर्दोगन की सारी ऊर्जा खत्म हो जाएगी। तुर्की से खिलाफ पहले से ही आर्मेनिया, मिस्र, साइप्रस, ग्रीस और सऊदी अरब विरोधी रुख रखते हैं और ये अपने आप में तुर्की को नुकसान पहुंचाने में सक्षम देश हैं।

आर्मेनिया इस समय तुर्की का कट्टर विरोधी देश है, क्योंकि अज़रबैजान के साथ युद्ध में तुर्की ने अज़रबैजान का साथ दिया था। प्रधानमंत्री मोदी को शायद पहले से यह आभास था कि पाकिस्तान और तुर्की की गठजोड़ को टक्कर देने के लिए आर्मेनिया का साथ जरूरी है। तभी पिछले साल ही आर्मेनिया के साथ राजनयिक और सुरक्षा समझौतों को विस्तार दिया जाने लगा।

अज़रबैजान के खिलाफ़ आर्मेनिया की रक्षा के लिए भारत ने विश्वसनीय आकाश-1एस वायु रक्षा प्रणाली और पिनाका मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर के साथ अन्य भारतीय हथियार देने का फैसला किया। यह कदम अज़रबैजान का समर्थन करने वाले तुर्की और पाकिस्तानी गठबंधनों के लिए एक झटका था।

यही नहीं चीन की बेल्ट परियोजना की तरह अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे को भी भारत ने सहमति दी। यह गलियारा आर्मेनिया और ईरान के माध्यम से भारत को पूरे यूरोप से जोड़ेगा। भारत के सहयोग से आर्मेनिया की सेना की मजबूती का मतलब है देश के लिए एक रणनीतिक साझेदार का खड़ा होना है, जो भारत को यूरेशियन आर्थिक संघ तक पहुँच प्राप्त करने में बड़ी भूमिका निभाएगा।

इज़राइल भारत का सबसे बड़ा रणनीतिक साझीदार है और यही तुर्की के लिए नई दिल्ली से ईर्ष्या का कारण भी है, लेकिन तुर्की और इजराइल की दुश्मनी के अपने कारण भी है। तुर्की फिलिस्तीन मुक्ति संगठन और हमास का सीधा बचाव करता है। फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने वाले पहले देशों में से तुर्की भी है।

फिलिस्तीन इस समय इजराइल का सबसे बड़ा शत्रु है, और पिछले दो साल से वहाँ लगातार युद्ध चल रहा है। एक तरफ अरब इस समय इजराइल के साथ संबंध स्थापित करने पर जोर दे रहे हैं, वही दूसरी तरफ तुर्की हमास का खुला समर्थन कर रहा है। एर्दोगन जिस जोश से पाकिस्तान के साथ होने का दम भरते हैं, उससे कहीं ज्यादा मजबूती से इजराइल भारत के साथ खड़े हुआ दिखाई देता है।

तुर्की और मिस्र भी अब तक दुश्मन ही रहे हैं, जबकि मिस्र और भारत मित्र। एर्दोगन मुस्लिम ब्रदरहुड के खलीफा बनना चाहते हैं, जबकि मिस्र खुद इस्लामिक राज्य है और तुर्की का खुला विरोध करता है। काहिरा और अंकारा दोनों इस्लामी दुनिया के प्रमुख केंद्र हैं। तुर्की-मिस्र संघर्ष का प्रमुख कारण 2013 में मिस्र के तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी को अपदस्थ किये जाने के बाद तुर्की द्वारा मिस्र के नई सरकार के खिलाफ अभियान चलाना बना। यहाँ तक स्थिति आ गई कि, मिस्र ने तुर्की के राजदूत को देश छोड़ने का आदेश दे दिया।

लीबिया में ये दोनों देश, एक छद्म लड़ाई लड़ रहे हैं। मिस्र ने यहाँ तक आरोप लगाया है कि एर्दोगन उनके खिलाफ शत्रुतापूर्ण कार्रवाई के लिए आतंकवादी संगठनों का समर्थन कर रहे हैं। जबकि भारत और मिस्र ऐतिहासिक रूप से सहयोगी देश रहे हैं। 2023 के गणतंत्र दिवस समारोह मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फत्ताह अल-सिसी मुख्य अतिथि के रूप में भारत यात्रा पर आए थे।

भारत के साथ मिस्र का संबंध 1947 से ही है और दोनों के बीच सैन्य संबंध बहुत प्रगाढ़ है। अभी इसी साल फरवरी में भारत और मिस्र ने राजस्थान में संयुक्त सैन्य अभ्यास "साइक्लोन 2025" किया था। यह साइक्लोन का तीसरा संस्करण था। भारत के साथ भाइयों जैसा संबंध रखने वाले सऊदी अरब का तुर्की के साथ पहले से ही 36 का आकड़ा है।

सऊदी अरब और तुर्की एक दूसरे को अपने अस्तित्व के लिए ख़तरा मानते हैं। इधर के कुछ वर्षों में और इन दोनों देशों के बीच दुश्मनी के सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक तीनों कारण हैं। बल्कि तुर्की अरब विरोधी तत्वों का केंद्र बना हुआ है। खासकर सीरिया में उपजे गृहयुद्ध के बाद दोनों देश के बीच तनाव ज्यादा बढ़ गया था।

ओटोमन साम्राज्य के पतन के बाद, अरब देशों और तुर्की दोनों में राष्ट्रवादी आंदोलन चले थे और उस समय जो दरार पैदा हुआ था वह आज भी पाटा नहीं जा सका है। खास कर जब से राष्ट्रपति के रूप में तैयप एर्दोगन तुर्की के शासन में आए तब से तुर्की में अरब विरोधी भावना और बढ़ गई है। तुर्की मीडिया अरब वासियों को अपराधी और और घृणा की दृष्टि से देखता है।

तुर्की ज़्यादातर यूरोपीय देशों के साथ भी सहज नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले 10 सालों में अरबों के साथ एक बेहद नजदीकी रिश्ता कायम कर लिया है। यदि पाकिस्तान तुर्की के बहुत करीब जाता है और उसे अरब के विकल्प के रूप में खड़ा करने की कोशिश करता है, तो तुर्की के साथ- साथ उसे भी भारी आर्थिक कीमत चुकानी पड़ सकती है।

तुर्की एक ऐसा देश है, जिस पर ना तो यूरोप एतबार करता है और नया अमेरिका। सबके साथ कुछ न कुछ रार रखने वाले तुर्की के साथ जो देश खड़े हो रहे हैं उनमें कतर, अजरबैजान, लीबिया, सूडान, सोमालिया, नाइजीरिया, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया और इंडोनेशिया मुख्य रूप से शामिल हैं। यहाँ तक कि पाकिस्तान के साथ मजबूत रिश्तों की दुहाई देने वाला चीन भी तुर्की के समर्थन में नहीं आता।

चूंकि राष्ट्रपति एर्दोगन मुस्लिम वर्ल्ड का खलीफा बनना चाहते हैं तो अब वह एशियाई और अफ्रीकी मुस्लिम राज्यों के साथ भी संबंध विकसित  करने पर जोर दे रहे हैं। वह पाकिस्तान को एक जरिए के रूप में इस्तेमाल करना चाहते हैं और भारत के साथ अपने हितों कि बलि चढ़ाने से भी नहीं झिझकते।

लेकिन उनको मालूम होना चाहिए कि भारत भले ही अपने दम पर तुर्की को बहुत नुकसान नहीं पहुँचा सकता, लेकिन भारत के पास तुर्की को सबक सिखाने लायक कूटनीतिक और राजनीतिक ताकत है। भारत चाहे तो ग्रीस, आर्मेनिया और साइप्रस के जरिए तुर्की को तुरंत आर्थिक चोट पहुंचा सकता है।

तुर्की में भी कई कुर्द गुट विद्रोह की राजनीतिक कर रहे है, यदि उन्हें कुछ देश नैतिक समर्थन देते हैं तो एर्दोगन के लिए सत्ता चलाने का जोखिम बढ़ सकता है। उन्हें यह भी समझना पड़ेगा कि अगर तुर्की कश्मीर मामले में पाकिस्तान का खुला समर्थन कर सकता है भारत विद्रोहियों को मान्यता क्यों नहीं दे सकता। 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं विदेशी मामलों के जानकार हैं

Web Title: PM narendra Modi has the perfect solution for Türkiye Turkish President Recep Tayyip Erdogan

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