भारत के लिए पाकिस्तान जिस तरह एक नासूर बना हुआ है, क्या बांग्लादेश भी नया नासूर बनने जा रहा है? नासूर अमूमन एक ऐसा घाव होता है जो रह-रह कर बड़ी तकलीफ देता है. अपने शरीर में उपजने वाले नासूर को तो दवाइयों से ठीक किया जा सकता है लेकिन जब अपना पड़ोसी नासूर जैसी तकलीफ देने लगे तो क्या करें? पाकिस्तान के साथ यह सब हम झेल रहे हैं और शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद जो हालात बांग्लादेश में पैदा हुए हैं, उससे साफ लग रहा है कि यह पड़ोसी भी भविष्य में हमें निश्चय ही बहुत तकलीफ देने वाला है.
बांग्लादेश में उथल-पुथल पर वैसे तो पूरी दुनिया की नजर है लेकिन भारत के लिए इस देश के भीतर की हलचल गंभीर मायने रखती है. अभी कई सवाल सामने हैं. लोगों के मन में पहला सवाल तो यही कि अभी वहां सरकार चला रहे मोहम्मद यूनुस क्या पाकिस्तान की मदद से खुद को तानाशाह के रूप में स्थापित करने की मंशा रखते हैं?
यह सवाल इसलिए पैदा हुआ है क्योंकि अंतरिम सरकार संभालने के तत्काल बाद उन्होंने वादा किया था कि बांग्लादेश में शीघ्र ही चुनाव कराए जाएंगे. मगर ऐसी कोई संभावना फिलहाल नजर नहीं आ रही है. वे वोट देने की उम्र 17 साल करना चाहते हैं लेकिन वास्तव में यह चुनाव से दूरी बनाने का बहाना माना जा रहा है.
इस बीच उन्होंने बांग्लादेश की सेना को ट्रेनिंग देने के लिए पाकिस्तान की सेना को न्यौता भी दे दिया. वे यह भूल गए कि इसी पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेश में भीषण कत्लेआम मचाया था और महिलाओं तथा लड़कियों की अस्मत लूटी थी. जाहिर सी बात है कि ऐसी सेना को अपने देश में बुलाने का मतलब है कि मोहम्मद यूनुस का कोई न कोई लक्ष्य जरूर है.
यह लक्ष्य तानाशाही के अलावा और क्या हो सकता है? शायद नाहिद इस्लाम को यही शंका हुई जिसके कारण वक्त रहते उन्होंने अंतरिम सरकार से इस्तीफा दे दिया और अब उन्होंने नेशनल सिटिजन पार्टी का गठन किया है. नाहिद इस्लाम वही छात्र नेता हैं जिन्होंने शेख हसीना की सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था और हसीना के देश छोड़ने के बाद मोहम्मद यूनुस की गोद में सत्ता आ गिरी थी.
नाहिद इस्लाम ने हालांकि अभी तक यूनुस के खिलाफ कुछ बोला नहीं है लेकिन माना जा रहा है कि पाकिस्तानी हस्तक्षेप का डर उन्हें भी सताने लगा है इसलिए वे पहले अपनी जमीन मजबूत करना चाहते हैं. फिलहाल उन्होंने कहा कि वे एक अच्छा देश बनाना चाहते हैं. वे न तो पाकिस्तान के समर्थक हैं और न ही भारत के समर्थक हैं.
वे समानता के आधार पर रिश्ते रखना चाहते हैं. उन्हें भरोसा है कि बांग्लादेश की 55 प्रतिशत से ज्यादा की युवा आबादी उनका साथ देगी. लेकिन वे यह भूल रहे हैं कि पाकिस्तान समर्थक नहीं होने की घोषणा करना पाकिस्तानी हुक्मरानों, वहां की सेना और षड्यंत्र करने वाली एजेंसी आईएसआई को रास नहीं आया होगा!
इसलिए यह सवाल है कि वे कितना सफल हो पाएंगे? निश्चय ही उनकी सफलता इस पर निर्भर करेगी कि बांग्लादेश के सेनाअध्यक्ष वकार-उज-जमा का रुख क्या रहता है? अभी हाल ही में उन्होंने एक कार्यक्रम में राजनीतिक दलों को चेतावनी दी कि वे आपसी झगड़े बंद करें नहीं तो देश की एकता और संप्रभुता खतरे में पड़ जाएगी.
इस भाषण का आशय क्या है? उस भाषण के वक्त हालांकि नाहिद इस्लाम ने पार्टी नहीं बनाई थी लेकिन हो सकता है कि उन्हें नई पार्टी के गठन की जानकारी हो और वे नाहिद के साथ जाएं. ऐसा इसलिए कि कोई भी सेना अध्यक्ष किसी दूसरे देश की सेना के इशारों पर नहीं चलना चाहेगा. यूनुस द्वारा पाकिस्तानी सेना को तवज्जो देना उन्हें निश्चय ही अपमानजनक लगा होगा.
बांग्लादेश में एक बड़ी घटना यह हुई है कि प्रतिबंधित चरमपंथी संगठन हिज्ब-उत-तहरीर मैदान में आ गया है. पिछले शुक्रवार को उसने ढाका में बड़ा प्रदर्शन किया. प्रदर्शनकारी मांग कर रहे थे कि बांग्लादेश में खलीफा राज की स्थापना की जाए. खलीफा राज का मतलब इस्लामिक खलीफा के नेतृत्व वाली सरकार!
पुलिस ने बड़ा मामूली सा विरोध किया और आंसू गैस के गोले छोड़े लेकिन उसके बदले हिज्ब-उत-तहरीर के चरमपंथियों ने हथगोले चलाए. ये वही संगठन है जिसे 2009 में प्रतिबंधित कर दिया गया था. इसका लक्ष्य पूरी दुनिया में इस्लामिक शरिया शासन स्थापित करना है. इसे समय-समय पर अरब मुल्कों के अलावा पाकिस्तान और तुर्की जैसे देशों ने भी प्रतिबंधित कर रखा है.
सवाल यह उठ रहा है कि इस संगठन ने जब प्रदर्शन की घोषणा पहले ही कर दी थी तो फिर पुलिस ने सख्त रवैया क्यों नहीं अपनाया? वे प्रदर्शन करने या पैम्फलेट बांटने में क्यों सफल हो गए? यूनुस के कार्यकाल में इस चरमपंथी संगठन ने बड़े पैमाने पर सदस्यता अभियान भी चलाया है. माना जा रहा है कि इस संगठन को पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादी संगठनों से मदद मिलती है.
इस संगठन ने खुद पर से प्रतिबंध हटाने के लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की थी. हो सकता है कि किसी दिन यूनुस ऐसा कर भी दें. अब सवाल है कि बांग्लादेश में तानाशाह के रूप में मोहम्मद यूनुस कायम रहें या चरमपंथियों का कब्जा हो जाए तो भारत क्या करे? सवाल यह भी है कि नाहिद इस्लाम का रुख भारत के प्रति क्या होगा? या सेना अध्यक्ष वकार-उज-जमा ही तख्तापलट कर दें तो क्या होगा?
हर हाल में भारत के लिए स्थितियां कठिन ही होने वाली हैं क्योंकि ये सभी आंखें तरेर रहे हैं. विभिन्न देशों की कूटनीति में एक कहावत प्रचलित है कि आप सबकुछ बदल सकते हैं, पड़ोसी नहीं बदल सकते. पड़ोसी यदि उपद्रवी हो जाए तो वह खुद की शांति का तो नाश करता ही है, आपकी शांति को भी नष्ट कर देता है. भारत के लिए ठीक यही हालात हैं. लेकिन दुनिया यह न भूले कि हम चाणक्य की धरती के लोग हैं. कूटनीति हमें भी आती है!