Nepal Protests: पड़ोसी देश नेपाल में हिंसक प्रदर्शनों के बाद जारी घटनाक्रम पर भारत ने अब तक काफी सधी हुई प्रतिक्रिया दी है. निश्चय ही बांग्लादेश की घटनाओं बाद अब नेपाल जैसे निकट पड़ोसी देश के लिए भारत द्वारा निष्पक्षता का रवैया अपनाना सटीक और उचित है, लेकिन भारत के पड़ोस में होने वाली इस तरह की घटनाएं उसकी ‘पड़ोस सबसे पहले’ की डिप्लोमेसी के लिए एक चुनौती तो खड़ी करती ही हैं. नेपाल में राजनैतिक नेतृत्व और व्यवस्था में घर करने वाले घोर भ्रष्टाचार के खिलाफ सड़कों पर उतरे युवाओं के जेन-जी के आंदोलन के चलते हिंसा, आगजनी और राजनैतिक अस्थिरता के बीच हालात लगातार तनावपूर्ण बने हुए हैं. लगभग दो दशक पूर्व नेपाल में राजशाही के तख्तापलट के बाद ‘नए नेपाल’ की कल्पना की गई थी.
लेकिन कोई भी राजनैतिक दल जनता की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर सका और देश घोर भ्रष्टाचार, आर्थिक बदहाली और राजनैतिक अस्थिरता की ओर बढ़ता ही गया. ऐसे हालात में नेपाल में एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता भारत के लिए बड़ी चिंता की बात हो सकती है. नेपाल की भौगोलिक स्थिति भारत के लिए खास मायने रखती है.
भारत और चीन के बीच रिश्तों में उतार-चढ़ाव के बीच भारत की नजर हमेशा नेपाल की घटनाओं पर बनी रहती है. भारत-नेपाल के बीच प्रगाढ़ सांस्कृतिक, सामाजिक रिश्ते रहे हैं, अनेक वस्तुओं की सप्लाई के लिए वह भारत पर निर्भर है, क्योंकि वह एक लैंडलॉक्ड देश है और यहां सामान की आपूर्ति में भारत की भूमिका काफी अहम है.
वहीं भारत के लिए भी नेपाल का खास महत्व है, क्योंकि यह भारत और चीन के बीच एक ‘बफर स्टेट’ है. केपी शर्मा ओली के शासनकाल में भारत और नेपाल के बीच रिश्तों में गर्मजोशी नहीं दिखी, जबकि दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक तौर पर करीबी संबंध रहे हैं. ओली चीन के ज्यादा करीब माने जाते हैं. भारत नेपाल के घटनाक्रम पर बारीकी से नजर तो रखे हुए है, लेकिन तटस्थता के साथ.
बहरहाल, नेपाल में फौरी जरूरत है कि नेपाल की सेना, जिसने फिलहाल सत्ता की बागडोर संभाल ली है, वह अंतरिम सरकार बन जाने पर उसके साथ मिल कर लोकतांत्रिक प्रक्रिया से जुड़े प्रतिनिधियों को जोड़ते हुए लोकतंत्र की बहाली के लिए तुरंत कदम उठाए. इसी से एक बेहतर, साफ-सुथरी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए रास्ता बनाए जाने की शुरुआत होगी, जिससे संवैधानिक सुधार लागू किए जाएंगे और अंततः भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई जा सकेगी.