पाकिस्तान में अल्पसंख्यक कभी चैन से नहीं रहे, 78 साल में हिंदुओं पर अत्याचार?, हर साल 2000 नाबालिग लड़कियों को बालिग बताकर...
By राजेश बादल | Updated: August 21, 2025 05:20 IST2025-08-21T05:20:46+5:302025-08-21T05:20:46+5:30
हर साल पाकिस्तान में लगभग 2000 नाबालिग लड़कियों को बालिग बताकर उनका जबरन धर्मांतरण किया जाता है और उनका निकाह कर दिया जाता है.

सांकेतिक फोटो
वैसे तोपाकिस्तान में अल्पसंख्यक कभी चैन से नहीं रहे, लेकिन हालिया दौर में तो उनकी दुर्दशा चरम पर है. गुजिश्ता 78 साल में हिंदुओं पर इतने अत्याचार हुए हैं कि उन्होंने धर्म बदलकर इस्लाम कुबूल कर लिया. जो मजहब नहीं बदल पाए, वे मुल्क छोड़कर चले गए या बेमौत मारे गए. संसार के तमाम मंचों पर अपनी बदहाली का रोना रो रहे पाकिस्तान को अपने ही देश के समाजों की बदहाली नहीं दिखाई देती. हिंदुओं की बात कौन करे, मुस्लिम बिरादरी के ही शिया, अहमदिया, बोहरा, सिंधी, बलूची और पठान मुसलमानों के साथ यह इतना क्रूर बरताव करता है कि उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है.
और तो और 1947 में जो मुस्लिम हिंदुस्तान छोड़कर अपने प्रिय इस्लामी मुल्क में सबकुछ छोड़कर गए, वे वहां मुहाजिर कहलाए. अब उनकी हालत भी कोई बहुत बेहतर नहीं है. फिलवक्त ताजा सूचना यह है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की खुली बहस में मौजूद देश पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के किस्से सुनकर दंग रह गए.
मंगलवार को भारतीय राजनयिक एल्डोस मैथ्यू पुन्नूस ने जब पाकिस्तान में लड़कियों और महिलाओं पर जुल्मों की दास्तान सुनाई तो सदस्यों का सिर शर्म से झुक गया. खुली बहस में हिस्सा लेते हुए एल्डोस ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की ताजा रिपोर्ट का उल्लेख किया. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदायों की महिलाओं और लड़कियों का जबरन धर्मांतरण, नाबालिग लड़कियों का अपहरण, मानव तस्करी, बाल विवाह और जबरन विवाह, घरेलू दासता और यौन हिंसा जैसी घटनाएं हो रही हैं. इन्हें सताने और डराने के लिए दुष्कर्म को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है.
अपहरणकर्ता मौलवियों को भी इस साजिश में शामिल कर लेते है. यह मौलवी उन्हें बालिग होने का झूठा प्रमाणपत्र बना देते हैं. भारतीय राजदूत ने 1971 युद्ध का जिक्र करते हुए पाकिस्तान को बेनकाब कर दिया. एल्डोस मैथ्यू पुन्नूस ने कहा कि यौन हिंसा जैसे घिनौने अपराध करने वालों की कड़ी निंदा की जानी चाहिए और उन्हें कठघरे में खड़ा किया जाना चाहिए.
यह एक शर्मनाक और कड़वी सच्चाई है कि 1971 में पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में लाखों महिलाओं के साथ अमानवीय यौन हिंसा की. दुर्भाग्य से यह निंदनीय सिलसिला आज भी बेरोकटोक और बेखौफ जारी है. पाकिस्तानी न्यायपालिका भी कई बार इन अपराधों को सही ठहराती है. जो लोग खुद ऐसे अपराध करते हैं, वही न्याय के ठेकेदार बनकर सामने आते हैं.
उनकी दोहरी नीति और पाखंड साफ नजर आता है. ऐसे जघन्य अपराधों के दोषियों को सजा दी जानी चाहिए क्योंकि ऐसे अपराध पूरे समुदाय पर गहरे दाग छोड़ जाते हैं. भारतीय राजदूत के कथन का प्रमाण बीते दिनों पाकिस्तान के एक स्वयंसेवी संगठन वॉइस ऑफ पाकिस्तान माइनॉरिटी की रिपोर्ट देती है.
मंगलवार को ही इस संगठन ने यह तथ्य प्रकट किया था कि हर साल पाकिस्तान में लगभग 2000 नाबालिग लड़कियों को बालिग बताकर उनका जबरन धर्मांतरण किया जाता है और उनका निकाह कर दिया जाता है. धर्मांतरण से पहले उनका अपहरण किया जाता है, उन्हें यातनाएं दी जाती हैं और उनके साथ दुष्कर्म किया जाता है.
कट्टरपंथी मुसलमानों के संगठित गिरोह इसे अंजाम देते हैं. न इस पर हुकूमत कुछ कहती है और न वहां की सिविल सोसाइटी इस पर ध्यान देती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान के धार्मिक अल्पसंख्यकों में सबसे कमजोर लोगों, विशेष रूप से नाबालिग लड़कियों के साथ लैंगिक अपराधों के बारे में संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ को भी जानकारी है.
संयुक्त राष्ट्र ने तो पाकिस्तान में नाबालिग हिंदू और ईसाई लड़कियों पर अत्याचार की निंदा की है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट कहती है कि अपराधियों को दंड से मुक्ति भी मिल जाती है. यह निंदनीय है. देखा गया है कि अदालतें अपहरणकर्ताओं के पक्ष में फैसला सुनाती हैं. बालिग दिखाने के लिए कोर्ट में जाली प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया जाता है.
इस आधार पर इस्लाम स्वीकार करने के बाद वह हिंदू लड़की कानूनन अपने मूल धर्म में वापस नहीं लौट सकती. पाकिस्तान के धार्मिक कानूनों के तहत इस्लाम छोड़ने पर मृत्युदंड तक दिया जा सकता है. भारत सरकार भी ऐसे मामलों को पाकिस्तान सरकार के समक्ष उठाती रही है.
इस साल बजट सत्र में भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने जानकारी दी थी कि सरकार को पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदायों के विरुद्ध अत्याचारों की नियमित रिपोर्ट मिलती रही है, जिनमें धमकी, उत्पीड़न, हत्या, अपहरण, जबरन धर्मांतरण और बलपूर्वक निकाह की घटनाएं शामिल हैं.
अल्पसंख्यक समुदायों सहित अपने नागरिकों के प्रति अपने संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन करना पाकिस्तान सरकार की जिम्मेदारी है. पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की रिपोर्टों के आधार पर, भारत सरकार ने समय-समय पर पाकिस्तान सरकार के साथ इस मुद्दे को उठाया है और उससे अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा के लिए कदम उठाने का अनुरोध किया है.
इसके अलावा भारत ने कई अवसरों पर, जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद सहित, पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की स्थिति और उनके मानवाधिकार कुचले जाने को उजागर किया है. विदेश मंत्री ने कहा था, “हम पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे व्यवहार पर बारीकी से नजर रखते हैं. सिर्फ फरवरी में ही हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार के 10 मामले सामने आए.
उनमें से सात अपहरण और जबरन धर्म परिवर्तन के थे. दो अपहरण के थे. एक प्रकरण होली मना रहे छात्रों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई का था.’’ इसी तरह सिखों के खिलाफ तीन घटनाएं हुईं. एक मामले में सिख परिवार पर हमला किया गया, दूसरे में पुराने गुरुद्वारे को फिर खोलने के कारण सिख परिवार को धमकाया गया और तीसरा सिख लड़की के अपहरण और धर्मांतरण का था. यह उस देश का हाल है, जिसके बारे में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प कहते हैं कि वे पाकिस्तान से प्यार करते हैं.