शोभना जैन
हाल ही में चीन में हुई शंघाई सहयोग संगठन- एससीओ सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में एक बार फिर इसके एजेंडा को लेकर गहरे मतभेद और गुटबाजी उजागर हुई. इस सबसे यह सवाल एक बार फिर और भी सुर्खियों में आ गया है कि क्या एससीओ अपने चार्टर की मूल भावना से दूर हटता जा रहा है? संगठन का आतंकवाद-विरोधी एजेंडा कमजोर पड़ता नजर आ रहा है. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने गत सप्ताह चीन के विदेश मंत्री की चीन की मेजबानी में हुई एससीओ विदेश मंत्रियों की बैठक में चीन और पाकिस्तान के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में साफ कहा कि आतंकवाद से एकजुटता से निबटने को लेकर कोई समझौता न किया जाए.
हालांकि, 1996 में ‘शंघाई फाइव’ (शंघाई सहयोग संगठन का पूर्ववर्ती समूह) के गठन के बाद से सुरक्षा और आतंकवाद से मुकाबला इस क्षेत्रीय समूह का प्राथमिक उद्देश्य रहा है, मगर हाल के वर्षों में इन मुद्दों पर सदस्य देशों में बढ़ते मतभेदों ने एससीओ की ‘शंघाई भावना’ के महत्व को कमतर बना दिया है. इसके अलावा, कुछ सदस्य देशों ने गुपचुप तरीके से आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन किया है, जिससे यह क्षेत्र दहशतगर्दी का केंद्र सा बनता गया है. भारत और पाकिस्तान को 2005 में समूह में पर्यवेक्षक देशों का दर्जा दिया गया और 2017 में वे आधिकारिक रूप से इस संगठन के पूर्ण सदस्य बन गए.
भारत जहां इस समूह के भीतर एकजुट होकर आतंकवाद-विरोधी प्रयासों की जोरदार वकालत करता रहा है, वहीं पाकिस्तान ने अफगानिस्तान, भारत और ईरान जैसे पड़ोसी देशों के खिलाफ अपनी विदेश नीति के एक हथियार के रूप में राज्य-प्रायोजित आतंकवाद का इस्तेमाल किया है और आतंकियों को अपनी सुविधा से ‘अच्छे’ और ‘बुरे’ में बांट दिया है.
गहराते मतभेद, चीन के बढ़ते प्रभाव और पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का गुपचुप बचाव करने की नीति ने क्षेत्र को आतंकवाद और हिंसा के प्रति कहीं अधिक संवेदनशील बना दिया है, जबकि नई दिल्ली इस संगठन को एक व्यापक व समावेशी बनाने और इस पर किसी एक देश के दबदबे को रोकने का लगातार प्रयास करती रही है. बहरहाल, 2020 के गलवान के नृशंस चीनी हमले के बाद जयशंकर की यह पहली चीन यात्रा थी.
इसमें भारत और चीन के बीच इस हमले के बाद गहराती दूरियों के बीच द्विपक्षीय चुनौतियों से निपटने के लिए कुछ सहमति तो नजर आई लेकिन एससीओ की बैठक में विशेष तौर पर आतंकवाद पर पाकिस्तान की भूमिका को लेकर चीन के निरंतर बचाव से एससीओ के चार्टर और ईमानदारी से इसके क्रियान्वयन के साथ ही इसके भविष्य पर प्रश्नचिन्ह भी लग रहे हैं.