संपादकीय: सीरिया में मानवीय त्रासदी
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: April 1, 2019 06:40 AM2019-04-01T06:40:14+5:302019-04-01T06:41:00+5:30
आंकड़ों के अनुसार इस युद्ध में अभी तक 21 हजार बच्चों के अलावा 13 हजार महिलाओं की भी मौत हो चुकी है.
सीरिया में आठ वर्षो तक चले युद्ध में लगभग तीन लाख सत्तर हजार लोगों ने अपनी जान गंवाई है, जिसमें से नागरिकों की संख्या एक लाख बारह हजार से भी ज्यादा है. बीते शुक्रवार को यह आंकड़े सीरिया के मानवाधिकार के लिए काम करने वाली संस्था सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइटस की ओर से जारी किए गए.
आंकड़ों के अनुसार इस युद्ध में अभी तक 21 हजार बच्चों के अलावा 13 हजार महिलाओं की भी मौत हो चुकी है.
ज्ञात हो कि विभिन्न गुटों के बीच जारी हिंसक संघर्ष की शुरुआत आज से लगभग आठ साल पहले 15 मार्च 2011 को हुई थी. उस दिन सीरिया के दक्षिणी शहर दारा में सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन प्रारंभ हुआ था. यह विरोध प्रदर्शन पूरे देश में फैल गया जिसे असद सरकार ने हिंसक तरीके से दबाने की कोशिश भी की थी, लेकिन यह मिशन पूर्ण रूप से फेल हो गया.
गृह युद्ध में तब्दील हो चुके माहौल में अलग-अलग गुटों ने देश के अलग-अलग हिस्सों पर अपना दावा ठोंकना शुरू कर दिया. इसके बाद फिर इस गृह युद्ध में वैश्विक ताकतें भी शामिल हो गईं.
दुर्भाग्य से जूझते सीरिया के सामने आए इन आंकड़ों से पूरे विश्व में बेचैनी है. हालांकि अमेरिका समर्थित ‘सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेस’ ने विगत 23 मार्च को घोषणा की है कि इस्लामिक स्टेट यानी आईएस का सीरिया के अपने आखिरी गढ़ से भी सफाया हो गया है, लेकिन वहां के नागरिक अभी भी दहशत में हैं.
वहां के नागरिकों का कहना है कि वे रोज सुबह जब भी उठते हैं तो अपनी जिंदगी का आखिरी दिन समझकर जीते है क्योंकि लगातार होते रहे मौत के तांडव से उन्हें अभी भी विश्वास नहीं होता कि अगला दिन वे देख भी पाएंगे या नहीं.
सीरिया में अमेरिका समर्थित सेनाओं ने भौगोलिक लड़ाई भले ही जीत ली हो, लेकिन अभी यह नहीं कहा जा सकता कि वैचारिक रूप से भी उन्हें विजय हासिल हो गई ैहै. हो सकता है कि आईएस के लड़ाके अभी भूमिगत हों और मौका देखते ही फिर हमले शुरू कर दें.