बलूचिस्तान की आजादी कितनी दूर?, बहुत कमजोर हालात में पाकिस्तान, बलूचों को मिलेगा फायदा
By विकास मिश्रा | Updated: May 13, 2025 05:24 IST2025-05-13T05:24:19+5:302025-05-13T05:24:19+5:30
भारत ने हमेशा उनके हितों की बात की है और एक आजाद देश के रूप में उनकी पहचान का हिमायती रहा है.

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बलूचों को भारत से बहुत उम्मीदें हैं. वे चाहते हैं कि आजादी के आंदोलन में भारत उनका साथ दे. भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर से पहले एक सवाल हर तरफ तैर रहा था कि अब तक हुए सभी चार जंगों में पाकिस्तान की पराजय ही हुई और 1971 में तो पाकिस्तान टूट भी गया था और नए राष्ट्र बांग्लादेश का जन्म हुआ था. खासकर बलूचिस्तान समर्थक लोग यह यह सोच रहे थे कि क्या एक नए राष्ट्र के रूप में बलूचिस्तान आजाद होगा? यदि हां तो बलूचों की आजादी अब कितनी दूर है? दुनिया देख रही है कि बलूच लिब्रेशन आर्मी ने पूरा जोर लगाया हुआ है और बलूचिस्तान के बड़े हिस्से में सुरक्षा पोस्ट पर उन्होंने कब्जा कर लिया. बलोच लेखक मीर यार ने तो आजादी की घोषणा भी कर दी. उन्होंने भारत और संयुक्त राष्ट्र संघ से बलूचिस्तान को एक देश के रूप में मान्यता देने का आग्रह भी कर दिया.
हालांकि भारत ने अभी तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है लेकिन बलूच इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि भारत ने हमेशा उनके हितों की बात की है और एक आजाद देश के रूप में उनकी पहचान का हिमायती रहा है. सत्ता संभालने के बाद लाल किले की प्राचीर से भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बलूचिस्तान का जिक्र भी किया था.
चलिए, सबसे पहले जानते हैं कि बलूचिस्तान की मांग लगातार क्यों उठती रही है? 1947 में जब अंग्रेजों ने भारत के बंटवारे की चाल चली तो उस वक्त कलात के खान का इलाका यानी बलूचिस्तान की चाहत थी कि वह एक स्वतंत्र देश रहे. इसी चाहत की वजह से उसने पाकिस्तान में विलय से इनकार कर दिया और एक स्वतंत्र देश बन गया.
लेकिन अंग्रेजों ने एक चाल चली और यह कह दिया कि कलात यानी बलूचिस्तान अलग देश बनने की हालत में नहीं है. इस बीच पाकिस्तान को जन्म देने वाले जिन्ना ने कुछ बलूच सरदारों को अपने साथ मिलाया और 26 मार्च 1948 को पाकिस्तानी सेना ने बलूचिस्तान पर कब्जा कर लिया. बलूचिस्तान केवल 227 दिन ही आजाद रह पाया.
बलूचों ने कभी भी पाकिस्तानी सेना को अपनी धरती पर स्वीकार नहीं किया. इससे निपटने के लिए छोट-छोटे स्तर पर आंदोलन चलते रहे और पाक सेना उन आंदोलनों को बेरहमी से कुचलती रही. 1973 से 1977 के बीच तो पाकिस्तानी सेना ने बलूचिस्तान में नरसंहार किया. सन् 2000 के बाद से पाकिस्तानी सेना की क्रूरता वहां और भी बढ़ गई है.
पाकिस्तानी सेना अब तक कितने बलूचों को मौत के घाट उतार चुकी है, इसका कोई ठीकठाक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है लेकिन माना जाता है कि यह संख्या हजारों में है. पाकिस्तानी सेना बलूचिस्तान के इलाके से युवाओं को उठा लेती है और उनकी लाश तक का पता नहीं चलता है. हजारों हजार युवा गायब कर दिए गए हैं.
पाकिस्तानी सेना ने बलूचिस्तान की लड़कियों को अपनी हवस का शिकार कई बार बनाया है. दुर्भाग्य की बात है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने पाकिस्तान पर नकेल कसने की कोई कोशिश नहीं की. यहां तक कि दुनिया में लोकतंत्र के रक्षक के रूप में खुद को सामने रखने वाला अमेरिका भी चुप्पी साधे रहा है.
किसी कौम के साथ जब इस तरह का अमानवीय व्यवहार हो रहा हो तो स्वाभाविक तौर पर विद्रोह को और हवा ही मिलेगी. बलूच बहादुर कौम है और इस वक्त पाकिस्तानी सेना की नाक में दम कर रखा है. अभी कुछ दिन पहले ही जाफर एक्सप्रेस को बलूच लिब्रेशन फोर्स ने अगवा कर लिया था और बहुत से पाकी सैनिकों को मौत के घाट भी उतार दिया था.
यदि आप पाकिस्तान का नक्शा देखें तो उसका सबसे बड़ा प्रांत बलूचिस्तान है. आंकड़ों की भाषा में बात करें तो पाकिस्तान के कुल क्षेत्रफल का करीब 46 प्रतिशत हिस्सा बलूचिस्तान है. मगर आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि केवल 6 प्रतिशत लोग ही वहां रहते हैं. खनिज संपदा की वहां भरमार है.
चीन की सहायता से पाकिस्तान इस खनिज संपदा का दोहन कर रहा है लेकिन इसके बदले बलूचों को कुछ नहीं मिलता. यही कारण है कि जब पाक ने वहां चीन को निमंत्रण दिया तो बलूच आंदोलकारियों ने चीनियों को भी मौत के घाट उतारा. इस तरह का सशस्त्र विद्रोह आखिर हो भी क्यों नहीं? वहां की 70 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे है.
पाक का प्रशासनिक ढांचा हो या फिर पाक सेना, कहीं भी बलूचों को सही प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया. बलूचों को भारत से उम्मीदें हैं और वे चाहते हैं कि आजादी के आंदोलन में भारत उनका साथ दे. सहायता करने की भारत की अपनी सीमाएं हैं लेकिन यह भी जगजाहिर है कि हम भारतीय भावनात्मक रूप से उनके साथ हैं.
वैसे दुनिया भर में बहुत से ऐसे लोग हैं जो बलूचों के साथ हो रहे अत्याचार के प्रबल विरोधी हैं और चाहते हैं कि बलूचिस्तान को जल्दी आजादी मिले. लेकिन सबसे ज्यादा उम्मीदें तो भारत से ही हैं! यही कारण है कि बलूचिस्तान में पूरी ताकत से आजादी का झंडा बुलंद करने वाली नायला कादरी ने तो कोई 8 साल पहले बनारस में आयोजित संस्कृति संसद में कहा था कि बलूचिस्तान आजाद होता है तो वहां सबसे पहली मूर्ति नरेंद्र मोदी की स्थापित होगी.
ऐसा इसलिए क्योंकि नरेंद्र मोदी पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने बलूचिस्तान के दर्द का जिक्र किया! स्वाभाविक रूप से यह सवाल मन में आता है कि बलूचिस्तान में नरेंद्र मोदी की मूर्ति स्थापित होने में और कितना वक्त लगेगा. बलूचों के लिए वो दिन वास्तव में बहुत बड़ा दिन होगा. आजादी से ज्यादा मूल्यवान दुनिया में कुछ भी नहीं है..!