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रहीस सिंह का ब्लॉग: खुल रही चीन की कलई, बढ़ रहीं भारत से उम्मीदें

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: May 25, 2022 12:20 IST

आपको बता दें कि चीन सेल्फसेंट्रिक होने के साथ-साथ अतिमहत्वाकांक्षी भी है। इसलिए उस भरोसा करना तो दूर, प्रत्येक स्थिति में उसे न्यू वर्ल्ड ऑर्डर का निर्माण करने या नेतृत्व की भूमिका में आने से रोकना चाहिए।

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ठळक मुद्देचीन से शुरू हुई कोरोना से आज चीन ही परेशान है। इसकी लहर दुनिया के कई देशों में तो कम हो गई है लेकिन चीन अभी भी इसके चपेट में है। चीन के कई शहर अभी भी भयंकर लॉकडाउन को झेल रहे है।

कोविड 19 महामारी दुनिया के सामने एक ऐसे संकट के रूप में आई थी जिससे होने वाली आर्थिक क्षति का भले ही अनुमान लगा लिया जाए लेकिन उससे जो मनोदैहिक या मानवीय क्षति हुई उसका आकलन कोई मशीन और आंकड़े नहीं कर सकते. इसके लिए दोषी किसे माना जाए? 

उसे, जिसकी लैब से वायरस के लीक होने की फुसफसाहट सुनी गई? या उन्हें जिन्होंने इस थ्योरी पर निष्कर्ष तक न पहुंचने की कोशिश की और न ही उसे दुनिया से अलग-थलग करने की रणनीति पर काम किया?

वुहान थ्योरी पर क्या कहना था विशेषज्ञों का

जब अमेरिका की तरफ से वुहान थ्योरी प्रतिपादित हुई थी तो कुछ विशेषज्ञों ने यह भविष्यवाणी की थी कि यह चीन का ‘चेर्नोबिल’ हो सकता है. अंतरराष्ट्रीय विषय का अध्ययन करने वाले अच्छी तरह से जानते होंगे कि चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना पर बोले गए झूठ ने सोवियत संघ के पतन को किस तरह तेज कर दिया था. 

चीन ने दुनिया को किया गुमराह

सार्स कोव 2 या कोविड वायरस और वुहान लैब के बीच क्या कनेक्शन है, इसके साथ-साथ वायरस संबंधी अन्य कई पक्षों पर भी चीन ने बहुत कुछ छुपाया, बहुत कुछ झूठ बोला और झूठे दावे किए जिसका नुकसान पूरी दुनिया को उठाना पड़ा. यही नहीं, चीन के झूठ पर पर्दा डालने का काम कुछ अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने भी किया है. 

परिणाम यह हुआ कि चीन ने अपने झूठ और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा दिए गए साथ को जीत के तौर पर देखा ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर इसका प्रचार भी किया है. इसका फायदा चीन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, दोनों को ही मिला है. चीन यही चाहता भी था. उसकी मंशा थी कि शी जिनपिंग डिवाइन लीडर के तौर पर चीन के अंदर स्वीकार किए जाएं और दुनिया चीन की एकदलीय व्यवस्था को सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था के रूप में देखे. 

यूरोप भी चीन के झांसे में आ गया

पश्चिमी दुनिया विशेषकर यूरोप, चीन के इस झांसे में आ भी गया अन्यथा ट्रस्ट डेफिसिट के बाद भी चीन के लिए यूरोपीय बाजारों में चीन के लिए रेड कारपेट बिछी न रहती और यूरोपीय देश बांहें फैलाकर उसका स्वागत न करते. शायद ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पश्चिमी विशेषज्ञों, बाजारों और राजनेताओं ने भी स्वीकार कर लिया कि चीन ही कोविड विजेता है. 

पश्चिमी विशेषज्ञ तो चीन से इस कदर प्रभावित हुए कि वे यह चेतावनी देते हुए देखे गए कि महामारी को न केवल एक मानवीय आपदा के रूप में बल्कि अमेरिका से दूर एक भू-राजनीतिक मोड़ के रूप में भी याद किया जाएगा. इसी का इस्तेमाल चीन ने दुनिया के उस बाजार को कैप्चर करने में किया जहां कोविड से जूझते लोगों को बड़े पैमाने पर मास्क, मेडिसिन और मेडिकल किट की जरूरत थी. लेकिन क्या सच में चीन कोविड विजेता था?

लॉकडाउन से अब भी जुझ रहे है कई चीनी शहर

यदि ऐसा है तो अब दुनिया के सबसे बड़े पोर्ट और चीन के सबसे बड़े फाइनेंशियल मार्केट शंघाई सहित दो दर्जन से अधिक शहर लॉकडाउन की चपेट में क्यों हैं जहां करोड़ों जिंदगियां कैद होकर रह गई हैं. यदि विजेता का असल पक्ष यही है तो बेहद चिंताजनक बात है. 

यह कैसा चीन है और कैसा उसका विकास मॉडल? क्या इसके बावजूद भी चीन दुनिया के फलक पर अपना यही मुकाम कायम रखने में सफल रहेगा? या फिर दुनिया के अन्य देश जिनमें एक भारत भी है, 21वीं सदी के विश्व को आगे ले जाने का दायित्व ग्रहण करेंगे?

चीन है सेल्फसेंट्रिक और अतिमहत्वाकांक्षी

चीन सेल्फसेंट्रिक होने के साथ-साथ अतिमहत्वाकांक्षी भी है. इसलिए उस भरोसा करना तो दूर, प्रत्येक स्थिति में उसे न्यू वर्ल्ड ऑर्डर का निर्माण करने या नेतृत्व की भूमिका में आने से रोकना चाहिए. जहां तक भारत का प्रश्न है तो भारत ने पिछले कुछ वर्षों में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. 

आज कहां खड़ा है भारत

भारत की वैश्विक नीति पहले अर्थमेटिकल कम एंथ्रापॉलिजिकल अधिक रही है. इसके बावजूद भारत दुनिया की सात विकसित अर्थव्यवस्थाओं के अंतरसरकारी संगठन का स्थायी हिस्सा बनता दिख रहा है. 

द्वितीय- भारतीय अर्थव्यवस्था सर्वाधिक पोटेंशियल रखने वाली इमर्जिंग इकोनाॅमी है, जिसे जिम ओ नील ने लगभग दो दशक पहले ब्रिक की वैचारिक नींव डालते हुए हाथी की संज्ञा दी थी और हाथी में अन्य के मुकाबले कहीं अधिक पोटेंशियल है. 

तृतीय- अमेरिका और चीन के बीच चलने वाली लड़ाई जियोपोलिटिक्स है और जियोस्ट्रेटजी है जिसमें नई एकाधिकारवादी व्यवस्था की स्थापना एक प्रमुख पक्ष है. ऐसे में आने वाले समय में बहुत सी दरारें निर्मित होंगी और भारत की जरूरत यह है कि वह इसे भरे. 

भारत के पास वह क्षमता है कि वह इन्हें भरे या इनके ऊपर ऐसे सेतुओं को निर्माण कर दे जो भारत की उन देशों तक पहुंचने वाली राह अनुकूल कर दे. दक्षिण एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया, पूर्वी एशिया, अरब देशों आदि में भारत ने ऐसे सेतुओं का निर्माण किया भी है जो इन क्षेत्रों में भारत की पहुंच ही सुनिश्चित नहीं करते बल्कि चीन के विकल्प के रूप में भारत को देखने की शक्ति भी देते हैं.

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