Ceasefire claim: दुनिया को वास्तविक शांतिदूत चाहिए, सौदेबाज नहीं, दुनिया को सत्ता के भूखे अवसरवादियों की नहीं...

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: June 28, 2025 04:44 IST2025-06-28T04:44:31+5:302025-06-28T04:44:31+5:30

Ceasefire claim: प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि संघर्षविराम दोनों देशों की सेना द्वारा सीधे संपर्क से संभव हुआ, जिसकी जड़ 1972 के शिमला समझौते में है.

Ceasefire claim donald trump world needs real peacemakers not deal-makers world doesn't need power hungry opportunists blog Prabhu Chawla | Ceasefire claim: दुनिया को वास्तविक शांतिदूत चाहिए, सौदेबाज नहीं, दुनिया को सत्ता के भूखे अवसरवादियों की नहीं...

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Highlightsभारत ने कभी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार नहीं की, न ही भविष्य में करेगी.वैश्विक दिग्गजों से पूरे सम्मान के साथ गोपनीय बातचीत की थी.मध्यस्थता की आज की अवसरवादी कोशिशों से उसकी तुलना ही नहीं हो सकती.

प्रभु चावला

जब भी कोई विवाद खड़ा होता है, राजनेता खुद को दूरदर्शी राजनीतिज्ञ के रूप में साबित करने के लिए सक्रिय होते हैं और विवाद खत्म कराने का श्रेय लेते हैं. इस महीने डोनाल्ड ट्रम्प जब भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम का दावा करते हुए सुर्खियों में थे, तब उनके दावे से ज्यादा वजनी भारत की चुप्पी थी, जो एक फोन कॉल से टूटी. ट्रम्प के कथित दावे के बारे में पहले से सुन चुके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पैंतीस मिनट तक टेलीफोन पर बात कर ट्रम्प का दावा ध्वस्त कर दिया. प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि संघर्षविराम दोनों देशों की सेना द्वारा सीधे संपर्क से संभव हुआ, जिसकी जड़ 1972 के शिमला समझौते में है.

प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रम्प से कहा, ‘भारत ने कभी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार नहीं की, न ही भविष्य में करेगी.’ मोदी-ट्रम्प के बीच की यह बातचीत एक बड़े संकट के बारे में बताती है. संघर्षों से विध्वस्त दुनिया में विश्वसनीय और वैश्विक स्तर पर स्वीकार्य मध्यस्थों का अभाव है. इससे कूटनीति प्रभावित हुई है और हिंसा को रोका नहीं जा सका है.

अगर 1970 के दशक की बात करें, तो शीतयुद्ध के दौरान तत्कालीन सोवियत संघ को अंकुश में लाने के लिए हेनरी किसिंजर की माओ त्से तुंग से गोपनीय कूटनीति की याद आती है. आज के दौर में वैसी कूटनीतिक मध्यस्थता नहीं दिखती. आज के प्रचारवादी सौदेबाजों के विपरीत किसिंजर ने दुनिया को नया आकार देने के लिए वैश्विक दिग्गजों से पूरे सम्मान के साथ गोपनीय बातचीत की थी.

मध्यस्थता की आज की अवसरवादी कोशिशों से उसकी तुलना ही नहीं हो सकती. अगर ट्रम्प खुद को किसिंजर के अवतार के रूप में देख रहे थे, तो मोदी ने उसे खारिज कर दिया. इसके पीछे एक क्षुब्ध करने वाली सच्चाई है कि हमारे दौर में विश्वसनीय मध्यस्थ नहीं हैं. जून, 2025 का वैश्विक भू-दृश्य विविध संघर्षों से भरा है, और भरोसेमंद मध्यस्थ के अभाव में वे थमते हुए भी नहीं दिखते.

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद शांति स्थापित करने वाले फ्रेंकलिन रूजवेल्ट या 1978 में कैंपडेविड समझौता लागू करवाने वाले जिमी कार्टर जैसे दिग्गज कूटनीतिज्ञों की याद भी अब धूमिल हो चली है. आज के तथाकथित मध्यस्थ बदले हुए वेश में सौदेबाज हैं. दुनिया एक बाजार बन गई है, जहां मध्यस्थता के बजाय हथियार, तेल और नजरिया ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है.

भारत की जिस विदेश नीति को कभी अप्रभावी समझा जाता था, वह आज मजबूत हुई है. मोदी द्वारा अपने ताकतवर सहयोगी को दोटूक कहना कि उन्हें तीसरे पक्ष की मध्यस्थता नहीं चाहिए, उभरती ताकत की विदेश नीति में एक बड़े बदलाव का सूचक है. वे दिन बीत गए, जब साउथ ब्लॉक समझौते के लिए वाशिंगटन या लंदन का इंतजार करता था. आज भारत अपनी शर्तों पर समझौता करता है.

हालांकि शून्य फिर भी बना हुआ है. दुनिया को सत्ता के भूखे अवसरवादियों की नहीं, शांतिदूत की जरूरत है. ऐसे शांतिदूत की, जिनकी नैतिक शक्ति जिमी कार्टर जैसी हो और जो भू-राजनीति में किसिंजर जैसे कुशल हों. जब तक ऐसे व्यक्तित्व का आगमन नहीं होता, तब तक लाखों लोगों का विस्थापन होता रहेगा और युद्धजर्जर दुनिया विध्वंस के जरिये हथियार उद्योग का पेट भरती रहेगी.  

Web Title: Ceasefire claim donald trump world needs real peacemakers not deal-makers world doesn't need power hungry opportunists blog Prabhu Chawla

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