हाल ही में जारी एक रिपोर्ट से पता चलता है कि जी-20 देशों की फॉसिल फ्यूल सब्सिडी को रिन्यूएबल एनर्जी स्रोतों में निवेश की ओर पुनर्निर्देशित करने से न केवल जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में मदद मिल सकती है, बल्कि भूख, ऊर्जा पहुंच और पर्यावरण प्रदूषण जैसे वैश्विक मुद्दों का भी समाधान हो सकता है।
रिपोर्ट आगामी जी-20 नेताओं के शिखर सम्मेलन के लिए फोसिल फ्यूल सब्सिडी को चर्चा के एजेंडे में रखने की तात्कालिकता पर प्रकाश डालती है। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आईआईएसडी) और उसके अन्य सहयोगियों द्वारा लिखित ‘फैनिंग द फ्लेम्स : जी-20 फॉसिल फ्यूल के लिए रिकॉर्ड वित्तीय सहायता प्रदान करता है’ शीर्षक वाली रिपोर्ट, जी-20 देशों द्वारा फॉसिल फ्यूल के लिए बढ़ाए गए चौंका देने वाले वित्तीय समर्थन को रेखांकित करती है।
अकेले 2022 में, जी-20 देशों ने फॉसिल फ्यूल उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए 1.4 ट्रिलियन डॉलर खर्च किए, यह आंकड़ा 2019 के पूर्व-महामारी और पूर्व-ऊर्जा संकट स्तर से दोगुना से अधिक है। आईआईएसडी में वरिष्ठ एसोसिएट और अध्ययन के मुख्य लेखक तारा लान ने निष्कर्षों की महत्वपूर्ण प्रकृति पर जोर दिया, ‘ये आंकड़े इस बात की स्पष्ट याद दिलाते हैं कि जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों के बावजूद जी-20 सरकारें भारी मात्रा में सार्वजनिक धन को तेजी से फॉसिल फ्यूल में डालना जारी रखे हुए हैं।’
उन्होंने जी-20 नेताओं से जीवाश्म आधारित ऊर्जा प्रणालियों के परिवर्तन को प्राथमिकता देने का आह्वान किया और कोयला, तेल और गैस के लिए सार्वजनिक वित्तीय प्रवाह को खत्म करने के लिए सार्थक कार्रवाई का आग्रह किया। फॉसिल फ्यूल की कीमतों को कृत्रिम रूप से कम करने से जलवायु परिवर्तन बढ़ जाता है, जिससे अधिक बार और तीव्र चरम मौसम की घटनाएं होती हैं।
इसके अतिरिक्त, रिपोर्ट फॉसिल फ्यूल सब्सिडी को खत्म करने के लिए स्पष्ट समय सीमा निर्धारित करने की सिफारिश करती है, जिसमें विकसित देशों का लक्ष्य 2025 तक और उभरती अर्थव्यवस्थाओं का लक्ष्य 2030 तक इस सब्सिडी को खत्म करना है।