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ब्लॉगः ड्रीम चाइना... जिसके साथ आगे बढ़ना की कोशिश कर रहे जिनपिंग, जानें चीन का एजेंडा

By रहीस सिंह | Updated: April 8, 2023 15:30 IST

शी जिनपिंग जिस ‘ड्रीम चाइना’ का वादा कर सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए हुए हैं, उसे चीनी जनता असफल मानने लगी है। शी जिनपिंग अभी भी उस सपने से बहुत दूर खड़े हैं जो उन्होंने दस वर्ष पहले चीनियों के सामने रखा था। दूसरी तरफ कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा चीनी जनता के बीच ड्रैगनोपिंग यानी ड्रैगन के एक नए अवतार के रूप में जिनपिंग को पेश किया जा रहा है। फिर भी चीनी जनता छिटक रही है। जिनपिंग के लिए ये अच्छे संकेत तो नहीं।

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शी जिनपिंग ‘कोर लीडर ऑफ चाइना’ के रूप में अपने तीसरे कार्यकाल में प्रवेश कर समस्त अलोचनाओं से मुक्त पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के सर्वोच्च नेता बन चुके हैं और आजीवन इसी विशेषता के साथ पदारूढ़ रह सकते हैं। इसी के साथ एक बात और, चीन ने अपने रक्षा बजट में भारी वृद्धि कर दुनिया की सबसे बड़ी सैन्य ताकत बनने का इरादा जताया है। क्या इन दोनों में कोई संबंध है अथवा यह निरर्थक सी लगने वाली बात है? हालांकि संसद के प्रवक्ता ने इसे उचित व तार्किक वृद्धि बताते हुए कहा है कि इसका उद्देश्य जटिल सुरक्षा चुनौतियों का सामना करना है। लेकिन यही मात्र इसका उद्देश्य है या फिर जिनपिंग के नेतृत्व में एशिया का वेपनाइजेशन इसका असल ध्येय है? अगर ऐसा है तो एशिया युद्धोन्माद की ओर बढ़ेगा। एक बात और, भारत राष्ट्र की सीमाओं पर पीपुल्स आर्मी की हरकतों की निरंतरता और उनमें वैल्यू एडीशन कहीं इसका उद्देश्य तो नहीं? या फिर चीन की घरेलू व्यवस्था का बिगड़ता हुआ स्वरूप जिसे आप व्यवस्थागत और सोशियो-एथनिक, दोनों ही संदर्भों में देख सकते हैं, इसके लिए उत्तरदायी हैं?  जिबूती के सैन्य बेस का निर्माण अथवा मलक्का-ग्वादर-जिबूती स्ट्रैटेजिक कनेक्ट भी इसमें शामिल हो सकता है जिसके हिंद महासागर से जुड़े गहरे सामरिक अर्थ हो सकते हैं। सवाल यह है कि इनमें किस या किन एंगल्स के साथ जिनपिंग आगे बढ़ना चाहेंगे?

शी जिनपिंग ने सेंट्रल मिलिट्री कमीशन(सीएमसी) के संयुक्त अभियान कमान मुख्यालय में सैन्यकर्मियों को संबोधित करते हुए कुछ समय पहले ही कहा था कि हमें युद्ध लड़ने और जीतने के लिए तैयार रहना चाहिए। इसलिए प्रथम दृष्ट्या जिनपिंग से ऐसी ही अपेक्षाएं रखते हुए भारत को आगे बढ़ना होगा। दरअसल चीन खुद को एशिया का लीडर मानता है और इस विचार को वह सभी राष्ट्रों पर थोपने की निरंतर कोशिश भी कर रहा है ऋण देकर या फिर धमका कर। लेकिन भारत उसे एशिया का नेता नहीं मानता। यह आज की बात नहीं है। 1962 में हुए चीन-युद्ध के कारणों में एक यह भी था। डोकलाम भी इसी का परिणाम था और गलवान भी। सभी जानते हैं कि ट्राई-जंक्शन पर स्थित डोकलाम के पहाड़ी इलाके पर चीन ने तब घुसपैठ की थी जब भारत ने बेल्ट एंड रोड एनीशिएटिव (बीआरआई) पर बीजिंग में हो रही मीटिंग में शामिल होने से न केवल इंकार किया था बल्कि इस प्रोजेक्ट को औपनिवेशिक प्रकृति वाला भी बताया था। गलवान डोकलाम का अगला एपिसोड था। ऐसा तो नहीं हो सकता कि इसकी पटकथा जिनपिंग के सामने न आई हो।

सच बात तो यह है कि शी जिनपिंग ने बातचीत में भले ही भारत के साथ सकारात्मक दृष्टिकोण रखा हो लेकिन वास्तविकता कुछ और थी। क्या यह मात्र संयोग था कि जिनपिंग एरा शुरू होने के ठीक बाद यानी वर्ष 2013 के मई महीने में चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री ली केकियांग भारत आए थे तो उनकी यात्रा से ठीक पहले चीनी सैनिक एलएसी पर लद्दाख के डेपसांग में घुस गए थे? सितंबर 2014 में जब राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत यात्रा पर आए तब पूर्वी लद्दाख के चुमार सेक्टर में चीनी सैनिकों ने घुसपैठ की। गौर से देखें तो पीपुल्स आर्मी द्वारा घटित इन सभी घटनाओं का पैटर्न एक ही है। यही चीनी पैटर्न है जो पीपुल्स आर्मी के जरिये भारत पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए अपनाया गया। दरअसल चीन का एजेंडा भारत में व्यापार को विस्तार देना था और भारत प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में इंडिया सेंट्रिक विदेश नीति के साथ आर्थिक आत्मनिर्भरता के एजेंडे पर आगे चल पड़ा था। शी जिनपिंग चीनी एजेंडे में बदलाव लाने के पक्षधर नहीं हैं और भारत अपने एजेंडे में।

यूक्रेन युद्ध में रूस को सभी ने देखा लेकिन चीन को कम, जबकि चीन असल खिलाड़ी रहा और कोविड 19 को लेकर वुहान वायरस थ्योरी आने व जीरो कोविड नीति की असफलता के बावजूद वैश्विक स्वीकार्यता में डेफिसिट लगभग न के बराबर आया। इससे भी बड़ी बात यह हुई कि सुन्नी और शिया दुनिया के नेताओं के रूप में निरंतर टकराने वाले सऊदी अरब और ईरान के बीच मध्यस्थता कर समझौता करा दिया, यह अमेरिकी इंटेलिजेंस का फेल्योर ही नहीं है बल्कि उसकी लीडरशिप और उसके अस्तित्व पर भी प्रश्नचिह्न है।

शी जिनपिंग जिस ‘ड्रीम चाइना’ का वादा कर सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए हुए हैं, उसे चीनी जनता असफल मानने लगी है। शी जिनपिंग अभी भी उस सपने से बहुत दूर खड़े हैं जो उन्होंने दस वर्ष पहले चीनियों के सामने रखा था। दूसरी तरफ कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा चीनी जनता के बीच ड्रैगनोपिंग यानी ड्रैगन के एक नए अवतार के रूप में जिनपिंग को पेश किया जा रहा है। फिर भी चीनी जनता छिटक रही है। जिनपिंग के लिए ये अच्छे संकेत तो नहीं।

एक बात और, जिनपिंग ‘नो’ सुनना पसंद नहीं करते इसलिए अब वे या तो अपने नागरिकों का दमन करें या फिर अपनी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पीपुल्स आर्मी को सक्रिय करें, यही दो विकल्प उनके पास हैं। शायद वे दूसरे पर अधिक फोकस करेंगे। वैसे भी जिनपिंग 2027 तक पीएलए को एक विश्व स्तरीय सेना बनाने की मंशा प्रकट कर चुके हैं जिसके जरिए वे यूनीफिकेशन और रीजनल वॉर को बढ़ावा दे सकते हैं। हालांकि वे भारत से कोई बड़ा युद्ध लड़ने की गलती नहीं करेंगे लेकिन भारत को दबाव में रखने की कोशिश अवश्य करेंगे ताकि भारत की उपमहाद्वीपीय शक्ति के रूप में बढ़ती स्वीकार्यता को ठेस पहुंचे। इसलिए भारत की सीमा पर ही नहीं बल्कि पूर्वी एशिया, मध्य-पूर्व, अफ्रीका और लातिनी अमेरिका में चीन भारत के साथ हितों का टकराव पैदा करने की हरसंभव कोशिश करेगा।

टॅग्स :चीनशी जिनपिंग
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