Bangladesh–India border: घुसपैठियों को बाहर क्यों नहीं करते?, पश्चिम बंगाल से आधार कार्ड बनवाकर मुंबई में बसे
By विकास मिश्रा | Updated: March 25, 2025 05:30 IST2025-03-25T05:30:15+5:302025-03-25T05:30:15+5:30
Bangladesh–India border: सवाल यह उठता है कि क्या बांग्लादेशी घुसपैठियों को भारत से बाहर करना संभव है?

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Bangladesh–India border: जब से बांग्लादेश ने भारत के खिलाफ आंखें तरेरना शुरू किया है और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अवैध प्रवासियों को अमेरिका से वापस भेजने की मुहिम तेज की, तब से यह सवाल उठने लगा है कि भारत सरकार अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों को वापस भेजने के लिए मुहिम शुरू क्यों नहीं करती? इस बीच महाराष्ट्र विधानसभा में गृह राज्य मंत्री योगेश कदम ने यह कह कर सबको चौंका दिया है कि बांग्लादेशी घुसपैठिये पश्चिम बंगाल से आधार कार्ड बनवाकर मुंबई में बस रहे हैं. अब सवाल यह उठता है कि क्या बांग्लादेशी घुसपैठियों को भारत से बाहर करना संभव है?
यह सवाल इसलिए पैदा हो रहा है क्योंकि केंद्र सरकार के पास प्रामाणिक आंकड़ा ही मौजूद नहीं है कि देश में कितने बांग्लादेशी घुसपैठिये रह रहे हैं. ढेर सारे तो ऐसे भी घुसपैठिये हैं जो वीजा लेकर भारत आए और यहां गुम हो गए. पुलिस बस ढूंढ ही रही है. वैसे ज्यादातर घुसपैठिये वो हैं जो चुपके-चुपके सरहद पार कर भारत में दाखिल हुए हैं.
भारत के पांच राज्य बांग्लादेश के साथ सरहद साझा करते हैं. ये राज्य हैं पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा. सबसे बड़ी सीमा पश्चिम बंगाल के साथ लगती है. दूसरे नंबर पर असम है. इसलिए सबसे ज्यादा घुसपैठिये इसी रास्ते से आते हैं और सबसे ज्यादा घुसपैठिये पश्चिम बंगाल तथा असम में ही हैं.
इन राज्यों में ज्यादातर जगह खुली सीमा है और चप्पे-चप्पे पर सीमा सुरक्षा बल का तैनात होना मुश्किल काम है. यहां हम जिन घुसपैठियों की बात कर रहे हैं, वे मार्च 1971 के बाद भारत में अवैध रूप से प्रवेश करने वाले बांग्लादेशी हैं. इनकी संख्या कितनी है, यह कहना मुश्किल है. फिर भी एक आकलन यह है कि पश्चिम बंगाल में इनकी संख्या करीब 56 लाख और असम में 50 लाख है.
इसके साथ ही ये घुसपैठिये 17 राज्यों में फैले हुए हैं. 1997 में तत्कालीन गृह मंत्री इंद्रजीत गुप्त ने संसद में कहा था कि बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या करीब 1 करोड़ है. 2007 में तत्कालीन गृह राज्य मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने कहा कि 1.2 करोड़ अवैध बांग्लादेशी भारत में रह रहे हैं. बाद में इस आंकड़े के स्रोतों को गलत बताते हुए उन्होंने बयान वापस ले लिया था.
2014 में सीबीआई के पूर्व डायरेक्टर जोगिंदर सिंह ने कहा था कि बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या करीब 5 करोड़ है. लेकिन इस आंकड़े की पुष्टि के लिए उन्होंने कोई प्रमाण नहीं दिया. 2016 में तत्कालीन गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि भारत में 2 करोड़ बांग्लादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं. इन आंकड़ों का विश्लेषण करें तो एक अंदाजा लगाया जा सकता है कि घुसपैठियों की संख्या कम से कम 2 करोड़ तो है ही! वास्तव में यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. दरअसल ये चुपके से आते हैं और पहले से मौजूद बांग्लादेशियों के बीच छिप जाते हैं.
घुसपैठ कराने वाले गिरोह सक्रिय हैं जो दस से पंद्रह हजार रुपए लेकर उन्हें नकली दस्तावेज दे देते हैं. यहां तक कि भारत में काम दिलाने का काम भी ये एजेंट करते हैं और ये एजेंट भी बांग्लादेशी ही हैं. पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा में ऐसे एजेंट भरे हुए हैं. इनका जाल दूसरे राज्यों तक भी फैल चुका है.
दिल्ली में सैंटो शेख नाम के एक व्यक्ति की हत्या के बाद जब पुलिस ने जांच-पड़ताल की तो पता चला कि वह बांग्लादेशी घुसपैठियों के लिए आधार कार्ड तैयार करवाता था. ये घुसपैठिये बड़ी आसानी से अपनी पहचान भी छिपा लेते हैं. इसके प्रमाण कई बार सामने आ चुके हैं कि घुसपैठिये हिंदू नाम अख्तियार कर लेते हैं.
अभी हाल ही में अभिनेता सैफ अली खान के घर में शरीफुल इस्लाम शहजाद नाम का जो हमलावर घुसा था वह बिजॉय दास के रूप में मुंबई में रह रहा था. पता चला कि वह सरहद के साथ बहने वाली दावकी नदी को पार करके भारत में घुसा था. उसने फर्जी पहचान पत्र के जरिये मोबाइल का सिम हासिल किया.
इसी तरह पुलिस ने एक बांग्लादेशी महिला कुलसुम शेख को पकड़ा जिसने अपना नाम मोहिनी रखा हुआ था. आश्चर्यजनक है कि सामान्य रूप से आधार कार्ड बनाने के लिए इतनी सख्त प्रक्रिया होने के बावजूद घुसपैठियों के आधार कार्ड कैसे बन जाते हैं. निश्चय ही यह अधिकारियों की मिलीभगत से ही संभव है.
पिछले साल आगरा में पकड़े गए 40 बांग्लादेशी घुसपैठियों ने बताया था कि वे कैसे सरहद की सुरक्षा को चकमा देकर भारत में घुस आए थे और कैसे उन्होंने पहचान पत्र हासिल कर लिया. इन बांग्लादेशी घुसपैठियों ने घुसपैठ वाले राज्यों पश्चिम बंगाल और असम के दर्जनों इलाकों में डेमोग्राफी यानी जनसांख्यिकी तो बदल ही दी है, बिहार के कई इलाकों में भी इनका बहुमत हो गया है.
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की एक रिपोर्ट कहती है कि झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र में बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण जनसांख्यिकी बदल गई है. पिछले विधानसभा चुनाव में इस मामले को लेकर काफी तूफान भी मचा था. सर्वोच्च न्यायालय भी बड़े साफ शब्दों में कह चुका है कि अवैध घुसपैठियों के कारण कई इलाकों में संस्कृति और जनसांख्यिकी पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है.
केंद्र और राज्य सरकारों को घुसपैठियों की पहचान करने और उनके निर्वासन में तेजी लानी चाहिए. हकीकत यही है कि पश्चिम बंगाल से लेकर बिहार तक के कई विधानसभा क्षेत्रों में ये घुसपैठिये वोट बैंक बन चुके हैं. और हमारे देश की राजनीति वोट बैंक पर आधारित है. ऐसे में इस बड़े वोट बैंक से कौन हाथ धोना चाहेगा?