वक्त के पैमाने पर देखें तो राकेश शर्मा के बाद दूसरे भारतीय को अंतरिक्ष में भेजने में चार दशक से ज्यादा लग गए लेकिन गर्व की बात है कि ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला वो दूसरे भारतीय बन गए हैं. कल्पना चावला और सुनीता विलियम भारतीय मूल की थीं लेकिन भारतीय नहीं थीं इसलिए उन्हें अपने खाते में हम नहीं जोड़ सकते हैं. शुभांशु का अंतरिक्ष में जाना भारत के लिए अंतरिक्ष की दुनिया में निश्चित ही बड़ी छलांग है.
महान वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम कहा करते थे कि सपने बड़े देखो और फिर ज्ञान अर्जित करके पूरे समर्पण के साथ उस सपने को पूरा करने में जुट जाओ. भारत यही कर रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सपना संजोया है कि किसी भारतीय को भारतीय रॉकेट पर सवार करके श्रीहरिकोटा प्रक्षेपण स्थल से अंतरिक्ष में भेजा जाए. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) इसके लिए गगनयान मिशन के तहत पूरी दृढ़ता से काम कर रहा है.
गगनयान मिशन के तहत अंतरिक्ष यात्रियों को 400 किमी की कक्षा में भेजा जाएगा. तीन दिन बाद वे वापस आएंगे. इसके लिए चार अंतरिक्ष यात्रियों का चयन हो चुका है. इनमें शुभांशु शुक्ला भी शामिल हैं. शुभांशु की यह एक्सियम-4 यात्रा उस सपने को साकार करने में सार्थक भूमिका निभाएगी. उनका अनुभव काम आएगा. उम्मीद है कि वर्ष 2027 में यह मिशन पूरा होगा.
मोदी ने यह भी सपना देखा है कि वर्ष 2035 तक भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन हो. अपनी क्षमताओं को हम इतना विकसित करें कि अपने बलबूते हम किसी भारतीय को चांद पर पहुंचाएं. वास्तव में हमारे पास अगले पंद्रह वर्षों का एक रोडमैप है जिस पर इसरो काम कर रहा है.
इसरो बड़े पैमाने पर सैटेलाइट लॉन्च करता रहा है और उस क्षेत्र में अकल्पनीय क्षमताओं को हासिल कर चुका है लेकिन अंतरिक्ष में मानव मिशन बिल्कुल अलग बात है. मानव मिशन अपेक्षाकृत अत्यंत कठिन काम माना जाता है. केवल अमेरिका, रूस और चीन ही इस क्षेत्र में कमाल दिखा पाए हैं. भारत निश्चय ही चौथा देश बनेगा जो अपनी बदौलत किसी भारतीय को पहले अंतरिक्ष में और फिर चांद पर पहुंचाएगा.
यदि हम एक्सियम-4 की यात्रा में शुभांशु शुक्ला के कार्यों का विश्लेषण करें तो यह बात समझ में आती है कि मानव मिशन की दिशा में उनका काम बहुत महत्वपूर्ण होगा. वैसे भी मानव मिशन के लिए उनका चयन हो चुका है. एक्सियम-4 के पायलट के तौर पर मिशन की लॉन्चिंग, ऑर्बिट मे दाखिल होने, इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में डॉकिंग, सुरक्षित तरीके से वापस आने पर लैंडिंग में शुभांशु की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है.
मिशन के दौरान विभिन्न कंट्रोल टीम के साथ संवाद में भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रहने वाली है. शुभांशु और उनकी टीम के सदस्य अंतरिक्ष में बीज अंकुरण से लेकर पौधा उगाने को लेकर भी प्रयोग करने वाले हैं. कुल 60 तरह के प्रयोग होने वाले हैं जिनमें तीस देशों की भागीदारी है और इनमें से बहुत से प्रयोग शुभांशु करने वाले हैं. अंतरिक्ष में एस्ट्रो-बायोलॉजी के प्रयोग भारत ने अभी तक नहीं किए हैं.
शुभांशु यह प्रयोग करने वाले हैं. इन सारे प्रयोगों का फायदा भारत के मानव मिशन में मिलने वाला है. इन सारी बातों को ध्यान में रखकर ही भारत ने एक्सियम-4 में करीब साढ़े पांच सौ करोड़ में शुभांशु के लिए एक जगह खरीदी. यह भी बड़ी दिलचस्प बात है कि अप्रैल 1984 में जब राकेश शर्मा सोवियत मिशन के तहत अंतरिक्ष में गए थे तब शुभांशु का जन्म भी नहीं हुआ था.
राकेश शर्मा की अंतरिक्ष यात्रा को उन्होंने किताबों में ही पढ़ा था लेकिन उनकी लगन और क्षमता के साथ उनका भाग्य देखिए कि वे अंतरिक्ष में पहुंचने वाले दूसरे भारतीय नागरिक बन गए हैं. वे अंतरिक्ष से जब अपने स्कूल के बच्चों से बात करेंगे तो निश्चय ही पूरे भारत के बच्चे भी अंतरिक्ष की ओर आकर्षित होंगे.
यही बच्चे भविष्य में महान वैज्ञानिक बनेंगे. राकेश शर्मा जब अंतरिक्ष में गए थे तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से बात करते हुए उन्होंने कहा था... सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा! शुभांशु भी किसी वीआईपी से बात करने वाले हैं. शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शुभांशु के बीच बात हो! शुभांशु के संदेश का हम बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.