गणोश उत्सव पर बड़ी श्रद्धा से गणपति बाप्पा का स्वागत किया जाता है. उनकी मूर्ति स्थापित की जाती है और दस दिनों तक उनकी पूजा होती है. उसके पश्चात बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मूर्ति को विसर्जित करते हैं. यही परंपरा चली आ रही है.
गणोशजी को सभी देवताओं में प्रथम पूजनीय माना जाता है. कोई भी शुभ कार्य करने से पहले उनकी आरती की जाती है. उन्हें बुद्धि का देवता भी कहा जाता है. जब उन्हें और उनके भाई को पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए कहा गया तो गणोशजी ने अपने माता-पिता की परिक्रमा की और विजयी हुए.
गणोशजी के विचित्न स्वरूप के पीछे गहरा आध्यात्मिक रहस्य छुपा है. इस स्वरूप का रहस्य इस प्रकार है- हाथी जहां बहुत शक्तिशाली और सतर्क होता है, वहीं बहुत समझदार भी होता है. अपनी लंबी सूंड से हर चीज को पहले वह फूंक कर परखता है. यह सतर्कता का प्रतीक है.
उसके बड़े बड़े कान सूप के समान होते हैं. सूप का कार्य है कचरे को बाहर फेंकना और सार को भीतर रखना. ऐसे ही हमें व्यर्थ बातों को बाहर रहने देना है, भीतर नहीं जाने देना है.
गणोशजी का बड़ा सिर जो हाथी का है, बुद्धिमत्ता तथा विवेकशीलता का प्रतीक है. सभी जानवरों में हाथी को सबसे अधिक बुद्धिमान माना जाता है. छोटी आंखें दूरदर्शिता तथा एकाग्रता का प्रतीक हैं. हाथी के बड़े पेट का भी गूढ़ रहस्य है.
बड़े पेट का मतलब है सभी तरह की बातों को अपने भीतर समा लेना, समेटना, उनका प्रचार-प्रसार नहीं करना वरना जीवन बहुत दुखदाई हो सकता है. गणोशजी के चार हाथ हैं. उनमें कमल पुष्प, फरसा, मोदक, आशीर्वाद की मुद्रा होती है.
कमल का फूल पवित्नता का प्रतीक है. कीचड़ में रहकर उससे ऊपर उठा रहता है. इसी प्रकार संसार में रहते हुए निर्लेप रहने का संदेश है. फरसा अपने भीतर के अवगुणों, आसुरी संस्कार और विकारों को काटते रहने का प्रतीक है. जीवन में सभी के प्रति मधुरता, मिठास बनाए रखने का प्रतीक मोदक है.
आशीर्वाद की मुद्रा का संदेश है सबके प्रति शुभ भावना, शुभकामना, भलाई की सोच सदा बनी रहे. चूहे को गणोशजी की सवारी बनाने के पीछे अर्थ है हमारा मन चूहे के समान चंचल है. चूहा जब काटता है उससे पहले फूंक मारकर उस स्थान को सुन्न कर देता है जिससे दर्द नहीं हो. इसी प्रकार मन भी बुद्धि को सुन्न कर देता है जिससे नकारात्मक विचार, विकार सब मन में प्रवेश कर जाते हैं. चूहे पर सवार होना अर्थात मन पर नियंत्नण रखना.
गणोशजी के बैठने की मुद्रा भी विशिष्ट तरह की है. उनका एक पैर मुड़ा होता है और दूसरा धरती को छूता है जो यह दर्शाता है कि संसार में रहते हुए भी उस से ऊपर उठकर रहो.
गणोशजी के सर्वगुण संपन्न, संपूर्ण व्यक्तित्व से जीवन जीने की कला के दर्शन होते हैं. आज आवश्यकता है उनके स्वरूप को सही अर्थो में जानकर उनके गुणों का अनुसरण किया जाए.