ब्लॉग: त्याग, सामाजिक समानता का पर्व ईद-उल-अजहा
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: July 21, 2021 10:25 IST2021-07-21T10:21:06+5:302021-07-21T10:25:42+5:30
बकरीद: आर्थिक समानता इस्लाम के अहम उद्देश्यों में से एक है. साल में एक बार जकात निकालना, सदका-ए-फितर अदा करना, कुर्बानी के हिस्से तकसीम करना, यह सब समाज को आर्थिक समानता की ओर ले जाने के तरीके हैं.

ईद-उल-अजहा- त्याग, सामाजिक समानता का पर्व
जावेद आलम
ईद-उल-अजहा अल्लाह के हर हुक्म के आगे नतमस्तक हो जाने का पैगाम है. उस मालिके-हकीकी का हुक्म पूरा करने के लिए अपनी औलाद ही क्यों न कुर्बान करना पड़े, कर देनी चाहिए. औलाद भी कैसी, जो 85 साल की उम्र में खूब दुआओं के बाद पैदा हुई हो. यह इसी की यानी रब के सामने पूरी तरह समर्पित होने की सीख देती है.
अल्लाह के नबी हजरत इब्राहीम ने अल्लाह के हुक्म पर अपने इकलौते बेटे हजरत इस्माईल की कुर्बानी पेश की थी, इसी की यादगार ईद-उल-अजहा है. इसमें मवेशियों की कुर्बानी एक प्रतीक है कि हम अल्लाह के एक नेक, परम आज्ञाकारी बंदे और हमारे पुरखे हजरत इब्राहीम के महा बलिदान को याद रखे हुए हैं.
फिर पैगंबरे-आजम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खासतौर से यह हुक्म दिया है कि जिसकी आर्थिक स्थिति ठीकठाक हो, वह कुर्बानी करे. सो इस दिन ईद-उल-अजहा की दो रकअत विशेष नमाज पढ़ कर कुर्बानी की जाती है, जिसे कुर्बानी के दिनों में सबसे पसंदीदा कर्म बताया गया है.
इस्लाम में दो त्योहार हैं; ईदुलफितर व ईद-उल-अजहा. दोनों त्योहारों पर सामाजिक बराबरी का न सिर्फ साफ आदेश दिया गया, बल्कि तरीका भी बताया गया है; ईदुलफितर पर गरीब, कमजोर वर्ग को सदका-ए-फितर दो, ताकि वह तबका भी ईद मना सके, ईद-उल-अजहा पर गरीबों तक कुर्बानी का हिस्सा पहुंचाओ.
ऐसे आदेशों का मकसद क्या है? यही कि जो किसी कारण आर्थिक रूप से पीछे रह गए हैं, ऐसे गरीबों, बेसहारा, मजबूर व बेकस बंदों का खयाल रखो. उन्हें भी अपनी खुशियों में शरीक करो.
आर्थिक समानता इस्लाम के अहम उद्देश्यों में से एक है. साल में एक बार जकात निकालना हो, सदका-ए-फितर अदा करना हो, कुर्बानी के हिस्से तकसीम करना हो.. यह सब क्या हैं? यह सब इंसानी समाज को आर्थिक समानता की ओर ले जाने के तरीके हैं.
जो कुर्बानी आध्यात्मिक रूप से बंदे को रब से करीब करती है, वही सामाजिक रूप से सब इंसानों को बराबर समझने, उनके साथ हमदर्दी व समानता का बर्ताव करने की सीख देती है. आर्थिक रूप से वह समाज के पिछड़े वर्ग की मदद करती है. ईद-उल-अजहा के इन फायदों को भी नजर में रखना चाहिए.