Chaitra Navratri 2025: नवजीवन के प्रतीक हैं नारी-शक्ति के नौ रूप?, शक्ति, स्त्रीत्व और समृद्धि...
By प्रमोद भार्गव | Updated: April 1, 2025 05:16 IST2025-04-01T05:16:38+5:302025-04-01T05:16:38+5:30
Chaitra Navratri 2025 Live: सृजन काल में देव पुरुष दानवों से पराजित हुए तो उन्हें राक्षसों पर विजय के लिए दुर्गा जी से अनुनय करना पड़ा.

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Chaitra Navratri 2025 Live: शारदीय नवरात्र के बाद चैत्र नवरात्र में एक बार फिर हम स्त्री शक्ति के नौ रूपों की पूजा कर रहे हैं. नवरात्र में जो नव उपसर्ग हैं, वे नौ की संख्या के साथ-साथ नूतनता के भी प्रतीक हैं. इस अर्थ में वे परिवर्तन के सूचक हैं. ये रूप शक्ति, स्त्रीत्व और समृद्धि के प्रतीक भी हैं. इन स्वरूपों की पूजा करते हुए स्त्री रूपी इन देवियों के भव्य रूप हमारी चेतना में उपस्थित रहते हैं. इन्हें शक्ति रूप इसलिए कहा जाता है, क्योंकि जब सृष्टि के सृजन काल में देव पुरुष दानवों से पराजित हुए तो उन्हें राक्षसों पर विजय के लिए दुर्गा जी से अनुनय करना पड़ा.
एक अकेली दुर्गा ने विभिन्न रूपों में अवतरित होकर अनेक राक्षसों का नाश कर सृष्टि के सृजन को व्यवस्थित रूप देकर गति प्रदान की. प्रतीक रूप में ये रूप अंततः मनुष्य की ही विभिन्न मनोदशाओं के परिष्कार से जुड़े हैं. इन मनोदशाओं को राक्षसी प्रवृत्ति कह सकते हैं, जो मनुष्य की नकारात्मक विकृतियों के भी प्रतीक हैं.
नवदुर्गाओं में शैल पुत्री प्रथम दुर्गा मानी जाती हैं. शैल पुत्री अपने पूर्वजन्म में दक्ष प्रजापति की कन्या थीं और इनका नाम सती रखा गया. अगले जन्म में यही सती शैलराज हिमालय के घर में पैदा हुईं और शैलपुत्री कहलाईं. इन्हें ही पार्वती कहा जाता है. दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी का है. ब्रह्मचारिणी का जन्म पर्वतराज हिमालय की पत्नी मैना के गर्भ से हुआ था.
इनका नाम शुभ लक्षणों को देखते हुए पार्वती रखा गया. ब्रह्मा ने तप का आचरण करने के कारण ब्रह्मचारिणी का नाम दिया. नवरात्रि के तीसरे दिन दुर्गा के शरीर से नई शक्ति के रूप में चंद्रघंटा की वंदना की जाती है. सिंह पर सवार ये देवी निडरता के साथ सौम्यता के गुणों से भी भरपूर हैं. दुर्गा का चौथा स्वरूप कुष्मांडा देवी का है.
इनका निवास सूर्यलोक में है इसीलिए इनके शरीर की कांति और आभा सूर्य के समान सदैव प्रकाशित रहती है. पांचवां रूप स्कंद माता का है. इनके पुत्र कार्तिकेय का एक नाम स्कंद है, इसलिए इन्हें स्कंद माता कहा जाता है. ये पद्मासना देवी भी कहलाती हैं. छठे दिन देवी कात्यायनी की पूजा की जाती है. दुर्गा के सातवें रूप को देवी कालरात्रि के नाम से जाना जाता है.
दुर्गा पूजन के आठवें दिन महागौरी की उपासना की जाती है. महागौरी ने शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए लंबे समय तक तपस्या की. इस कारण उनका शरीर कृशकाय और काला हो गया. अंत में जब भगवान शिव ने पार्वती रूपी इन महागौरी को पत्नी रूप में स्वीकार किया तब शिव ने अपनी जटाओं से निकलने वाली गंगा की जलधारा से पार्वती का शरीर धोया.
इससे उनका शरीर गौर वर्ण की तरह चमकने लगा. इसी कारण वे महागौरी के नाम से जानी जाने लगीं. नवरात्रि के अंतिम यानी नौवें दिन सिद्धिदात्री की पूजा करने की परंपरा है. ये सभी रिद्धि-सिद्धियों की स्वामिनी हैं.