नर्मदाजी की उद्गम स्थली पर बसी सुरम्य पवित्र नगरी अमरकंटक में भारत की प्राचीन स्थापत्य शैली का उत्कृष्ट उदाहरण, जैन मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा तपस्वी, दार्शनिक संत आचार्य गुरुवर विद्यासागरजी महाराज के सान्निध्य में आगामी 25 मार्च से दो अप्रैल तक होने जा रही है। समुद्र सतह से लगभग साढ़े तीन हजार फुट की ऊंचाई पर मैकल पर्वत माला के शिखर अमरकंटक में राजस्थान के बंसी पहाड़ के गुलाबी पत्थरों से ओडिसी शैली में निर्मित मंदिर आचार्य विद्यासागर महाराज की प्रेरणा भावना और आशीर्वाद का अनुपम रूप है। मंदिर के जिनालय के मूलभवन में पत्थरों को तराश कर गुड़ के मिश्रण से प्राचीनकालीन निर्माण की तकनीक का प्रयोग कर चिपकाया गया है। जिनालय में राजस्थानी शिल्पकारों की शिल्पकला अत्यंत मनमोहक है। इस आयोजन के लिए देश-विदेश से लाखों जैन श्रद्धालु मंदिर नगरी अमरकंटक पहुंच रहे हैं।
सर्वोदय तीर्थ समिति के अध्यक्ष प्रमोद सिंघई के अनुसार मंदिर की 2000 में नींव रख दी गई थी। अष्ट धातु निर्मित मूर्ति भगवान आदिनाथजी की प्रतिमा यहां विराजमान है। जिनालय के अंदर आदिनाथजी व कमल दोनों का वजन 41 टन है जो कि अष्ट धातु में ढली ठोस रूप में संसार में सबसे वजनी प्रतिमा मानी जाती है। यह गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हो चुका है। लगभग बीस वर्षों के अनथक और अनवरत परिश्रम से भूतल से लगभग एक सौ सत्तर फुट ऊंचा ये विशाल और भव्य जिनमंदिर निर्मित हुआ है।
स्वागताध्यक्ष विनोद सिंघई ने बताया कि इस आयोजन के लिए व्यापक व्यवस्थाएं की जा चुकी है। दुनिया की सबसे वजनी अष्टधातु की प्रतिमा के दूसरी तरफ दो और मूर्ति अष्टधातु की विराजमान है। पहली भगवान भरत व दूसरी भगवान बाहुबली। ये मूर्तियां भी 11–11 टन की बताई जा रही है। इसी मंदिर के ठीक सामने सहस्त्र कूट जिनालय बना है। इस सहस्त्र कूट जिनालय में नीचे से ऊपर तक अष्टधातु की 1008 मूर्तियां स्थापित होंगी जिनका वजन लगभग 55 से 60 किलोग्राम के बीच होगा और सबसे ऊपर शिखर पर तीन मूर्तियां विराजमान होंगी जो लगभग ढाई-ढाई टन की होंगी। वह भी अष्टधातु की मूर्तियां रहेंगी।
पंचकल्याणक महोत्सव के प्रतिष्ठाचार्य बाल ब्रह्मचारी विनय भैया ‘सम्राट’ने बताया कि अमरकंटक की धरा पर धर्मपालन के पुण्यार्जन की विशेष महिमा है, जैन दर्शन में पंचकल्याणक महोत्सव से अद्भुत ऊर्जा उत्पन्न होती है। सर्वोदय तीर्थ समिति के प्रचार प्रमुख वेदचंद जैन के अनुसार इस आयोजन के लिए श्रद्धालुओं के लिए सुचारु आवासीय व्यवस्था उपलब्ध कराने और धर्म लाभ के लिए क्षेत्र के आसपास का जैन समाज श्रद्धा व उत्साह से जुटा है।