जो खेल लंबे अरसे से अपनी ही जन्मभूमि भारत में ठोस वजूद की तलाश कर रहा था, आज उसी में विश्व विजेता बनकर हर भारतीय गौरवान्वित है. महिला तथा पुरुष खो-खो टीम ने प्रथम विश्व कप जीतकर भारतीय खेल जगत को फख्र महसूस कराया है. विश्व कप में भारत के दोहरा ताज जीतने और मेजबानी से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खो-खो की पहचान निर्विवाद रूप से और गहरी होगी.
हालांकि, विश्व कप प्रतियोगिता में ब्राजील, पेरु, दक्षिण अफ्रीका जैसी टीमों की हिस्सेदारी खो-खो की लोकप्रियता के बढ़ते ग्राफ की तस्दीक कर रही है. विश्व कप के आयोजन से भविष्य में अमेरिका तथा यूरोपीय मुल्कों में भी खो-खो की लोकप्रियता बढ़ेगी. खो-खो का खेल उसकी कम समयावधि की वजह से अमेरिका और यूरोप के लोगों के लिए मुफीद हो सकता है. टी-20 क्रिकेट खेलने की कम अवधि की वजह से ही अमेरिका जैसे देशों में लोक्रप्रिय हो रहा है.
खो-खो वैसे भारत की मिट्टी की उपज है लेकिन क्रिकेट की चकाचौंध की वजह से अन्य विशुद्ध भारतीय खेलों की तरह खो-खो भी विलुप्तप्राय हो चला था. आज विश्व विजेता बन जाने के बावजूद भारत में कितने लोगों को पता है कि दोनों टीमों में 12-12 खिलाड़ी होते हैं जबकि खेलने के लिए सिर्फ नौ-नौ खिलाड़ी ही उतरते हैं? कितने लोगों को पता है कि भारत की महिला टीम की कप्तान प्रियंका इंगले और पुरुष टीम के कप्तान प्रतीक वाइकर हैं? बहुत कम लोग खो-खो के तकनीकी पहलुओं और खिलाड़ियों के बारे में जानते हैं. बहरहाल, पिछले दो सालों में खो-खो के दिन बहुरने के संकेत मिलने लगे थे.
सन् 2022 में भारत में खो-खो की फ्रेंचाइजी आधारित ‘अल्टीमेट लीग’ शुरू की गई थी. हालांकि लीग के उद्घाटन संस्करण में मात्र छह टीमों ने ही शिरकत की थी, लेकिन वैश्विक स्तर पर खो-खो मुकाबलों का सीधा प्रसारण 64 मिलियन लोगों ने देखा, जिनमें भारत से दर्शक संख्या 41 मिलियन थी. इन आंकड़ों ने प्रसारकों का उत्साह बढ़ाया. अगले पांच साल तक लीग के सीधे प्रसारण के लिए प्रसारक 200 करोड़ रुपए का निवेश कर चुके हैं. आयोजकों ने खो-खो का सीधा प्रसारण दर्शकों के लिए आकर्षक बनाने के मकसद से नियमों में बदलाव किए हैं जो सार्थक साबित हुए.
खो-खो विश्व कप का आयोजन और मेजबान का चैंपियन बनना क्रिकेट केंद्रित भारतीय खेलों की दुनिया में एक नया एहसास है. खो-खो विश्व कप प्रतियोगिता में कुल 39 टीमें (20 पुरुष और 19 महिला) ने शिरकत की थी. बहरहाल, भारत की पुरुष तथा महिला टीम की यह खिताबी कामयाबी खो-खो में नए युग का सूत्रपात करेगी इसमें दो राय नहीं. खो-खो के प्रथम विश्व कप संस्करण में मिली सफलता इस खेल की स्थिति में बदलाव के लिहाज से टर्निंग प्वाइंट साबित हो सकती है. खो-खो को अब यकीनन प्रायोजक मिलेंगे, जिससे पैसा आएगा और खेल तरक्की के नए पायदान पर पहुंचेगा