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गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉगः नैतिकता की राह में अहम की बाधा

By गिरीश्वर मिश्र | Updated: June 10, 2019 08:17 IST

हमारी निहायत व्यक्ति केंद्रित होती जा रही संस्कृति सिर्फ अहं भाव को संतुष्ट और प्रदीप्त कर रही है. वह हमारे आध्यात्मिक स्वभाव यानी आत्मा को दबाती जा रही है.

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हमारी निहायत व्यक्ति केंद्रित होती जा रही संस्कृति सिर्फ अहं भाव को संतुष्ट और प्रदीप्त कर रही है. वह हमारे आध्यात्मिक स्वभाव यानी आत्मा को दबाती जा रही है. आमतौर पर पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी, शादी-ब्याह, परिवार, धन संपत्ति  का अर्जन करते हुए लोग उस शिखर को छू लेते हैं जिसकी उन्हें चाह थी. वे उद्योगपति, नेता, अभिनेता, डॉक्टर, इंजीनियर या अफसर बन कर सफलता, घर, परिवार और खुशहाल जीवन सब कुछ पा जाते हैं. 

इस पहले शिखर पर पहुंच कर लोग अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा सुरक्षा करने यानी उसके प्रबंधन में ही अपना ज्यादा से ज्यादा समय बिताते हैं. वे इन सवालों से जूझते रहते हैं :  लोग मेरे बारे में क्या सोचते हैं? मेरी जगह कितनी ऊपर पहुंची?  दरअसल वे अपने अहं की विजय यात्ना का उत्सव मनाने में मशगूल हो जाते हैं. बड़े जोर-शोर से सक्रिय जिंदगी के ये साल हमारी वैयक्तिकता के आगोश में बीतते हैं. लोग यह मान कर चलते हैं कि मैं खुद को खुश रख सकता हूं. इसके लिए प्रतिदिन अपने इर्द-गिर्द जरूरी और गैरजरूरी चीजों का अंबार लगाते जाते हैं. पर एक दूसरी तरह के लोग भी मिलते हैं  जिनके  जीवन में कुछ हुआ और जीवन  के लिए चुनी गई सीधी राह में व्यवधान आ गया. कुछ ऐसा हुआ जिससे वैयक्तिक मेरिट वाले मूल्यों के साथ जिंदगी जीना खोखला लगने लगा. लगा कि जीवन में कुछ और भी होना चाहिए, कुछ उच्च आशय सिद्ध होना चाहिए.  पीड़ा की अनुभूति सामान्य जीवनक्र म को खंडित कर देती है. वह यह याद दिलाती है कि तुम वही नहीं हो जो तुम अपने बारे में सोच रहे थे. तुम्हारी आत्मा का आधार और गहरा है. इन अतल गहराइयों में झांकने पर पाते हैं कि सफलता ही सब कुछ नहीं है. आध्यात्मिक जीवन और परिजनों का निर्बाध प्यार भी जरूरी है.

यदि पहला शिखर अहं और स्व का निर्माण करना है तो दूसरा अपने अहं का विसर्जन और स्व को विगलित करना है. यदि पहला अर्जन और संग्रह का है तो दूसरा सामाजिक योगदान और प्रतिदान है. पहले शिखर पर निजी स्वतंत्नता का उत्सव मनाया जाता है तो दूसरे शिखर पर पहुंच कर आदमी  बिना किसी आशा के लोगों से संस्थाओं से जुड़ता है. अति व्यक्तिवादी पहले शिखर की संस्कृति में अवगाहन करते-करते हम एक दूसरे के साथ ठीक से बर्ताव करना भूलते जा रहे हैं. लोगों के बीच का रिश्ता कमजोर हुआ है. उसने साङो की नैतिक संस्कृति को नष्ट कर दिया है जो पूंजीवाद के ऊपर अंकुश लगाती थी.

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