एन. के. सिंह का ब्लॉग: कानून नहीं, आप स्वयं हैं इन समस्याओं का निदान
By एनके सिंह | Updated: December 5, 2019 09:44 IST2019-12-05T09:44:56+5:302019-12-05T09:44:56+5:30
भारतीय समाज बीमार है. ये बीमारियां भांति-भांति के अपराध में अभिव्यक्त होती हैं. उनमें से कुछ जैसे चोरी या डकैती, जमीन-जायदाद के झगड़े और सड़क पर गुस्से में हिंसा, सांप्रदायिक दंगे, लालच-जनित अपराध रोकने में सख्त कानून या सक्षम सरकार की भूमिका अहम होती है.

एन. के. सिंह का ब्लॉग: कानून नहीं, आप स्वयं हैं इन समस्याओं का निदान
हैदराबाद में हुए महिला पशु-चिकित्सक बलात्कार और हत्याकांड के बाद महिलाएं भयभीत हैं, देश एक बार फिर आहत है, संसद में आक्रोश है और सरकार फिर बलात्कार कानून को और सख्त बनाने को कमर कस रही है. निर्भया कांड के एक साल बाद बलात्कार कानून को सख्त किया गया. लेकिन ‘रेप’ की खबरें अब ‘गैंगरेप’ के रूप में उभर रही हंै. सन 2016 में बिहार में शराबबंदी हुई, इस आशय के साथ कि शराब-जनित अपराध कम होंगे. लेकिन एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार अगले छह माह में अपराध बढ़ गए.
बलात्कार की ऐसी नृशंस घटनाओं पर जनाक्रोश उबाल पर होता है और सरकार से अपराधी को ‘फांसी’ देने और सख्त कानून की मांग करता है. जनता और सरकारें यह भूल जाती हैं कि कुछ अपराध उस श्रेणी में आते हैं जिनमें कानून से ज्यादा सामाजिक चेतना जगाने की जरूरत होती है.
भारतीय समाज बीमार है. ये बीमारियां भांति-भांति के अपराध में अभिव्यक्त होती हैं. उनमें से कुछ जैसे चोरी या डकैती, जमीन-जायदाद के झगड़े और सड़क पर गुस्से में हिंसा, सांप्रदायिक दंगे, लालच-जनित अपराध रोकने में सख्त कानून या सक्षम सरकार की भूमिका अहम होती है. लेकिन वे अपराध, जिनमें नैतिक या मूल्य जनित स्व-नियंत्रण के अभाव में व्यक्तिगत मनोविकार एक अपराध का रूप ले लेते हैं जैसे बलात्कार, शराबखोरी के बाद हिंसक-कामुक प्रवृत्ति, औपचारिक शिक्षा और संपन्नता के बावजूद भ्रष्टाचार, इन्हें केवल कानून बना कर या उन्हें सख्त करके नहीं रोका जा सकता. सन 2012 में निर्भया बलात्कार कांड के बाद जन-आक्र ोश चरम पर पहुंचा था. अगले साल ही कानून को सख्त किया गया. लेकिन रेप की घटनाएं अब अधिकाधिक ‘गैंगरेप’ में तब्दील हो गई हैं. सात साल बाद हैदराबाद में एक महिला पशु-चिकित्सक के साथ फिर यही हुआ.
इन अमानुषिक दरिंदगी का कारण है : समाज में बचपने से नैतिक-शिक्षा देने वाली संस्थाओं जैसे मां-बाप और शिक्षक का यह भूमिका न निभाना और नई तकनीकी के जरिये बाल-मस्तिष्क को दूषित करने वाले कंटेंट का सहज में नेट पर उपलब्ध होना. नैतिक शिक्षा दकियानूसी मानी जाने लगी. कुछ वर्ष पूर्व की लांसेट की एक रिपोर्ट बताती है कि एशियाई देशों के पुरुष समाज की सोच में ही समस्या है जिसमें 70 प्रतिशत बलात्कारी इस किस्म के ‘सेक्स’ को अपना अधिकार मानते हैं और उनमें 50 फीसदी बलात्कार के बाद भी अपने को अपराधी नहीं मानते. महिलाओं के प्रति ‘भोग्य वस्तु’ का भाव रखना इसकी जड़ में है. जब तक समाज की हर संस्था जैसे माता-पिता, परिवार, धर्मगुरु, शिक्षक और सामाजिक संगठन इसके लिए नई क्रांति के भाव से काम नहीं करेंगे, यह बीमारी पूरे समाज में फैलती जाएगी