महिलाओं की चिंता अपराध से अपराध तक!

By Amitabh Shrivastava | Updated: March 8, 2025 09:32 IST2025-03-08T09:31:43+5:302025-03-08T09:32:29+5:30

आम तौर पर घरेलू उद्योग, हस्तशिल्प, खाद्य पदार्थ आदि के क्षेत्रों के माध्यम से महिलाएं स्वावलंबी बनने की क्षमता रखती हैं.

Women's concerns go from crime to crime! | महिलाओं की चिंता अपराध से अपराध तक!

महिलाओं की चिंता अपराध से अपराध तक!

प्रतिवर्ष के अनुसार आठ मार्च को महाराष्ट्र सहित पूरे देश और दुनिया में ‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ मनाया जा रहा है. यह विशेष दिवस महिलाओं की उपलब्धियों को सम्मानित करने के साथ उन्हें काम, अधिकार और सम्मान दिलाने के लिए मनाया जाता है. साथ ही यह सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में सफलता पाने के लिए उनकी क्षमता को भी प्रदर्शित करता है. हालांकि, सैद्धांतिक स्तर पर इन सभी बिंदुओं पर एक दिवसीय चर्चा सुखद लगती है.

किंतु साल के बाकी दिनों में ये चिंताएं कागजी नजर आती हैं. सबलीकरण के नाम पर आर्थिक सहायता के नए चलन से समता का भाव कहीं किनारे जा पहुंचा है. वहीं, राज्य में महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों के आंकड़े बढ़ते क्रम में बने हुए हैं और सुरक्षा के उपायों के लिए कोशिशें जारी हैं. आरक्षण या वरिष्ठता क्रम के चलते कोई ऊंचा स्थान देने की न नौबत आए तो बाकी अवसरों पर सीमाएं निर्धारित हैं.

दिन की सुरक्षा को लेकर जब सवाल उठते हों तो रात में काम की अपेक्षा अर्थहीन है. इस परिदृश्य के बावजूद सत्ता पक्ष और विपक्ष के पास अपनी-अपनी बारी पर महिलाओं की स्थिति पर चिंता दिखाना एक शगल बन चुका है. उससे आगे कहने के लिए महिला नेताओं के पास भी कुछ नहीं है, क्योंकि वे भी राजनीति के पुरुष प्रधान क्षेत्र में अपना स्थान बनाने के लिए संघर्षरत हैं.

अतीत के सापेक्ष देखा जाए तो देश के अन्य राज्यों की तुलना में महाराष्ट्र में महिलाओं को आगे आने के अनेक अवसर मिले. अनेक सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक आंदोलनों में महिलाओं का सक्रिय सहभाग ही नहीं, बल्कि नेतृत्व देखा गया. जिजाऊ माता, सावित्रीबाई फुले, रमाबाई आंबेडकर, बहिनाबाई, जना बाई, द्वारका माई से लेकर आधुनिक युग में पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष प्रभा राव, पूर्व राजस्व मंत्री शालिनीताई पाटिल, समाजवादी नेता मृणाल गोरे, समाजसेवी मेधा पाटकर, सिंधुताई सपकाल जैसे कई नाम हैं, जिनका संदर्भ आदर्श और प्रतिष्ठा के साथ लिया जाता है.

इन सभी ने अपनी क्षमताओं के आधार पर न केवल अपना स्थान बनाया, बल्कि महिलाओं के लिए हर क्षेत्र में संभावनाओं के द्वार खोले. बावजूद इसके अनेक नाम और बदलावों से जुड़े राज्य में अनेक कामों में महिलाओं की उपलब्धियां केवल एक वर्ग और सीमा तक ही रह गईं. जिसके पीछे विश्वास का अभाव और पुरुष प्रधान समाज की अपनी असुरक्षा जैसे कारण भी हैं. राज्य में कुछ मंत्री पद, मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक के पद अपरिहार्यता हैं, लेकिन विश्वविद्यालयों में कुलपति, शिक्षा संस्थानों में संचालक, महाविद्यालयों में प्राचार्य जैसे पदों पर कुछ ही महिलाओं को अवसर मिला है.

अनेक सरकारी स्थानों पर आवश्यकता को भी पूरा करने में असमर्थता ही दिखी. राज्य पुलिस में तीस फीसदी महिला आरक्षण अमल में लाया गया था, लेकिन उनकी वर्तमान संख्या दस प्रतिशत के आस-पास ही है. लोकसभा में दी गई एक जानकारी के अनुसार हर पुलिस थाने में कम-से-कम तीन महिला उप निरीक्षक और दस महिला कॉन्स्टेबल तैनात होना चाहिए. यही नहीं, महिला पुलिस कर्मियों के लिए हाउसिंग, मेडिकल और ‘रेस्ट रूम’ जैसी सुविधाओं के साथ युवतियों को नौकरी की तरफ आकर्षित करना चाहिए. मगर हालात वही पुराने ढर्रे पर हैं.

यूं देखा जाए तो अनेक उपलब्धियों के बावजूद महिलाओं को क्षेत्र विशेष तक सीमित रखना अन्याय है. सबलीकरण की सोच में यदि समता का भाव है तो उसे केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से आगे नहीं बढ़ाना चाहिए. चुनावों में आर्थिक सहायता से मत परिवर्तन कराया जा सकता है, लेकिन महिलाओं के जीवन में सुधार कई चरणों के प्रयासों के बाद संभव है. सर्वविदित है कि ग्रामीण भागों की लड़कियों के लिए शिक्षा के अवसर सीमित हैं.

यदि वे शहर में आती हैं तो उन्हें आर्थिक बोझ से लेकर नए परिवेश से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. यही स्थिति रोजगार की तलाश में भी दिखाई देती है. आम तौर पर घरेलू उद्योग, हस्तशिल्प, खाद्य पदार्थ आदि के क्षेत्रों के माध्यम से महिलाएं स्वावलंबी बनने की क्षमता रखती हैं.

बशर्ते उन्हें विधिवत मार्केटिंग के साथ आगे लाया जाए. केंद्र की लखपति दीदी, राज्य में बचत समूह महिलाओं को आर्थिक सक्षमता के साथ आगे बढ़ने में सहारा देते हैं, लेकिन उनसे चरणबद्ध ढंग से विकास और विस्तार संभव नहीं हो पा रहा है. अन्य उद्योगों की तरह उनको मांग और आपूर्ति के चक्र में बांधा नहीं जा सका है. जिसका शिक्षा और कौशल विकास के क्षेत्र में महिलाओं के लिए अवसर में कमी एक बड़ा कारण है.

बढ़ते अपराध और असुरक्षा का वातावरण महिलाओं को चारदीवारी के भीतर ही समेट कर रखने के लिए मजबूर करता है. महाराष्ट्र पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2022 में महिलाओं से जुड़े अपराधों की संख्या में 14.69 प्रतिशत की वृद्धि हुई. बढ़ने वाले अपराधों में तेजाब से हमला, साइबर अपराध, बलात्कार के मामले प्रमुख थे. इन पर नियंत्रण के लिए सरकार और प्रशासन के पास कोई ठोस प्रस्ताव नहीं है.

मगर इसमें राजनीति से लेकर सहानुभूति का पर्याप्त अवसर है. इनके कारणों पर विस्तृत चर्चा अथवा ठोस हल निकालने की दिशा में प्रयास नहीं है. इसी वजह से एक मामला शांत होता है और दूसरा फिर कहीं से जागृत हो जाता है. वस्तुस्थिति यह है कि बदलते सामाजिक परिदृश्य में महिलाओं के सक्षमीकरण और सर्वांगीण विकास पर कोई खाका तैयार किया जाना चाहिए.

जिसमें शिक्षा, कौशल से लेकर समाज में बराबरी के स्तर पर लाने की स्पष्ट योजना दिखाई दे. चुनाव में मतों की चिंता में आर्थिक सहायता महिलाओं को तात्कालिक लाभ दे सकती है, जबकि आवश्यकता जीवन स्तर में लगातार सुधार की है. जिसे केवल अपराध से अपराध तक किसी स्वार्थ भाव से चलाया नहीं जा सकता है.

इसीलिए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस केवल उपलब्धियों का बखान ही नहीं, वर्तमान परिदृश्य में भविष्य की चिंता और चिंतन का कारण भी बनना चाहिए, जिससे आधी आबादी के मन में अपने पूरे हितों को पाने की आशा जाग सके.

Web Title: Women's concerns go from crime to crime!

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