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Blog- मेरी स्कर्ट नहीं, आपकी नजर तंग है

By ऐश्वर्य अवस्थी | Updated: December 14, 2017 16:25 IST

हम यूं तो देश में लड़कियों को बराबरी का हक देने की बात कहते हैं लेकिन जब बात कपड़ों की आती है तो न जाने वो बड़ी-बड़ी बातें करने वाले लोगों की सोच छोटे कपड़ों में जाकर कहीं उलझ जाती है।

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हम यूं तो देश में लड़कियों को बराबरी का हक देने की बात कहते हैं लेकिन जब बात कपड़ों की आती है तो न जाने वो बड़ी-बड़ी बातें करने वाले लोगों की सोच छोटे कपड़ों में जाकर कहीं उलझ जाती है। आज भी हमारे देश में लड़कियों के पहनावे पर रोक लगाई जाती है। अगर लड़की की स्कर्ट छोटी है तो उसके चरित्र पर तक सवाल खड़े कर दिए जाए हैं। इतना ही नहीं उसके संस्कारों तक को सवालों में खड़ा करने में इन समाज के ठेकेदारों को देर नहीं लगती है। समझ नहीं आता कपड़ों से चरित्र आंकना क्या सही है? एक लड़का अगर कुछ भी पहने कर सड़क पर जाता है तो वह आम बात होती है लेकिन एक लड़की छोटे कपड़े पहनी है तो उसे संस्कृति , संस्कार का वास्ता दिया जाता है। देश के कई शहरों में में लड़कियों के शॉर्ट स्कर्ट पहनने पर रोक की कवायद की गई। ऐसे में अब सवाल ये भी उठता है कपड़े छोटे होते हैं या सोच।

शहरों में छोटी स्कर्ट को किया गया लंबा- डिस्कोथिक में महिलाओं की ड्रेस को लेकर चंडीगढ़ एडमिनिस्ट्रेशन में सख्त कदम उठाए जाने की पहल की। लड़कियों का डिस्कोथिक में शॉर्ट स्कर्ट पहनकर जाना बैन की बात उठी। वहीं, अपने बिंदास रूप के लिए जाने जाना वाला शहर गोवा भी इसमें लिप्त दिखा। गोवा में भी लड़कियों के छोटे कपड़े पहनने पर रोक की बात कही जा चुकी है। गोवा सरकार के वरिष्ठ मंत्री ने कहा था कि छोटे कपड़ों में लड़कियों का पब जाना स्थानीय संस्कृति के खिलाफ है।  इस पर रोक लगनी चाहिए। जवान लड़कियों का कम कपड़ों में पब जाना हमारी संस्कृति में फिट नहीं बैठता। अगर हम इसकी अनुमति देते हैं तो हमारी गोवा कल्चर का क्या होगा? वहीं, केरल में भी लड़कियों की स्कर्ट पहनने पर रोक लगाई जा चुकी है। केरल के एक मुस्लिम महिला कॉलेज ने चुस्त जींस, छोटे टॉप और लेगिंग पहनने पर रोक लगाते हुए छात्राओं को इसे पहनकर कॉलेज परिसर में ना आने की सलाह दी थी। 

घूरती नजरें - पश्चिमी समाज में तो इसका काफी प्रचलन है लेकिन भारत समेत दक्षिण एशिया के कई देशों में किसी लड़की का मिनी स्कर्ट पहने दिखना इतना आम नहीं। अब भी ऐसी स्कर्ट पहने किसी लड़की को लोग घूरने से बाज नहीं आते। भले ही आज भी मिनी स्कर्ट पहनने को आधुनिकता का प्रतीक माना जाता हो लेकिन सच तो यह है कि इसका चलन 50 साल पहले ही शुरू हो गया था। स्कर्ट विभिन्न संस्कृतियों और इलाकों में पहनी जाती रही है। प्राचीन समय में उसकी लंबाई पांव को पूरी तरह ढंकने वाली होती थी। 1960 के दशक में मिनी स्कर्ट का फैशन आया,यहां न्यूयॉर्क में एक मॉडल डॉन स्टेफेन का डिजाइन दिखा रही है। आज इतने साल पुराने पहनावे को भी लोगों की नजरे नहीं छोड़ती।

अपराध हैं कपड़ों के जिम्मेदार- भारत में रेप की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। भारत में 57 फीसदी अपराध में कपड़ों को भी जिम्मेदार माना जाता है। कपड़ों को लेकर कहा जाता है , जब छोटे कपड़ें होंगे तो लड़कियों के साथ ऐसी घटनाएं भी होंगी। एक मापदंड तय कर लिया गया है कि जो लड़कियां छोटे कपड़े पहनती हैं, उनके साथ ही रेप या छेड़छाड़ जैसी घटनाएं होती हैं। जबकि हकीकत इससे कोसो दूर है। आंकड़े गवाह हैं कि लड़कियों के साथ रेप या यौन शोषण करने वाले करीब 90 प्रतिशत लोग उसके रिश्तेदार या परिचित होते हैं। रेप और यौन शोषण के आंकड़े भी इस बात की तस्दीक नहीं करते के लड़कियों की ड्रेस से उनके संग होने वाले दुर्व्यहार का कोई सीधा संबंध होता है।

सोशल मीडिया पर आलोचना- चंडीगढ जैसे आधुनिक माने जाने वाले शहर में भी लड़कियों की शॉर्ट स्कर्ट पहनने पर रोक लगने के बाद से जमकर आलोचना की जाती है। यहां लड़कियों से ज्यादा लड़के शॉर्ट स्कर्ट  पर  रोक का विरोध करते रहे हैं। सभी इस तरह के होने वाले एलान के खिलाफ हैं और शेम जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है। ऐसे में एक लड़की होने के नाते मेरे मन में केवल एक ही सवाल घूमता है कि क्या मेरी छोटी स्कर्ट से मेरे चरित्र, संस्कार को तार-तार किया जाना ठीक है। जरा कोई इन ठेकेदारों को बताए अगर छोटी स्कर्ट पहनने से लड़कियों के साथ गलत वर्ताब किया जा रहा है तो फिर साड़ी में लिपटी द्रौपदी का चीरहरण क्यों किया गया?

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