वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: कानून बनाने में जल्दबाजी क्यों? 

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: July 28, 2019 07:49 IST2019-07-28T07:49:14+5:302019-07-28T07:49:14+5:30

विशेषज्ञों से राय ली जाती है. इसमें शक नहीं है कि इस प्रक्रिया से गुजरते तो 30 दिन में 20 तो क्या, शायद 5-7 कानून ही पास होते, लेकिन उन कानूनों में खामियों की गुंजाइश कम से कम रहती.

why modi govt making law and change old law so quickly | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: कानून बनाने में जल्दबाजी क्यों? 

वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: कानून बनाने में जल्दबाजी क्यों? 

भाजपा सरकार बधाई की पात्न है कि उसने अंग्रेजों के बनाए हुए घिसे-पिटे और बेकार कानूनों को रद्द करना शुरू कर दिया है. पिछले पांच वर्षो में भाजपा सरकार ने पिछले सौ-डेढ़ सौ साल पहले बने लगभग डेढ़ हजार कानूनों को रद्दी की टोकरी के हवाले कर दिया है. नई संसद के इस पहले सत्न में ऐसे 58 कानूनों को सुधारा गया है या रद्द किया गया है. अब राज्य सरकारें भी ऐसे लगभग 225 कानूनों के खिलाफ कार्रवाई करेंगी.

नई संसद के इस पहले सत्न में दूसरी अच्छी बात यह हुई कि 30 दिन में 20 कानून पास हो गए और तीसरी बात यह हुई कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को विपक्ष ने भी उचित सम्मान दिया. संसद की कार्यवाही सद्भावनापूर्ण वातावरण में चलती रही लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि महत्वपूर्ण विधेयकों को क्या इतनी जल्दबाजी में पास कर दिया जाना चाहिए? यदि विपक्ष के सांसद उन्हें विभिन्न संसदीय कमेटियों के विचारार्थ भिजवाने का आग्रह कर रहे हैं तो उसमें गलत क्या है? संसदीय समितियों में इन विधेयकों की समीक्षा बहुत ही शांत और गंभीर ढंग से की जाती है.

विशेषज्ञों से राय ली जाती है. इसमें शक नहीं है कि इस प्रक्रिया से गुजरते तो 30 दिन में 20 तो क्या, शायद 5-7 कानून ही पास होते, लेकिन उन कानूनों में खामियों की गुंजाइश कम से कम रहती. सत्तारूढ़ दल के पास स्पष्ट बहुमत है, इसका अर्थ यह नहीं कि विपक्ष की परवाह ही न की जाए.

विपक्ष के अनुभवी और योग्य सांसदों की राय का लाभ लेने से सत्तापक्ष अपने आप को वंचित क्यों करे? यह ठीक है कि तीन-तलाक जैसे विधेयकों पर पिछली संसद की कमेटियों ने विचार कर लिया था, लेकिन सूचना के अधिकार के कानून में जो संशोधन किया गया है, वह निर्विवाद नहीं है. यदि सूचना अधिकारियों का वेतन और कार्यकाल सरकार पर निर्भर हो गया तो उनकी स्वायत्तता का क्या होगा? उन्हें तो न्यायाधीशों की तरह स्वतंत्न रखा जाना चाहिए. अभी इस कानून पर राज्यसभा में मुहर लगनी है. उम्मीद है कि राज्यसभा के वरिष्ठ और अनुभवी सांसद इन विधेयकों को काफी सोच-समझकर पारित करेंगे. विपक्ष से भी यही आशा की जाती है कि वह फिजूल के अड़ंगे लगाने की बजाय ऐसे ठोस और रचनात्मक सुझाव दे कि सरकार उन्हें मानने को सहर्ष तैयार हो जाए. 

Web Title: why modi govt making law and change old law so quickly

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