भंडा फोड़ने या पर्दाफाश करने को बम फोड़ने का नाम पहली बार किसने दिया, यह कहना जरा मुश्किल है लेकिन हाल के दिनों में भारतीय राजनीति में बड़े धड़ल्ले से ‘बम फोड़ना’ शब्द का उपयोग किया जा रहा है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने तो बम को अलग-अलग संज्ञाएं भी दे दी हैं. पहले उन्होंने एटम बम फोड़ने की बात की और फिर हाइड्रोजन बम तक पहुंच गए. दूसरे सज्जन हैं प्रशांत किशोर. वे भी बम फोड़ना शब्द का खूब उपयोग कर रहे हैं. सवाल यह है कि किसी का भंडा फोड़ना या किसी की हरकतों का पर्दाफाश करने का बम फोड़ने से क्या लेना-देना है.
पर्दाफाश करना या भंडा फोड़ना शब्द सकारात्मकता का परिचायक है. यदि कोई व्यक्ति गलत कर रहा है, अपनी गलती को छिपा रहा है और वो सारी चीजें कोई सामने ले आता है तो उसे समाज हित में माना जाता है. गलतियों को रोकने में मदद मिलती है. दूसरी ओर इस सवाल पर गौर करिए कि बम कौन फोड़ता है? कोई भला आदमी तो बम नहीं फोड़ता.
हम अमूमन यही जानते हैं कि बम या तो कोई अपराधी फोड़ता है या फिर वैश्विक पैमाने पर देखें तो कोई आक्रामक सत्ता दूसरी सत्ता पर बम से हमला करती है. हो सकता है कुछ लोग यह कहें कि बम फोड़ना शब्द का मुहावरे की तरह प्रयोग किया जाता है. भाई इंसानी जिंदगी में बम तो बहुत बाद में आया है तो ये मुहावरा कब बन गया? यदि किसी ने मुहावरा बनाया भी होगा तो इसे मुहावरे का नाम देना विकृत मानसिकता का ही परिचायक है.
अभी भारत-पाकिस्तान के बीच एक पाकिस्तानी खिलाड़ी साहिबजादा फरहान ने अर्धशतक बनाने की खुशी में जब बल्ले को एके-47 के अंदाज में प्रदर्शित किया तो न केवल हमने बल्कि पूरी दुनिया के क्रिकेट प्रेमियों ने आलोचना की. यहां तक कि पूरे पाकिस्तान को लपेटते हुए यह भी कहा गया कि जब खून में ही आतंकवाद समा जाए तो वहां का नागरिक ऐसी ही हरकत करता है.
हालांकि पूरे पाकिस्तान के लोगों को इसके लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता लेकिन एक व्यक्ति के कारण पूरे देश में आक्षेप तो आ ही गया. यह बात हर किसी को समझनी चाहिए वह क्या बोलता है, कैसी हरकतें करता है, इससे पूरा समाज और पूरा देश प्रभावित होता है. इसलिए कम से कम हम भारतीयों को तो पर्दाफाश या भंडाफोड़ के लिए बम फोड़ना शब्द का उपयोग करना शोभा नहीं देता क्योंकि हम अक्षर को ब्रह्म मानने की संस्कृति वाले लोग हैं. हम ज्ञान की देवी सरस्वती को पूजने वाले लोग हैं.
हमें तो शब्दों के उपयोग को बड़े सार्थक तरीके से देखना चाहिए! राहुल गांधी और प्रशांत किशोर को कोई तो समझाए कि वे पर्दाफाश कर रहे हैं, खुलासे कर रहे हैं, भंडाफोड़ रहे हैं, वे बम नहीं चला रहे हैं! इस तरह के शब्दों का उपयोग समाज के लिए ठीक नहीं है. ऐसी भाषा से हमारी अगली पीढ़ी क्या सीखेगी?
खासकर नेताओं को तो इस बात का निश्चय ही ज्यादा ख्याल रखना चाहिए क्योंकि वे नेतृत्वकर्ता हैं, आम आदमी न केवल उनकी बात पर भरोसा करता है बल्कि उनका अनुसरण भी करता है. उम्मीद है इस बात को राहुल गांधी भी समझेंगे और प्रशांत किशोर भी समझेंगे.