Biren Singh Manipur: मणिपुर में लगभग 21 माह से जारी हिंसा ने अंतत: एन. बीरेन सिंह को मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देने पर मजबूर कर ही दिया. दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के एक दिन बाद रविवार को बीरेन सिंह ने पद से इस्तीफा दे दिया. मणिपुर विधानसभा के चुनाव अभी दो वर्ष दूर हैं. बीरेन सिंह से त्यागपत्र लेकर भाजपा आलाकमान हिंसा के कारण उभरे असंतोष को शांत करना चाहता है. जनता का असंतोष न केवल बीरेन सिंह से है बल्कि उनके पद पर बने रहने के कारण भाजपा की चुनाव जीतने की संभावनाओं पर भी विपरीत असर होने की आशंका प्रबल होती जा रही थी.
मणिपुर में मैतेई और कुकी जनजातियों के बीच विवाद बहुत पुराना है लेकिन उसने इतना हिंसक रूप कभी नहीं लिया, जितना आज देखने को मिल रहा है. राज्य में मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग और इस मामले में अदालत के एक आदेश को वर्तमान हिंसा का कारण माना जा रहा है.
कुकी जनजाति समुदाय मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का इतना तगड़ा विरोध कर रहा है कि मरने-मारने पर उतारू हो गया. 27 मार्च 2023 को मणिपुर उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को आदेश दिया था कि मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने के मसले पर वह जल्दी से विचार कर फैसला करे.
अदालत के इस आदेश के बाद किसी को भी इस बात की आशंका नहीं थी कि राज्य में हिंसा भड़क उठेगी और वह इतने लंबे समय तक चलेगी. हिंसा लगातार उग्र होती गई और उसे थामने के सारे उपाय विफल हो गए. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी मणिपुर की हिंसा को रोकने के लिए कई बैठकें कीं. उन्होंने कुकी तथा मैतेई समुदायों के नेताओं एवं जनप्रतिनिधियों से कई दौर की वार्ता की.
लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. पिछले साल फरवरी में मणिपुर उच्च न्यायालय ने अपने मार्च 2023 के आदेश में संशोधन कर दिया तथा मैतेई को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की सिफारिश करने वाले अंश को अपने आदेश से हटा दिया था मगर हिंसा थमी नहीं. दोनों समुदायों के बीच वैचारिक मतभेद हिंसा में तब्दील हो गए.
मणिपुर की लगभग 40 लाख की आबादी में मैतेई, नगा तथा कुकी समुदायों की संख्या अधिक है. मैतेई इंफाल घाटी में बहुसंख्यक है और हिंदू धर्म को मानता है जबकि कुकी तथा नगा ईसाई धर्म के अनुयायी हैं एवं पहाड़ों में बसते हैं. कुकी तथा मैतेई समुदायों के बीच प्राकृतिक संसाधनों व जमीन के बंटवारे को लेकर दशकों से तनाव है.
इसे लेकर दोनों समुदायों के बीच छिटपुट हिंसा होती रहती है. इस तनाव ने अब धार्मिक रंग भी ले लिया है जिससे हिंसा ने बड़े पैमाने पर पैर पसारे. एक समुदाय की महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाने और उनके सामूहिक बलात्कार ने राज्य में तनाव बढ़ा दिया तथा हिंसा काबू से बाहर होती चली गई. राज्य में भाजपा की भारी बहुमतवाली सरकार है.
नेशनल पीपुल्स पार्टी भाजपा सरकार को समर्थन दे रही थी लेकिन बीरेन सिंह पर स्थिति को संभालने में विफल रहने का आरोप लगाते हुए उसने समर्थन वापस ले लिया. इसके बावजूद राज्य में राजनीतिक अस्थिरता पैदा नहीं हुई क्योंकि समर्थन वापसी के बाद भी भाजपा के पास स्पष्ट बहुमत था. इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि बीरेन सिंह राजनीतिक स्थिरता, भारी बहुमत तथा भाजपा आलाकमान का पूरा समर्थन हासिल होने के बावजूद हिंसा को काबू करने में विफल रहे. उन पर मैतेई समुदाय का पक्ष लेने के आरोप लगे और कुकी तथा नगा समुदाय का विश्वास उन पर से उठ गया.
बीरेन मैतेई तथा कुकी समुदायों के बीच सुलह कराने में विफल रहे. भाजपा नेतृत्व अगर बीरेन सिंह को पद से नहीं हटाता तो प्रदेश के भाजपा विधायकों के बगावत कर देने की भी आशंका थी. मैतेई और कुकी दोनों ही समुदायों के भाजपा विधायक बीरेन सिंह की कार्यशैली और हिंसा को काबू करने में उनकी विफलता से नाराज चल रहे हैं.
और बीरेन सिंह के नेतृत्व में 2027 का विधानसभा चुनाव लड़ने पर अपना भविष्य खतरे में देख रहे थे. भाजपा नेतृत्व बीरेन सिंह के विरुद्ध विधायकों के बढ़ते असंतोष तथा जनाक्रोश से चिंतित था और संभवत: उसने यह समझ लिया कि अगर 2027 का चुनाव बीरेन सिंह के नेतृत्व में लड़ा तो मणिपुर हाथ से निकल जाएगा.
पिछले वर्ष हुए लोकसभा के चुनाव में जनता के बदलते मूड का पता चल गया था. राज्य में लोकसभा की दोनों सीटें कांग्रेस की झोली में चली गई थीं. यह 2027 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए शुभ संकेत नहीं था. बीरेन को पदमुक्त कर भाजपा ने 2027 के चुनाव के लिए जनादेश को फिर से हासिल करने के लिए जमीन तैयार करने का प्रयास किया है.
उसे बीरेन के हटने से राज्य में हालात सामान्य होने की भी उम्मीद होगी. बीरेन सिंह का त्यागपत्र राज्य में हालात सामान्य करने की दिशा में एक कदम जरूर हो सकता है लेकिन जब तक कुकी तथा मैतेई समुदायों के बीच आपसी विश्वास बहाल नहीं होता, राज्य में स्थायी शांति की उम्मीद बेमानी है.