एक ही दिन में किसी एयरलायंस की 300 उड़ानें रद्द हो जाएं और वह भी बगैर किसी तकनीकी समस्या के तो इसे अचानक आई परेशानी नहीं बल्कि गैरजिम्मेदारी माना जाना चाहिए. हर तरफ यही सवाल पूछा जा रहा है कि अपनी समयबद्धता के लिए खास पहचान बनाने वाली इंडिगो को आखिर हो क्या गया है? उसकी उड़ानें धड़ल्ले से रद्द हो रही हैं और विलंब का तो कहना ही क्या...?
केवल नवंबर में ही इंडिगो की बारह सौ से ज्यादा उड़ानें रद्द हुईं और अब दिसंबर में भी उड़ानें रद्द होने का सिलसिला जारी है. जहां तक समय की पाबंदी का सवाल है तो अक्तूबर में इंडिगो की 84 प्रतिशत उड़ानें समय पर थीं लेकिन नवंबर में यह आंकड़ा 68 से नीचे आ गया! कहा जा रहा है कि नए क्रू रोस्टरिंग नियमों (उड़ान ड्यूटी समय सीमा) के कारण यह स्थिति पैदा हुई है.
सवाल यह है कि जब इंडिगो को पता था कि यह नियम निर्धारित तारीख को लागू हो जाएगा और उसे पायलट सहित अन्य स्टाफ को आराम के लिए नियमों के तहत वक्त देना पड़ेगा तो फिर इंडिगो ने वैकल्पिक व्यवस्था क्यों नहीं की? इंडिगो यदि वैकल्पिक व्यवस्था करने की स्थिति में नहीं था और उसे अंदाजा था कि उड़ानें संचालित नहीं हो पाएंगी तो फिर सवाल है कि टिकट की बुकिंग ही क्यों ली?
इंडिगो को यह बात समझनी चाहिए कि यदि उसने टिकट बेचे हैं तो समय पर हवाई यात्रियों को अपने गंतव्य तक पहुंचाना उसकी जिम्मेदारी है. उड़ान कैंसिल होने पर यह कहना कि यात्रियों के पैसे लौटा दिए जाएंगे, काफी नहीं है. यदि मौसम की खराबी हो या फिर विमान में तकनीकी खराबी आ जाए तो विलंब को स्वीकारा जा सकता है लेकिन पायलटों की कमी के कारण यदि उड़ानें रद्द हो रही हैं तो यह अत्यंत गंभीर मामला है.
सरकार को इस मामले में कठोर कार्रवाई करनी चाहिए. यात्रियों को इस तरह से एयरलायंस की मनमर्जी पर हर्गिज नहीं छोड़ा जा सकता है!