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लंगड़े घोड़ों को चना कौन खिला रहा है?

By विजय दर्डा | Updated: June 9, 2025 05:26 IST

तो फिलहाल हम घोड़ों की बात करेंगे..! गधों के गुलाबजामुन खाने की ये कहावत तो अचानक एक खबर पढ़ते हुए मेरे जेहन में आ गई.

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ठळक मुद्देहमें रेस के घोड़ों, बारात के घोड़ों और लंगड़े घोड़ों के बीच फर्क करना होगा. बारात का घोड़ा, दूसरा होता है रेस का घोड़ा और तीसरा होता है लंगड़ा घोड़ा.रेस वाले घोड़े को रेस में रखना होगा और लंगड़े घोड़े को रिटायर करना होगा.

एक बड़ी पुरानी कहावत है कि गधे गुलाबजामुन खा रहे हैं..! ये कहावत किसने रची, क्यों रची, कब रची, और गधे गुलाबजामुन ही क्यों खा रहे हैं? कोई गधा एक बार में  कितने गुलाबजामुन खा सकता है? गधे कोई दूसरी मिठाई क्यों नहीं खाते? सवालों की ऐसी फेहरिस्त आपके दिमाग में आ सकती है. मेरे दिमाग में भी ये सारे सवाल हैं घूम रहे हैं लेकिन जवाब तलाशना बड़ा मुश्किल काम है. इसलिए गधों की चर्चा करने का कोई मतलब नहीं है. तो फिलहाल हम घोड़ों की बात करेंगे..! गधों के गुलाबजामुन खाने की ये कहावत तो अचानक एक खबर पढ़ते हुए मेरे जेहन में आ गई.

भोपाल में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच राहुल गांधी ने कहा कि अब वक्त आ गया है जब हमें रेस के घोड़ों, बारात के घोड़ों और लंगड़े घोड़ों के बीच फर्क करना होगा. उन्होंने कहा कि घोड़े तीन तरह के होते हैं. एक होता है बारात का घोड़ा, दूसरा होता है रेस का घोड़ा और तीसरा होता है लंगड़ा घोड़ा. हमें बारात वाले घोड़े को बारात में और रेस वाले घोड़े को रेस में रखना होगा और लंगड़े घोड़े को रिटायर करना होगा.

लंगड़े घोड़ों को बाकी घोड़ों के लिए समस्या पैदा नहीं करनी चाहिए. यदि वे ऐसा करते हैं तो पार्टी उनके खिलाफ कार्रवाई करेगी! दिल से कहूं तो राहुल जी की इस अत्यंत महत्वपूर्ण योजना को जानकर मजा आ गया. चलो कोई तो ऐसा जांबाज है जो कांग्रेस में पल रहे घोड़ों में से कुछ को लंगड़ा मान रहा है और भरी सभा में जिक्र भी कर रहा है!

अब देखिए, मुझे अचानक एक और कहावत याद आ गई. तालाब में रह कर मगरमच्छ से बैर? अब ये कहावत याद आना मेरे जेहन की समस्या है, इसे अन्यथा मत लीजिए. सामान्य भाषा में तो इसे आप यही मानेंगे कि तालाब में जब मगरमच्छ भरे हों तो उसमें रहने वाला उनसे बैर कैसे मोल ले सकता है.

लेकिन मेरी मानिए तो इसे इस तरह समझिए कि जिन्हें राहुल जी लंगड़ा घोड़ा कह रहे हैं, क्या वे अपनी टांग से दुलत्ती मार सकते हैं? यदि दुलत्ती मारेंगे तो किसे मारेंगे? क्या उनकी टांग में रेस वाले घोड़े से ज्यादा ‘हॉर्स पावर’ होता है?  विज्ञान की भाषा में बात करें तो एक स्वस्थ घोड़ा करीब-करीब 2000 पाउंड की ताकत से लात मारता है.

इतनी ताकत से जिसे लात पड़ेगी, उसकी हड्डी टूट सकती है और हार्ट अटैक भी आ सकता है. जान भी जा सकती है. सवाल है कि लंगड़े घोड़े भले ही दौड़ नहीं सकते लेकिन दौड़ने वाले घोड़ों को लात तो मार ही सकते हैं. लात न मार पाएं तो लंगड़ी तो मार ही सकते हैं. लंगड़ी से कुछ याद आया?

बचपन में हम सब इस बात के गवाह हैं कि दौड़ प्रतियोगिता में कोई शैतान बच्चा आगे निकलने की क्षमता नहीं रखता था तो आगे दौड़ रहे बच्चे की टांग में अपनी टांग फंसा देता था. स्वाभाविक रूप से वह बच्चा गिर जाता था और लंगड़ी मारने वाले शैतान बच्चे की जीत की संभावनाएं बढ़ जाती थीं. क्या कांग्रेस में ऐसा नहीं होता रहा है?

क्या कांग्रेस के लंगड़े घोड़ों ने ही कांग्रेस को तबाह नहीं किया? यदि रेस वाले घोड़ों की इज्जत की गई होती, उनकी  जरूरतों का ध्यान रखा गया होता, उनकी क्षमताओं का सदुपयोग किया गया होता तो कांग्रेस के रेस न जीत पाने का सवाल ही पैदा नहीं होता. कांग्रेस वो पार्टी है जिसने देश की आजादी में अग्रणी भूमिका निभाई.

उसका हर सिपाही रेस जीतने के जज्बे के साथ मैदान में होता था लेकिन आज क्या स्थिति है? आप विभिन्न राज्यों का आकलन कीजिए, कितने राज्यों में बड़े कद के कांग्रेसी नेता हैं? जिनका कद वाकई बड़ा है, उन्हें लंगड़े घोड़ों ने क्या दुलत्ती नहीं मार दी है? ध्यान रखिए कि फिलहाल मैं बारात वाले घोड़ों की बात नहीं कर रहा हूं. मैं लंगड़े घोड़ों की बात कर रहा हूं.

इसलिए यह सवाल पैदा होना स्वाभाविक है कि अस्तबल में जब लंगड़ों घोड़ों की संख्या ज्यादा हो जाए, पूरे अस्तबल पर उनका कब्जा हो तो फिर क्या करना चाहिए? राहुल जी को मैं सलाह नहीं दे रहा हूं लेकिन बताना चाहता हूं कि आपके अस्तबल में लंगड़े घोड़े खूब कूद रहे हैं. आपके लिए परीक्षा का वक्त है कि लंगड़े घोड़ों को कैसे दूर करते हैं अन्यथा आपके रेस के घोड़ों को दूसरे अपने साथ ले जाएंगे!

वैसे राहुल जी ने ठीक कहा है कि लंगड़े घोड़ों को रेस वाले घोड़ों के लिए समस्या खड़ी नहीं करनी चाहिए अन्यथा पार्टी कार्रवाई करेगी. लेकिन केवल चेतावनी क्यों? लंगड़े घोड़ों की पहचान कर ली गई है तो उन्हें दूर क्यों नहीं फटकार देते? देर किस बात की..? जितनी देर होगी, लंगड़े घोड़े रेस को और बर्बाद करेंगे! अरे छोड़िए, मैं भी कहां सलाह देने के मूड में आ गया!

राहुल जी समझदार नेता हैं, लंगड़ों के लिए कुछ न कुछ तो योजना बनाई ही होगी! वैसे कांग्रेस के लंगड़े घोड़े बहुत शातिर हैं. इतनी आसानी से हार नहीं मानेंगे! अरे हां, बारात वाले घोड़ों की चर्चा अपन नहीं करें तो घोड़ा पुराण अधूरा रह जाएगा! यही वो घोड़े हैं जो पैरों में घुंघरू बांध कर अपने मालिक के इशारों पर थिरकते हैं.

यही वो घोड़े हैं जो दूल्हे को अपनी पीठ पर बिठा कर दुल्हन के दरवाजे पर ले जाते हैं. ये वही हैं जिनकी थिरकन के बगैर शादी की शोभा अधूरी रह जाती है. वैसे इनका भी मूड बिगड़ जाए तो दुलत्ती मारने से परहेज नहीं करते लेकिन उनकी दुलत्ती से तमाशबीन तो घायल होते हैं मगर मालिक को कभी नुकसान नहीं पहुंचता.

वे मस्त चारा खाते हैं और मालिक के इशारों पर थिरकते रहते हैं. ये घोड़े ज्यादा पसंदीदा होते हैं. लेकिन कुछ घोड़े  वक्त आने पर दूसरों की बारात में डांस करने लगते हैं. पहला मालिक देखता ही रह जाता है...! बहरहाल राहुल जी ने अच्छी बात कही है कि बारात के घोड़ों को बारात में ही रहना चाहिए. लेकिन क्या करें? बाराती वाले कुछ घोड़ों को मुगालता हो जाता है कि वे रेस के घोड़े हैं..!

..और अंत में जन-जन के मन का सवाल. रेस के घोड़ों की नकेल आखिर किसने कस रखी है, लंगड़े घोड़ों को चना कौन खिला रहा है और बाराती के घोड़े किसके इशारे पर थिरक रहे हैं..?

इति घोड़ा पुराण समाप्त:

टॅग्स :राहुल गांधीMadhya Pradeshभोपालकांग्रेसBJP
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