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ब्लॉगः जिसके लिए आंदोलन हुआ, गठन के चार साल बाद आखिर काम क्या कर रहा है लोकपाल ?

By शशिधर खान | Updated: April 1, 2023 13:13 IST

अभी चुनाव के समय संसदीय समिति ने यह खुलासा किया है कि लोकपाल और लोकपाल समिति की नियुक्ति के चार साल में किसी भ्रष्टाचार के आरोपी पर कोई केस दर्ज नहीं किया गया। जबकि लोकपाल पद का गठन सिर्फ भ्रष्टाचार पर अंकुश रखने के लिए किया गया है।

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बहुप्रचारित और बहुविवादित लोकपाल के लिए अनशन, आंदोलन ने इसे लगातार कई वर्षों तक सुर्खियों में रखा था। यहां तक कि लोकपाल एक्ट पास होने और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद गठन को लेकर भी यह मामला खबरों में आता रहा। लेकिन आखिरकार सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से लोकपाल गठित होने के बाद ठंडे बस्ते में चला गया।

विदित हो कि उच्च पदों पर आसीन अधिकारियों के भ्रष्टाचार में लिप्त होने के मामले की जांच के लिए लोकपाल जैसे पद का गठन किया गया। 19 मार्च 2019 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष को देश के पहले लोकपाल पद की शपथ दिलाई। बस इतनी सी जानकारी मीडिया के जरिये आम लोगों के बीच पहुंची। उसके बाद से ही यह पद और लोकपाल कार्यालय कोल्ड स्टोरेज में है। चार वर्षों बाद अचानक लोकपाल की चर्चा अब निकली है। संसदीय समिति की ही एक रिपोर्ट से यह चर्चा बाहर निकली है कि गठन के चार वर्षों में लोकपाल ने किसी भी आरोपी के खिलाफ एक भी मुकदमा नहीं चलाया। जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष का लोकपाल के रूप में तीन साल का कार्यकाल समाप्त हो गया। मई, 2022 से लोकपाल अध्यक्ष का पद खाली है।

अभी चुनाव के समय संसदीय समिति ने यह खुलासा किया है कि लोकपाल और लोकपाल समिति की नियुक्ति के चार साल में किसी भ्रष्टाचार के आरोपी पर कोई केस दर्ज नहीं किया गया। जबकि लोकपाल पद का गठन सिर्फ भ्रष्टाचार पर अंकुश रखने के लिए किया गया है। तो क्या माना जाए कि इन चार वर्षों में नीचे से ऊपर तक कोई अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं पाए गए या कोई लोकपाल की पकड़ में नहीं आए? अथवा यह सही है कि लोकपाल ने भ्रष्टाचार की किसी शिकायत का निपटारा इस तरह नहीं किया कि वो जांच के दायरे में आए और उसमें शामिल अधिकारी को कानून के शिकंजे में लाकर मुकदमा चलाया जाए?

यह मामला इसलिए गंभीर है, क्योंकि संसदीय समिति की रिपोर्ट में उठाया गया है। संसदीय समिति ने लोकपाल के कामकाज के बारे में कहा कि ‘संतोषजनक नहीं प्रतीत होता।’ संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में समिति ने कहा है कि लोकपाल द्वारा कई शिकायतों का निपटारा इस आधार पर किया जा रहा है कि वे निर्धारित प्रारूप में नहीं हैं। संसदीय समिति ने लोकपाल से वास्तविक शिकायतों को खारिज नहीं करने को भी कहा है।

देशवासी भूले नहीं होंगे कि तकरीबन तीन दशकों तक लोकपाल आंदोलन को सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने सुर्खियों में रखा था। सरकारें बदलती रहीं, व्यवस्था बदलती रही लेकिन अन्ना हजारे का दिल्ली में कभी रामलीला मैदान, कभी राजघाट तो कभी जंतर-मंतर पर अनशन जारी रहा।  

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